08.05.14, 06.30 pm आंधी-तूफ़ान के बीच न्याय की उम्मीद
‘हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब एक दिन
ओहो s s मन में हैं विश्वास, पूरा है विश्वास, हम होंगे कामयाब एक दिन‘
आज बच्चों को हमने यह गाना सिखाया इस विश्वास के साथ की इनकी नन्ही उम्मीदें टूटेंगी नहीं। अभी बच्चों का होमेवर्क चैक ही कर रहे थे की अचानक आँधी आने लगी जो जल्दी ही एक किस्म के तूफान में तब्दील हो गयी। दस–बारह मिनट तक धूल भरी आँधी से जद्दोजहद के बाद हमने अपनी जगह छोड़ दी और तेज़ी से बच्चों को कवर करते हुए कैंप के अंदर एक सुरक्षित कोने में जाकर खड़े हो गए।
हम जो हकीकत में देख रहे थे वह ‘पैरलल सिनेमा‘ के किसी झकझोड़ देने वाले दृश्य से कम नहीं था। हालांकि, ‘नाटकीयता का तत्व‘, संवादों की रचनात्मकता और सृजनात्मक अभिनय सिनेमा में पीड़ा के प्रसंगों को हकीकत से भी अधिक घनीभूत कर देता है; किन्तु वास्तविकता का रंग–रूप सदैव ही आभासी कैनवास से अधिक गाढ़ा होता है। आँधी-तूफान नें सबको तितर-बितर कर दिया। तेज़ बारिश होने लगी सब अपना सामान समेट कर सुरक्षित स्थान पर रख रहे थे… वहीं बच्चे पानी के साथ खेल कर रहे थे और एक दूसरे को छेड़नें में मशगूल थे।
टेंट पर पानी भर जाने से वह नीचे को झुकने लगा था बचाव के लिए भगाणा साथियों नें चारों तरफ लगे बांस के डंडों को इस मोड पर पकड़ लिया की वह गिरे नहीं। पिछली बार बारिश से बचने के लिए जो सुराख टेंट में किए गए थे उनसे भी पानी टपक रहा था जिससे बचने के लिए बाल्टी और पतीले लगा दिये गए थे … ‘बाकी बचे बर्तन भी अपनी बारी आने का इंतज़ार कर रहे थे‘।
कैसी बिपदा थी यह !
जिस जमीन पर दरियाँ बिछी हुई थीं अब वहाँ कीचड़ उभर आया था। अपना सिर छुपाएँ या फिर सामान को बचाएं यह सवाल कैंप के हर सदस्य के मन में घुड़क रहा होगा। … इसी बीच एक लड़की प्रियंका नें हमारा हाथ बहोत प्यार से खींचते हुए कहा ‘ ए दीदी ! तुम यहाँ आ जाओ … नहीं भीज जाओगी‘ । उस बच्ची का कोमल स्पर्श और अधिकार से हमारा हाथ पकड़ लेना हम अब भी महसूस कर सकते हैं। प्रियंका वही लड़की है जिसे कल अंधेरा अधिक हो जाने की वजह से उनकी माँ नें पढ़ने से भेजने के लिए माना कर दिया था।
आज बच्चों को बगैर पढ़ाये ही हमें वापस लौटना पड़ा। धीमी – धीमी बारिश में हम नजर झुकाये चले जा रहे थे। हर तरफ आँधी के अवशेष बिखरे पड़े थे। सैकड़ों पेड़ों की टहनियाँ टूटकर इधर–उधर गिरी हुई थीं, जब तलक हम कैंप में थे तब तक बच्चों और औरतों से बातचीत चलती रही इसलिए यह अनुमान ही न हुआ की आंधी नें इतनी तबाही की है। जिस वक़्त आँधी-बारिश शुरू हुई उस समय कैंप में खाना बनाने की कवायद चल ही रही थी। चून गुंथा का गुंथा ही रह गया, मालूम नहीं वह रोटी बनाने के लायक बाकी रहा भी या नहीं… और छोटे बच्चों नें कब तक अपनी भूख को अपनी शरारतों में उलझा कर रखा … मालूम नहीं॥
आज हम उन बच्चों को यह विश्वास सौंपकर आए की वे डरें नहीं … झुके नहीं … जब अच्छे दिन नहीं रहे तो बुरे दिन भी अधिक समय तक नहीं रहेंगे। और यह विश्वास का यह गीत हमेशा याद रखें ‘हम होंगे कामयाब एक दिन ।‘