chiLdhOOd vAnishing in pOrn पोर्न में धुंधला होता बचपन

‘आजादी का अबीर इतना सम्मोहक है की तन मन सब इसमें रंग जाना चाहता है’. आज़ादी कीमती है और उससे अधिक कीमती है इसका जिम्मेदाराना इस्तेमाल लेकिन हमारी सामंती सोच, करिअर की भाग दौड़ और लक्ज़री जीवन की चाह नें हमारे बच्चों के सुनहरे हो सकने वाले भविष्य को बंधक बना लिया है. आँखें आश्चर्य से फट पड़ती हैं यह जानकर की किसी झुग्गी-बस्ती में या किसी रेलवे ट्रैक पर पांच से दस साल तक के बच्चे फ्लूइड, अफीम, गांजा का नशा कर रहे हैं और एक तंग झुग्गी में जमा होकर पोर्न देख रहे हैं. हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है की दिल्ली में कूड़ा बीनने वाले अधिकतर बच्चे अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा भोजन की बजाय अश्लील फ़िल्में अर्थात पोर्न देखने में खर्च कर रहे हैं.
सरल शब्दों में पोर्न का अर्थ है अश्लील. यह एक ऐसी गतिविधि है जिसका इस्तेमाल सेक्स आकांक्षाओं को उत्तेजित करने के लिए किया जाता है और जिसका कोई आध्यात्मिक, कलात्मक या साहित्यिक मूल्य नहीं है. यह विडिओ, फोटो, ड्राइंग, पेंटिंग, डिजिटल निरूपण या मीडिया के अन्य किसी फ़ार्म में हो सकता है. सात-आठ साल का एक बच्चा जो जननांग के जैविक-सामजिक अंतर से अनभिज्ञ है वह एक स्त्री और पुरुष के शारीरिक सम्मिलन की हिंसापूर्ण वृति को देखता है उसके अपरिपक्व दिमाग और नाजुक मन पर इसका क्या असर होता होगा इसकी कल्पना कर पाना भी असहज है. लेकिन यह सब आपके हमारे आस पास ही हो रहा है. सेक्स के इस रूप से कच्ची उम्र में परिचित होना बच्चों के जैविक भविष्य के लिए बेहद खतरनाक है. पोर्न बच्चों की रचनात्मकता को विकृत कर रहा है बच्चे समय से पूर्व अपरिपक्व हो रहे हैं उनका स्वभाव चिडचिडा और हिंसक होता जा रहा है जो ना तो उनकी उम्र के अनुकूल है और ना ही हमारे सामाजिक परिवेश के.


     हाल के वर्षों में ब्रिटिश अखबार ‘द इंडिपेंडेंट’ और नेपाल के एक संगठन ‘चाइल्ड वर्कर्स इन नेपाल कंसर्न सेंटर ‘(सीडब्ल्यूआईएन)  नें भी अपनी सर्वे रिपोर्टों में बताया है की पोर्न साईट लगातार देखने से बच्चों के मन और व्यवहार पर बहोत बुरा असर पड़ रहा है. पोर्न अब इतना आम हो चुका है की ग्यारह वर्ष की उम्र तक के बच्चे किसी न किसी रूप में इससे परिचित हो चुके होते हैं. इन्टरनेट पर होने वाले सर्च में से 25 फ़ीसदी सर्च पोर्न से सम्बंधित होते हैं और हर सेकण्ड कम से कम 30,000 लोग इस तरह की कोई साईट देख रहे होते हैं.

इस समस्या की जड़ कहाँ है ? आखिरकार बच्चे और किशोर पोर्न की तरफ आकर्षित क्यों हो रहे हैं ?? बाल मनोविज्ञान कहता है की बच्चे अटेंशन चाहते हैं, वे अपने प्रश्नों व जिज्ञासाओं को लेकर अभिभावकों और अध्यापकों की प्रतिक्रिया चाहते है. लेकिन ना तो स्कूल और ना ही घर-परिवार उनकी जिज्ञासाओं का सही तरीके से शमन कर पा रहा है. प्रत्येक स्तर पर ‘इग्नोरेंस’ का यह भाव किशोरों को एक ऐसी भ्रामक किन्तु आकर्षक दुनिया की और ले जाता है जो उनके उम्र से उपयुक्त नहीं है. पोर्न की दुनिया ऐसा ही एक आकर्षण है. पोर्न तक किशोरों के एक समूह की पहुँच इसलिए है की उसके पास पैसा है और दूसरे समूह तक इसलिए है की उसे मनोरंजन का इससे बेहतर और अपेक्षाकृत सस्ता साधन कोई और नहीं दिखता.
जहाँ तक झुग्गी-बस्तियों का सवाल है ‘स्लम कल्चर’ में संतान होने का मूल्य एक सामाजिक दायित्व के रूप में स्थापित नहीं है वहाँ आमतौर पर बच्चों का मूल्य श्रमजीवी रूप में है इसलिए बच्चों की शिक्षा को वहां महत्वपूर्ण नहीं समझा जाता. पुनः प्रशासन की प्रकृति भी यहाँ के शिक्षा इन्फ्रास्ट्रक्चर को लेकर उदासीन है. इस सन्दर्भ में मुख्यधारा के बच्चों की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है वहां बच्चों की शिक्षा एक अनिवार्य मूल्य है किन्तु, मुख्यधारा के अभिभावकों द्वारा बच्चों को शिक्षा संस्थानों में भेजे जाने के पीछे एक कठोर वास्तविकता यह भी है कि वे अपनें कुछ ख़ास दायित्वों को अपनी व्यस्तता के चलते परिवार से इतर संस्थाओं को हस्तांतरित कर सकें.
हमें यह बात समझनी होगी की बच्चों की प्राथमिक जिम्मेदारी घर परिवार और समाज की है यदि हमारी सामजिक संस्थाओं से बचपन को सही दिशा नहीं मिल पा रही है तब शिक्षा की कोई निजी अथवा सरकारी संस्था भी बच्चों में इसका विकास नहीं कर सकती. वर्तमान तकनीकी समय में इन्टरनेट और स्मार्ट फोन नें पोर्न की पहुँच को बहोत सस्ता और सुलभ बना दिया है. ऐसे में अभिभावकों का अपनी सासामाजिक भूमिकाओं में विफल होना और परिवार से भावनात्मक जुड़ाव की कमी बच्चों के इस मानसिक भटकाव के लिए स्पेस देता है.
   आश्चर्य की बात है कि हमारे साहित्य में बच्चों के लिए कोई स्थापित कोना नहीं है. बच्चों के लिए ज्ञानवर्धक पत्रिकाओं की या तो कमी है या फिर बच्चों तक उनकी पहुँच नहीं है. हमारे नागरिक समाज का चरित्र भी बालमन से कोई विशेष सरोकार नहीं रखता.बच्चो और किशोरों के लिए रुचिकर, ज्ञानवर्धक और रोचक कार्यक्रम किसी चैनल की प्राथमिकता में नहीं हैं. हिंदी चैनल में तो स्थिति और भी खराब है बच्चे और उनसे सम्बंधित समस्याएं प्राय: किसी ‘टाक शो’ का हिस्सा नहीं होती. इसके विपरीत मीडिया और इन्टरनेट के माध्यम से किशोरों में इस तरह की चलताऊ भाषा का प्रसार हो रहा है जो अपनी प्रकृति में हमारी समृद्ध भाषाओँ के लिए तो एक चुनौती है ही महिलाओं के प्रति एक मनगढ़त और हिंसात्मक परिवेश को भी संस्थागत कर रही है. खेलों को लेकर सरकार व प्रशासन और हमारा समाज सब उदासीन हैं. इसलिए भी किशोर पीढ़ी मनोरंजक, आकर्षक और सरलता से उपलब्ध किन्तु खतरनाक साधनों पर फोकस कर रही है.
बच्चों एवं किशोरों के लिए शिक्षा, खेल एवं करिअर तीनों ही दृष्टि से गुणवत्तापरक गाइडेंस, काउंसलिंग और इन्फ्रास्ट्रक्चर का अभाव है. मानव विकास संसाधन मंत्रालय को चाहिए की वह इस प्रकार के कदम उठाये जहाँ स्कूल के पाठ्यक्रम में किशोरों की मानसिक परिपक्वता के अनुकूल एवं रुचिकर भाषा में सेक्स शिक्षा का प्रावधान संभव हो सके. शिक्षा संस्थानों के माध्यम से प्रति माह बच्चों एवं अभिभावकों के लिए इस सन्दर्भ में मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग की व्यवस्था की जानी चाहिए. स्कूल व प्रशासन को ऐसे निर्देश हो जहाँ वे अपना पाठ्यक्रम इस प्रकार से डिजाइन करे जिसमें बच्चों के स्वास्थ्य एवम शारीरिक विकास को खेलों के माध्यम से संभव हो. परिवार और बच्चों के मध्य संवाद का क्रम किसी भी स्थिति में कमजोर नहीं पड़ना चाहिए. स्थिति की गंभीरता के देखते हुए सायबर कानूनों पर सख्ती से अमल किया जाना चाहिए. नशा करने वाले किशोरों के पुनर्वास की व्यवस्था नागरिक संस्थाओं के माध्यम से की जाए.
अंत में, यदि हम आधुनिक हो रहे हैं और तकनीक तक हमारी पहुँच आसान हो रही है तो आवश्यक हो जाता है की बदलते परिवेश के अनुकूल सामाजिककरण की तकनीकों और संस्कारों का भी आधुनिकीकरण हो अन्यथा इसके गंभीर परिणाम हमारे बच्चों को भुगतने होंगे. बच्चे हमारी सामाजिक विरासत हैं और पोर्न इस विरासत का क्षय कर रहा है इसलिए अब हमें सावधान हो जाना चाहिए .
Chandrakanta

Recent Posts

श्री शिवताण्डवस्तोत्रम् Shri Shivatandava Strotam

श्री शिवताण्डवस्तोत्रम् Shri Shivatandava Strotam श्री रावण रचित by shri Ravana श्री शिवताण्डवस्तोत्रम् Shri Shivatandava…

5 months ago

बोल गोरी बोल तेरा कौन पिया / Bol gori bol tera kaun piya

बोल गोरी बोल तेरा कौन पिया / Bol gori bol tera kaun piya, मिलन/ Milan,…

5 months ago

तोहे संवरिया नाहि खबरिया / Tohe sanwariya nahi khabariya

तोहे संवरिया नाहि खबरिया / Tohe sanwariya nahi khabariya, मिलन/ Milan, 1967 Movies गीत/ Title:…

5 months ago

आज दिल पे कोई ज़ोर चलता नहीं / Aaj dil pe koi zor chalta nahin

आज दिल पे कोई ज़ोर चलता नहीं / Aaj dil pe koi zor chalta nahin,…

5 months ago

हम तुम युग युग से ये गीत मिलन के / hum tum yug yug se ye geet milan ke

हम तुम युग युग से ये गीत मिलन के / hum tum yug yug se…

5 months ago

मुबारक हो सब को समा ये सुहाना / Mubarak ho sabko sama ye suhana

मुबारक हो सब को समा ये सुहाना / Mubarak ho sabko sama ye suhana, मिलन/…

5 months ago

This website uses cookies.