भावना प्रकाशन
‘लोकतंत्र की चौखट पर रामखेलावन’ रणविजय राव जी का प्रथम व्यंग्य संग्रह है। पुस्तक के कथानक की यात्रा आवरण से ही आरम्भ हो जाती है। लोकतंत्र, चौखट और रामखेलावन – शीर्षक के अगल बगल से झाँक रहे ये तीनों उपलक्ष महज शब्द न होकर प्रतीक हैं। लोकतंत्र एक जीवन पद्यति है जो संसद तक पहुँचते हुए राजनीतिक प्रणाली में तब्दील हो जाती है। चौखट मान-मर्यादा, सुरक्षा और देहरी का प्रतीक है। बेईमान व्यवस्था के अधबीच रामखेलावन ईमानदारी का प्रतीक है। Satire
पुस्तक के आवरण पर एक निगाह करेंगे तो – एक मुस्कुराता हुआ जनप्रतिनिधि बड़ी बेशर्मी से संसद की छत्त पर ऊँघता हुआ दिखाई पड़ेगा। मंत्रियों और नेताओं ने किस तरह अपने आचरण से संसद को प्रहसन का विषय बना दिया है यह जगजाहिर है। पुलिस (कानून), प्रशासनिक अधिकारी (प्रशासन), नेता (सत्ता) और चोर (विपथगमन) का एक ही एक ही स्तर पर खड़े हैं, उनका उद्देश्य एक ही है ‘धन’ इसलिए उनके ख्वाबों ख्यालों में भी नोट ही घूम रहे हैँ। उनके ऐन सामने फटेहाल और धंसी हुई आँखों वाला एक कंकालनुमा आदमी पछाड़ खाकर गिरा पड़ा है। उसकी जमा पूंजी एक फूटा हुआ मटका और अन्न से रिक्त थाली वहीं पड़ी है। यह व्यक्ति लोकतंत्र में अपना सर्वस्व लुटा चुका आदमी प्रतीत होता है। आवरण पृष्ठ मानीखेज है जिसकी बहुस्तरीय व्याख्या की जा सकती है ।
तकनीक ने संबंधों में जो अंतराल पैदा किया था कोरोना नाम की महामारी ने उसे अधिक गहरा कर दिया। यह एक ऐसा विकृत दौर रहा जब मानवीय संवेदनाओं को शून्यता के स्तर तक छलांग लगाते हुए हम सभी ने देखा है। सामाजिक घुलनशीलता में नासूर बनकर दखल देती सामाजिक दूरी को लेकर व्यंग्यकार की चिंता संग्रह में मुखर है। ‘कबीरा खड़ा बाज़ार में’ के पंच मारक हैं। बतौर कथानक, हमें यह इस संग्रह की प्रतिनिधि रचना भी लगी। व्यंग्य की आपकी शैली कोमल है। संग्रह में कुछ बड़े ही रोचक शब्द पढ़ने को मिले जैसे ‘शाम का झुटपुटा’ ।
चूँकि व्यंग्यकार ने ‘मन की बात’ में पाठकों के अमूल्य सुझाव मांगकर खतरा मोल लिया है तो अब भुगतिए –
लेखक कविता के साथ व्यंग्य लेखन भी करते रहे हैं। कविता मन की विसंगतियों का विरेचन करती है और व्यंग्य समाज और मन दोनों की विसंगतियों का विरेचन करने का माद्दा रखता है। इस दृष्टि से हमने उपरोक्त व्यंग्य संग्रह को देखने की कोशिश की है। बाकी विस्तृत विवरणों के लिए पाठक यह संग्रह पढ़ सकते हैँ।
रणविजय जी भविष्य में आपके लेखन के तेवर और व्यंग्य भाषा की धार और पैनी हो। व्यंग्य लेखन में आपकी उपस्थिति सुखद है।
शुभकामनाओं सहित
चंद्रकांता
पालमपुर
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