‘मीडिया विमर्श: तमिल मीडिया विशेषांक’ तमिल हिंदी पत्रकारिता का सेतुजनसंचार की त्रेमासिक पत्रिका मीडिया विमर्श के तमिल मीडिया विशेषांक आवरण में तमिल संस्कृति का प्रतिरूप झलकता है। पत्रिका का अतिथि संपादन डा सी जयशंकर बाबु ने किया हैं जो पंडीचेरी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष हैँ। उन्होंने तमिल भाषा में राजनैतिक पत्रकारिता की प्रबलता और तमिल मीडिया के बहुआयामी विकास पर भी जानकारीप्रद आलेख लिखा है। आरम्भ में ही भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी का लिखा संपादकीय महत्वपूर्ण व पठनीय है जो आँकड़ों सहित इस बात के प्रति आश्वास्त करता है कि हिंदी के अस्तित्व को कोई खतरा नहीं है और 2050 तक वह विश्व की सबसे अधिक शक्तिशाली भाषाओं में एक होगी! आपने प्रयोजनमूलक हिंदी की हिंदी भाषा के विकास में भूमिका को महत्वपूर्ण माना है। एक ऐसे समय में जब विशेषकर साहित्य व पत्रकारिता में तमाम नकारात्मक प्रवृत्तियों का ठीकरा बड़ी ही साहूलियत से युवाओं के माथे फोड़ दिया जाता है, सम्पादकीय में युवाओं के महत्व को स्वीकार करना सुखद लगता है। इसी क्रम में रेडियो टेलीविजन कॉलम में युवा स्नातक छात्रा वैष्णवी का लेख देखकर अच्छा लगा। विशेषाँक के अधिकांश आलेख महिलाओं ने लिखे हैँ।
तमिल पत्रकारिता का उद्भव व विकास, कल्कि कृष्णमूर्ति की तमिल पत्रकारिता में भूमिका,आधुनिक तमिल पत्रकारिता, प्रिंट मीडिया के सुधार और तमिल पत्र पत्रिकाओं के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान पर भी आलेख हैँ। तमिल विशेषाँक से बहुत सी रोचक जानकारियां हमें मिली जिनमें एक यह भी हा कि श्रीलंका, रंगून सिंगापुर, मलेशिया और कनाडा में तमिल पत्रकारिता की उपस्थिति रही हैं। एस. वरदराजन ने अंग्रेजी में लिखे अपने आलेख में हिंदी और तमिल को जोड़ने वाले तत्वों के बारे में बताया है। तमिल सिनेमा के विविध पक्षों पर संग्रहण इस विशेषाँक की यूएसपी है। चूंकि सिनेमा में हमारी व्यक्तिगत रुचि है तो हमें इससे जुड़े आलेख देखकर प्रसन्नता हुई। ‘एक दूजे के लिए’ फेम निर्देशक के. बालचंदर की फिल्मों में नारी के विविध रुपों, तमिल सिनेमा के नवरत्नों और तमिल संगीत की महिला त्रिमूर्ती एम एस सुब्बुलक्ष्मी, पट्टम्माल और वसंत कुमारी के बारे में जानना अत्यंत सुखद लगा। तमिल सिनेमा में शास्त्रीय संगीतकारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। तमिल फिल्मों के संगीत निर्देशक रमणी भारदवा के बारे में विशेष आलेख है। Tamil Media Visheshank
कुछ और बातें उत्तर पट्टी के लोगों के लिए जानना रुचिकर होगा- 1)तमिल सिनेमा को कॉलिवुड कहते हैं। 2) नटराज मुदलियार तमिल फिल्मों के दादा साहब फाल्के थे। 3) ‘कीचक वध’ तमिल की पहली मूक फिल्म थी और ‘कालिदास’ पहली सवाक फिल्म।4)आलम आरा के सेट पर ही तमिल की पहली सवाक फिल्म ‘कालिदास’ का निर्माण हुआ क्योंकि दोनों के निर्माता अरदेशिर ईरानी थे।5)तमिल की पहली रंगीन फिल्म ‘किसान कन्या’ नाम से बनी। तमिल साहित्य की किसी कृति पर बालीवुड़ में सिनेमा रचा गया है? और एक आलेख टॉलीवुड और कॉलीवुड के तुलनात्मक अध्ययन पर भी होता तो यह अंक समृद्ध होता। तमिल भाषा में रेडियो कार्यक्रम पर भी लेख है।
हमें यह जानने की उत्सुकता है कि तमिल रेडियो(क्षेत्रीय) में किसी हिंदी उद्घोषक को क्या क्या समस्याएँ आती हैँ! इस पर बात होनी चाहिए थी। कुल मिलाकर आप जानेंगे कि जो चुनौतियां हिंदी पत्रकारिता की हैँ लगभग वही चुनौतियां तमिल पत्रकारिता के सामने भी हैं। अंत में हमारे कुछ सुझाव भी हैँ
1) तमिल बाल साहित्य पर थोड़ा विस्तार से बात की जानी चाहिए थी। 2)तमिल मीडिया विशेषांक में इंदिरा डांगी की कहानी के पीछे क्या तर्क है? तमिल मूल की कोई अनुवादित कहानी होनी चाहिए थी या कम से कम तमिल संस्कृति को दर्शाती हुई किसी कहानी का चुनाव किया जाना चाहिए था। 3)मूल रूप से तमिल में लिखे गए महत्वपूर्ण जनसंचार आलेखों का अनुवाद भी दिया जाना चाहिए था यह अंतरसंस्कृति दस्तावेजीकरण की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होता। ‘मीडिया विमर्श’ को शुभकामनाएं। संग्रहणीय अंक है। भारतीय पत्रकारिता के समग्र बोध हेतु सभी को पढ़ना चाहिए। यह पत्रिका पत्रकारिता के छात्रों और पाठकों के लिए तो महत्व पूर्ण है ही मेरे जैसे कूप के मेंढकों को कूप से बाहर निकालने का काज करती है। शुक्रिया।आशा है भविष्य में अन्य भाषी मीडिया विमर्श भी उपलब्ध होंगे। #मीडियाविमर्श #sanjaydwivedi
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