wOman On wHeels चार पहियों वाली औरतें

The article relates to the struggle of a woman who supports her ailing husband by ferrying passengers on the Battery Rickshaw. Evoking economic freedom, this is just one such story where women from underprivileged background are defying sex prejudices and hitting the roads, competing with Men shoulder-to-shoulder! A step ahead to celebrate… Let’s read on.

सुनों रिक्शावाली ! हमें आप सभी औरतों पर गर्व है ..

बीते मंगलवार को बहोत दिनों बाद घर से बाहर आना हुआ. आजकल दिल्ली में बैटरी से चलने वाले रिक्शे फैशन में हैं. मौसम में बेहद उमस थी जो हाल ही के महीनों में शरीर पर चढ़ आई अतिरिक्त चर्बी के साथ मिलकर मिजाज़ को और अधिक खस्ता किये जा रही थी. बहरहाल गली से बाहर हमने सड़क पर आकर देखा तो एक बैटरी वाला रिक्शा खड़ा हुआ था. तयशुदा रास्ते के लिए हमने रिक्शा किया करीब २० मीटर ही चले होंगे अभी और देखा एक महिला रिक्शा चला रही थी. ख़ुशी और आश्चर्य से आँखों की पुतली फ़ैल गयी और मन रीझकर कुप्पा हो गया. हमारा रिक्शा कुछ देर के लिए रुका और तभी वह रिक्शावाली महिला उतर कर हमारी और आने लगी और रिक्शावाले भैया से पूछने लगी की ‘जिस वक़्त कोई सवारी ना हो तब रिक्शा को कहाँ पार्क किया जाए ?’. उनका बातचीत का संक्षिप्त दौर खत्म होने पर हमने उस महिला से पूछा
‘दीदी आप रिक्शा चलते हो !’ वहां से मुस्कुराते हुए ज़वाब आया ‘हाँ’ कभी-कभी खाली वक्त में चला लेते हैं जब ये (पति) नहीं चला रहे होते’.

महिला नें अपना नाम रघुला बताया जो पास ही की पुनर्वास बस्ती राजीव बस्ती (विवेक विहार, दिल्ली ) में रहती थी. हमने उनका एक फोटो खींचने की रिक्वेस्ट की पहले तो वह शर्माने लगीं लेकिन जब हमने उन्हें समझाया की उनका फोटो देखकर और भी महिलायें उनसे प्रेरणा लेंगी और हम उनके बारे में लिखेंगे भी तब थोड़ी देर की झिझक के बाद वो तैयार हो गयी. हमने उनका फोटो लिया तो देखा आगे वाली सीट पर उनके साथ उनका बच्चा भी बैठा हुआ है. बच्चे की उम्र शायद दस-बारह साल के आस-पास रही होगी. बच्चे को कुछ देर के लिए देखकर हमने आब्जर्व किया की वह ‘स्पेशल चाइल्ड’ है उसके शरीर का विकास उसकी उम्र के उपयुक्त सामान्य नहीं था. हालांकि, बच्चे के विषय में रघुला से बात नहीं हो पाई. बाद में हमें मालूम हुआ की औरतें पिछले कुछ समय से औरतें भी बैटरी वाला रिक्शा चला रही है और फिर खुद पर गुस्सा भी आया की हमें ये बात मालूम नहीं थी. दिल्ली में पिछले दो सालों से ऐसे रिक्शा चल रहे हैं.

जिन पहियों पर कभी सभ्यता के विकास की इबारत लिखी गयी थी आज वही पहियें इतिहास में अनचीन्हे रह गए महिलाओं के क़दमों को मज़बूत बना रहे हैं.
शाबास ! रघुला शाबास ! रघुला का फोटो आप सभी के साथ साझा कर रहे हैं. अँधेरा होने की वजह से फोटो बहोत स्पष्ट नहीं है. जिस रिक्शा पर हम बैठे थे उसे ‘नंदा भाई’ नाम के एक व्यक्ति चला रहे थे उनके बारे में भी एक दिलचस्प जानकारी आप दोस्तों से साझा करने के लिए अभी बाकी है. नन्दा भाई की कहानी के साथ फिर मिलते हैं …
क्रमशः
चंद्रकांता              
( नोट: यह फोटो रघुला का नहीं है लैपटाप फार्मेट करते वक़्त वह तस्वीर डिलीट हो गयी.)
Chandrakanta

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