हम औरतें
हमेशा भीड़ से घिरी रहती हैं
जैसे मधु-मक्खियों से घिरे रहते हैं सुमन
अहंकार इतना कि अयस भी पिघल जाए
कृतज्ञता ऐसी की वृक्ष भी छोटा महसूस करें
कपोलों से कोमल
प्रकृति से कठोर
गहन तम में खि-ल-खि-ला-ती विभोर
आप समझते हैं
हम औरतें बेहद शिकायती होती हैं
कान की कच्ची
और कभी बहोत पकाती हुई
लेकिन आप कभी नहीं पढ़ पाते
एक औरत का एकांत
नहीं सुन पाते उसकी चुप्पी
न ही सूंघ पाते हैं उसका समर्पण
एक्स्क्यूज़ मी !
आपको समर्पित होकर रह जाना उसकी ड्यूटी नहीं हैं
अमूमन, उसकी तासीर है
तितर-बितर रहना
किन्तु, आपके गैर-जरूरी से सामान को भी सहेजकर रखना
उसमें साहस है
लेकिन वह साहसी नहीं हो पाती
उसमें विद्रोह है
लेकिन वह उसे क्रांति की सीमा तक नहीं निभा पाती
उसमें ताप भी है
मगर वह खुद जल जाती है
एक्स्क्यूज़ मी !
जल कर खाक होते जाना उसकी नियति नहीं है
उसे कभी घूंघट में छिपाना पड़ता है, तन को
कभी मेकअप से
कभी संस्कारों से बहलाना पड़ता है, मन को
कभी ब्रेक अप से
एक औरत घर की बेजान दीवारों से भी
रिश्ता गांठ लेती है
घर में पार्टी चल रही है
और वह अकेली है
एक्स्क्यूज़ मी !
अकेले रह जाना उसका चयन नहीं है
हम औरतें
हमेशा भीड़ से घिरी रहती हैं
जैसे मधु मक्खियों से घिरे रहते हैं सुमन ..
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