( सेवड़ी रोटियाँ और जले आलू का एक अंश )
नगीना सेठ के घर से आए बायने को देखकर वह रोमांचित हो गई। उसके पकवानों की कल्पना कर उसके मुंह में पानी आ गया। लेकिन उन्हें पति के साथ खाने का सोचकर, न उसने खुद खाया और न बच्चे को ही दिया। लेकिन रात में थके-मांदे काम से लौटे पति को जब उसने वो खाने को दिया तो… खुशी के उस क्षण को दर्ज कर पाना बहुत मुश्किल है।
बस इन्हीं शब्दों में कहा जा सकता है कि जब नगीना सेठ के यहां से शादी का खाना बतौर ‘बायना’ भोज गया तो वह उन चीजों को देखकर इतना खुश हुई कि उसके मुंह में पानी आ गया। खाना क्या, तरह-तरह की चीजें थीं। पूड़ी,कचौड़ी, खस्ता, चार-पांच तरह की सब्जियां, रायता, बूंदी, काले जाम वगैरह-वगैरह। उसने जल्दी-जल्दी उन चीजों को समेटा और कमरे के उस कोने में जिसे रसोई कहा जा सकता है, क्योंकि इस जगह पर खाना बनता है, रखा।
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रखते-रखते उसने एक बार फिर उन चीजों को गौर से देखा, जो तरह-तरह की खुशबू बिखेर रही थीं। उसकी आंखें फैली की फैली रह गयीं । जाहिर है कि उसके मुंह में फिर पानी आ गया। लेकिन उसने अपने को संभाला। हालांकि वह सोच चुकी थी कि उन चीजों को चख जरूर लेगी। उसने बच्चे को भी कुछ नहीं दिया। वह जिद कर बैठा। उसने उसे समझाया कि बाबू के आने पर देगी। वह ठनक गया। जमीन पर लोट गया। उसने उसकी परवाह नहीं की।
जिस धुन के हवाले वह हो गई थी, उसमें बहते हुए उसने एक बार फिर सोचा कि जब आदमी आएगा तो चौंक जाएगा। साफ-सुथरा घर और स्वादिष्ट भोजन देख कर तो भौरा जाएगा। यह सोचते-सोचते उसने झाडू उठाई और कमरा झाड़ने लग गई। बहुत छोटा कमरा था। दस फिट लंबा, दस फिट चौड़ा और करीब-करीब आठ फिट ऊंचा। लेकिन उसमें न लंबाई दिखती थी, न चौड़ाई और न ही ऊंचाई।
चूल्हे के सामने वाले कोने पर मोरी थी, जिसमें कीचड़-काई बड़ा-सा मुंह बाए थी। मोरी के मुहाने पर आठ-दस र्इंटें जमाई गई थीं जो करीब-करीब पानी-कीचड़ में आधी डूबी थीं। मोरी के ऊपर तांण में अल्लम-गल्लम चीजें यानी चार-छ: चैले, पंद्रह-बीस कंडे, टूटे छाते, जर्जर रजाइयां, ईंटें भरे थे।
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दीवार के कैलेंडरों और आले के भगवान जी को उसने नहीं छुआ। लग रहा था कि उसने छुआ तो सब कुछ ढह जाएगा! और फिर दीवार को ढंकने के लिए कुछ चाहिए। कहां से लाएगी वह कैलेंडर? फिर ये कैलेंडर उसके अपने आदमी की पसंद हैं। इन सबको देखकर थकान में टूटे होने के बाद भी कभी-कभी वह बदमाशी से मुस्कुराता है। अजीब तरह की सिसकारियां भरता है। और उसे कैलेंडर की हीरोइन कह बैठता। प्यार करता है। चूमता है। ऐसा न हो कि कैलेंडरों को हटाते ही वह आदमी के दिल से हटा दी जाए!
सांझ होते-होते उसने घर करीने से सजा दिया था। जब उसने ढिबरी जलाई तो बच्चे का ध्यान आया जो बाहर जमीन पर सो गया था। ध्यान आया कि उसने तो उसे कुछ खाने को नहीं दिया। उसने बच्चे को उठाया और उस पर चुंबनों की बौछार-सी कर दी। और रुआंसी हो आई। मन हुआ कि बच्चे को जगा दे और खाना खिलाए।
लेकिन यह सोच कर रहने दिया कि बाप के आने पर जगाएगी, तभी खा लेगा। अभी मुमकिन है, जागने पर रोने लग जाए। उसने बच्चे को खाट पर लिटाया और बच्चे के ख्याल में डूबी-डूबी बाहर, ड्योढ़ी पर आकर बैठ गई।
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