ए मालिक तेरे बंदे हम यह गंगाराम राजी जी के अद्यतन कहानी संग्रह का शीर्षक है। संग्रह नमन प्रकाशन, नई दिल्ली से आया है। संग्रह में कुल चौदह कहानियाँ है। इसके अतिरिक्त भारत के प्रतिष्ठित व नवोदित व्यंग्यकार लेखकों से गंगाराम जी की ऑनलाइन वार्ता भी शामिल इसमें है। गंगाराम राजी जी के उपन्यास ‘एक थी रानी खैरागढ़ी’ को हिमाचल साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत भी किया गया है अब तक आपके अठ्ठारह कहानी संग्रह आ चुके हैं। आइए अब प्रस्तुत संग्रह में शामिल कथाओं पर संवाद करते हैं- ‘फिर तेरी कहानी याद आई’ संवादपरक शैली की कहानी है। इस कहानी का विचारणीय पक्ष यह है की शब्दों ने अपनी यात्रा मौन के माध्यम से तय की है। इस मौन में जीवन की डोर और जीवन के सहयात्रियों के छूटने का भय मुखर है। संवाद परक कहानियों में जो नाटकीयता होती है वह मौन के माध्यम से उभर कर आई है। इस कहानी की सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें वैचारिक जुगाली, गढ़े हुए शब्द, कृत्रिम भाषा या भावातिरेक नहीं है।Hindi literature
‘तारे आसमान पर’ कहानी के केंद्र में गाँव है जो गाँव को एक मनोहारी मिथक के रीप में प्रस्तुत करती है। यह आदर्शवाद और नॉस्टेल्जिया से भरपूर कहानी है। कहानी इस मिथक को संप्रेषित करती है कि गाँव में भेद नहीं होते जबकि भूमि विवाद, संपत्ति विवाद और महिलाओं की स्थिति को यदि तार्किक दृष्टि से परखा जाए तो गाँव भी सामाजिक आर्थिक भेदों का अपवाद नहीं है, सांस्कृतिक दृष्टि से भले ही एक अलग स्थिति हो। ‘देसी घी की दावत’ सहज हास्य में गुम्फित एक रोचक कहानी है। लेखक ने कथानक को एक कंजूस व्यक्ति के इर्द-गिर्द बुना है। कहानी की सम्प्रेषणीयता इतनी अधिक है की पाठक आरंभ से ही इस कहानी से संवाद स्थापित कर लेता है। हमारी मित्र मंडली में कोई एक मित्र इस कंजूस प्रवृत्ति का होता ही है जो तमाम उलाहना और चुटकी के बावजूद अपने कंजूस आचरण में परिवर्तन नहीं लाता। यह कहानी हास्य शैली और हास्य रस का सरस उदाहरण है।
‘नो ममी नो’ बच्चों की घरेलू दिनचर्या और नाती पोतों से बुजुर्गों के सहज स्वाभाविक प्रेम को दर्शाने वाली एक सामान्य कहानी है यह कहानी रोजनामचा के एक पृष्ठ सी है।‘हैप्पी बर्थडे टू यू’ कहानी कोरोना के समय में अकेले पड़ गए बुजुर्ग की कहानी है। यह समाज में अड़ोस-पड़ोस की अनिवार्यता को संबोधित करने वाली कहानी है। कोरोना में कहानी के मुख्य पात्र और घर में अकेले रह गए कर्नल कटोच का बर्थडे मनाना हमारी बची हुई संवेदनाओं का प्रतीक है। एक ऐसे समय में जब व्यक्ति के समक्ष संवेदनाओं का संकट है मानवता सामूहिक अवसाद से जूझ रही है, यह कहानी प्रेरणा बन कर सामने आती है। मनोविज्ञान और बाजार के गणित की दृष्टि से भी यह कहानी महत्वपूर्ण है। ‘लो आ गया भराड़ी घाट’ भाषिक संरचना की दृष्टि से यह संग्रह की सर्वोत्तम कहानी है। इस कहानी का शब्द-व्यवहार बहुत सुंदर है। जिसने कहानी के सम्प्रेषण को द्विगुणित किया है। बेहद रोचक तरीके से यह कहानी पाठकों को बाँधे रखती है। हमारी समझ में इसे व्यंग्य कहानियों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। और अधिक क्या कहूँ! यदि आप यह कहानी पढ़ना चाहते हैं तो प्रकाशक या लेखक से संपर्क करें। इस कहानी का प्रभाव सिनेमेटिक है इस पर एक टेलीफिल्म अवश्य ही बनी चाहिए।
‘मेरा नाम जोकर’ और ‘वामन अवतार’ कहानियाँ ‘भराड़ी घाट’ प्रसंग का ही विस्तार हैं हालाँकि इनमें भराड़ी घाट जितना भाषिक औदात्य नहीं है। ‘तीसरी सवारी’, जर जोरू जमीन’, ‘मुक्कू’, ‘कब आएगी ट्रेन, हमने धनुष नहीं तोडा और ए मालिक तेरे बन्दे हम संग्रह की अन्य कहानियाँ हैं। इस कथा संग्रह में देस के छूट जाने की टीस है, परदेस का अकेलापन है, एकांत में रहने को विवश बुजुर्ग हैं, एक दूसरे की देह बन चुकी घलुआ मित्रताएं हैं, सूख चुकी मिट्टी में तरेड़ की माफ़िक उधड़े हुए रिश्ते हैं, बच्चों की मासूम हँसी सा गाँव का भोलापन है, घाघपन में आकंठ डूबा हुआ बाजारवाद है। ऐसा महसूस होता है कि अधिकांश कहानियाँ लेखक के मौलिक अनुभवों से फूटी हैं। ऐसे अनुभव जो जीवन के विविध प्रसंगों से सीधा उठाए गए हैं। फैंटेसी या कल्पना का प्रयोग इस कथा संग्रह में लगभग शून्य है इसलिए कथ्य के स्तर पर इन कहानियों की सम्प्रेषणीयता बहुत अधिक है एक औसत आम पाठक बगैर वैचारिक उलझन के इन कहानियों को प्रवाह में पढ़ सकता है। यही इन कहानियों का प्राप्य है। ये मार्गदर्शक कहानियाँ हैं। कहानियों के समाहार की शैली या क्लाइमेक्स पर लेखक की पकड़ अच्छी है। गंगाराम जी की कहानियों के बुनावट का सलीका प्रभावित करता है । ये साँस्कृतिक मेल-जोल की कथाएं हैं। सकारात्मक मूल्यों इन कहानियों में गाँव की और पहाड़ों की गंध है। यह इन कहानियों का सकारात्मक पक्ष है। हालाँकि ये कहानियाँ व्यक्ति के उस द्वंद से वंचित हैं जो आज के समय की मुख्य प्रवृत्ति है।
ये मार्गदर्शक कहानियाँ हैं। कहानियों के समाहार की शैली या क्लाइमेक्स पर लेखक की पकड़ अच्छी है। गंगाराम जी की कहानियों के बुनावट का सलीका प्रभावित करता है । ये साँस्कृतिक मेल-जोल की कथाएं हैं। सकारात्मक मूल्यों इन कहानियों में गाँव की और पहाड़ों की गंध है।‘लो आ गया भराड़ी घाट’ भाषिक संरचना की दृष्टि से यह संग्रह की सर्वोत्तम कहानी है। इस कहानी का शब्द-व्यवहार बहुत सुंदर है। जिसने कहानी के सम्प्रेषण को द्विगुणित किया है। बेहद रोचक तरीके से यह कहानी पाठकों को बाँधे रखती है। हमारी समझ में इसे व्यंग्य कहानियों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए।
लेखक ने कहीं चुहल की है तो कहीं चुटकियाँ भी ली हैं जो व्यंग्य (हास्य प्रधान) का सा रस देती हैं। लेखक ने अब तक व्यंग्य पर हाथ साफ किया है या नहीं यह हम नहीं जानते लेकिन उन्हें इसकी आजमाइश अवश्य ही करनी चाहिए। ये कहानियाँ पढ़ते हुए एक और बात हमने महसूस – जिस तरह की व्यंग्य शैली डॉ. लालित्य ललित की है कथा में उसी से मिलती जुलती शैली गंगाराम राजी जी की है, यह कहना थोड़ी जल्दबाजी भी हो सकती है लेकिन लालित्य ललित सर को खूब पढ़ा है, तो इस आधार पर यह वक्तव्य दे रहे हैं। गंगाराम राजी जी व्यक्तिगत जीवन में बेहद हंसोड़,जिंदादिल,सकारात्मक ऊर्जा और जिजीविषा से लबरेज व्यक्ति हैं, यही प्रभाव उनकी कहानियों का भी है। लेखक को हार्दिक बधाई। शुभकामनाएं।
अंत में, हम सभी लेखकों के लिए – फोन पर टाईपिंग, प्रिंट या फॉण्ट में हुए बदलाव, भाषा की स्थानीयता आदि के चलते लेखन में अक्सर गलतियाँ आ जाती है। यह त्रुटि लेखक की तरफ से हो या प्रकाशक की पठन के प्रवाह को बाधित करती हैं। यह संग्रह भी इसका अपवाद नहीं। दुःख की बात यह है जब हम खुद भी अपने पुराने लेख खँगालते हैं तो उनमें भी वर्तनी की त्रुटियाँ मिल जाती हैं। लेखक अपनी पांडुलिपि को धैर्यपूर्वक पुनः पढ़ें तत्पश्चात ही प्रकाशन के लिए भेजें और प्रकाशक भाषा की समझ रखने वाले सवेतन संपादक कंपोजीटर रखें। विनम्र निवेदन के साथ, आपकी चंद्रकांता।
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