दो टुकड़ा चाँद sPlit mOOn

12 years ago

मैं भीख हूँ  धूल से लबरेज़  खुरदरे हाथ-पाँव  सूखे मटियाले होंठ, निस्तेज  अपनी निर्ल्लज ख-ट-म-ली देह को  जिंदगी की कटी-फटी-छंटी …

चिट्ठी , मिटटी लगती थी..

12 years ago

कुछ भूल गए हैं हम..चिट्ठी लिखना .. बातें खट्टी हों कड़वी या बताशा   चिठ्ठी, मिटटी सी लगती थी आँखें…

एक खूबसूरत ..संजीदा ..एक मासूम सा एहसास..

12 years ago

प्रकृति की संपूर्ण रचनात्मकता जिस एक अनंत भाव में सिमट आती हों  ब्रह्माण्ड का समस्त सौंदर्य और मन की सभी अभिलाषाएं जिस एक प्रेरणा से…

फुर्सत हो .. तो जरा ठहरिये ..

12 years ago

 कभी-कभी आपको भी नहीं लगता कि हम केवल वह नोट बनकर रह गए है जिसे बाज़ार अक्सर अपनी सुविधा के…

तुमको! हर बार गढूँगी, खुद में..

13 years ago

जानती हूँ ! कि, दफ़न कर दिए जाएंगे  मेरी चाहतों के रोमानी सि-ल-सि-ले इतिहास के पन्नों में, एक दिन और…

तो बाँध लेती तुम्हे . .

13 years ago

कितने धागों में ..जो ये जान पाती तो बाँध लेती तुम्हे ..जाने नहीं देतीतुम कहते हो की मन का कोई ओर…

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