HIMACHALI DHAM हिमाचली धाम भोजन की अनूठी परंपरा
हिमाचल की धाम संस्कृति
‘साईं इतना दीजिये जामे कुटुंब समाय मैं भी भूखा न रहूँ साधू न भूखा जाये।’
प्रत्येक संस्कृति का अपना विशिष्ट भोजन संस्कार होता है। खील बताशों के बिना दिवाली, सेवई के बगैर ईद, केक के बिना क्रिसमस और पायसम के बगैर पोंगल का कोई सोच सकता है क्या ! शायद नहीं। साथियों भोजन का संबंध केवल स्वाद से नहीं समाज और सामूहिकता से भी है होता है। ग्लोबलाइजेशन और भौतिक संपन्नता ने अर्थव्यवस्था और राजनीति के साथ हमारे खानपान की संस्कृति को भी प्रभावित किया है। हमारे खानपान में विविधता आयी है और रसोईघर में एक किस्म का फ्यूजन देखने को मिला है। पारंपरिक व्यंजनों को नए तरीके से बनाया जाने लगा है।
लेकिन यह दुःख की बात है की एक तरफ घर परिवारों में साथ बैठकर भोजन करने की संस्कृति अब सिमटने लगी है और दूसरी तरफ खाने की बर्बादी अधिक होने लगी है। ऐसे माहौल में हिमाचल प्रदेश की धाम परंपरा सामूहिकता और मितव्ययता का एक अनुकरणीय उदहारण बनकर सामने आती है।
धाम क्या है? विवाह या अन्य शुभ अवसरों पर आयोजित सामूहिक भोजन को हिमाचल में धाम कहा जाता है धाम तैयार करने वाले खानसामों को बोटी कहकर बुलाया जाता है। बोटी एक पुश्तैनी व्यवसाय है जिन पर पारंपरिक तरीके से धाम को बनाने की जिम्मेदारी रहती है। भोजन केवल पकाने और खाने का ही नाम नहीं है भोजन में भावों का भी महत्वपूर्ण स्थान है । किस भाव के साथ भोजन पकाया गया है किस भाव से परोसा गया है और किस भाव से ग्रहण किया गया है वह भी महत्वपूर्ण है।
धाम एक संस्कृति है जिसमें उत्सव के आयोजन से कई दिन पहले घर की बड़ी बूढ़ी औरतें मांगलिक गीत गाते हुए मसालों को कूटती हैं और किसी साफ जगह पर 11 फुट लंबा 1 फुट चौड़ा और 10 फुट गहरा गड्ढा खोदा जाता है जहां भोजन के पकाए जाने की व्यवस्था की जाती है। खाना बनाने के लिए पीतल के बड़े बड़े संकरे मुंह वाले बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है जिन्हें चरोटी कहा जाता है। खाना बनाते हुए पूरी स्वच्छता बरती जाती है धाम में किसी किस्म के लहसुन या प्याज का इस्तेमाल नहीं किया जाता।
मूल रूप से धाम को शुद्ध देसी घी में पकाया जाता है।धाम में सादा चावल, तली हुई दालें, मधरा, राजमह, पनीर, कढ़ी ,माह की दाल, चने का खट्टा और अंत में मीठा भात यानी मीठे चावल परोसे जाते हैं। संपन्नता के अनुरूप धाम में व्यंजनों की संख्या घटती और बढ़ती रहती है लेकिन मोटे तौर पर 8 से 10 व्यंजन किसी भी धाम में तैयार किये जाते हैं। पूरे गाँव को धाम दी जाती है। धाम को परोसने का भी एक ख़ास तरीका है। धाम पत्तों से बने हुए बर्तनों यानी पत्तल पर परोसी जाती है। धाम में व्यंजन को परोसे जाने का एक निश्चित क्रम होता है लोगों को बैठाकर पंगत में खाना खिलाया जाता है और खाने सत्र पूरा होने से पहले कोई व्यक्ति उठ नहीं सकता। धाम की यह परंपरा 1000 वर्ष से भी अधिक पुरानी है। थोड़े बहुत फेरबदल के साथ हिमाचल के बारह जिलों में बारह तरह की धाम परोसी जाती है। काँगड़ा की धाम सबसे अच्छी और शुद्ध मानी जाती है। जिस पर अगले लेख में चर्चा की जाएगी।
धाम संस्कृति में भी काफी बदलाव आए हैं जैसे पत्तलों के स्थान पर प्लास्टिक की प्लेट में धाम परोसा जाने लगा है या लोग जूते पहनकर ही धाम खाने के लिए बैठ जाते हैं शहरों में बुफे धाम भी लगाया जाता है जहाँ खड़े होकर खाने की परम्परा है।
लेकिन कुल मिलाकर धाम ने न केवल सामाजिक संवाद और सामूहिकता को सहेज कर रखा है बल्कि अपनी प्रकृति में यह पर्यावरण सम्मत भी है। धाम के आचार व्यवहार को प्रत्येक भारतीय द्वारा अपनाया जाना चाहिए ताकि खानपान की भारतीय संस्कृति बनी रहे।
चंद्रकांता
पालमपुर, हमाचल प्रदेश
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