टॉयलेट – एक प्रेम कथा “पीरियड हो रहे हो तो घर के बाहर, हल्का होना हो तो खेत के बाहर, चिता जल रही हो तो शमशान के बाहर” । यह केवल ‘टायलट – एक प्रेम कथा’ का संवाद भर नहीं है यह हमारे समाज में एक औसत महिला की वास्तविक स्थिति है । ‘टॉयलेट – एक प्रेम कथा’ खुले में शौच की समस्या पर केन्द्रित है जिसे केशव ( अक्षय कुमार ) और जया ( भूमि पेडनेकर ) की प्रेम कहानी के माध्यम से विस्तार दिया गया है ।
ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय के अभाव को धार्मिक मान्यताओं से जोड़कर दिखाना और धरम के सामाजिक और निजी जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप को इंगित करना फिल्म का एक सुखद पहलू है
केशव और जया प्रेम विवाह करते हैं लेकिन विवाह की अगली सुबह ही जया को मालूम पड़ता है कि केशव के घर में शौचालय नहीं है. जया खुले में शौच से इंकार करती है और स्थितियाँ तलाक तक पहुँच जाती हैं । शुरुआत में जया को खुले में शौच को एडजस्ट करने कि सलाह देने वाला केशव जया के समझाने पर स्थिति को समझता है और जया की मदद से इस समस्या का समाधान ढूँढता है यही इस फ़िल्म की कहानी है । फ़िल्म देखते हुए आपको अहसास होगा कि प्रेम एक क्षणिक उत्तेजना नहीं है प्रेम एक संकल्प है, प्रेम जीने की और निबाह की एक प्रक्रिया है।
Aahana Kumra starrer web-series Betaal, streaming on Netflix, is a zombie-horror series of four uninteresting episodes.https://matineebox.com/betaal-review-why-this-netflix-web-series-doesnt-deserve-a-review/
ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय के अभाव को धार्मिक मान्यताओं से जोड़कर दिखाना और धरम के सामाजिक और निजी जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप को इंगित करना फिल्म का एक सुखद पहलू है . भूमि पेडनेकर ( जया ) और सहायक अभिनेता के रूप में दिव्येंदु शर्मा ( नीरू ) का अभिनय अच्छा है । भूमि में काफी पोटेनशियल है । केशव की भूमिका में अक्षय कुमार औसत है ।
आजकल हिन्दी फिल्मों में सहायक अभिनेता की भूमिका लगभग अनिवार्य सी हो गयी है और इन्होने अपनी सार्थक उपस्थिति भी दर्ज़ करवाई है । याद आता है कैसे क्लासिक सिनेमा में एक कामेडियन या दोस्त की भूमिका प्राय: हुआ करती थी लेकिन फिर नायक में ही कामेडियन और खलनायक की भूमिका गुंफित कर दी गयी । वर्तमान में सहायक अभिनेता के चरित्र को स्पेस देना एक अच्छा चलन है खासकर तब जबकि बालीवुड के स्थापित नायक खुद को चरित्र में न ढालकर अपने ‘टाइपड अभिनय’ से हमारे जैसे दर्शकों को बोझिल करते हों ।
स्क्रिप्ट के लिहाज से अनुपम खेर और सना खान का प्रसंग सस्ते मनोरंजन के अतिरिक्त क्यूँ जोड़ा गया यह हमारी समझ से बाहर है । फिल्म की शुरुआत में औरत भैंस और दूध को लेकर कुछ द्वियार्थी संवादों का होना भी बहोत खला जो की अश्लील तो है ही ठूँसा हुआ भी लगता है ।
Toilet- Ek Prem Katha में सरकार और ebay के अलावा और भी कई कंपनियों का विज्ञापन फिल्म में किया गया है । कुछ जगहों पर फिल्म के संवाद अच्छे हैं। फिल्म का गीत संगीत सामान्य लेकिन मधुर है । गीत के बोल कहीं-कहीं आपको अच्छे लगेंगे जैसे ‘हंस मत पगली प्यार हो जाएगा’ बहोतों को अपनी युवा अवस्था और ट्रक / मोहल्ला शायरी की याद दिलाएगा ।
फिल्म में इस पूर्वाग्रह को कई बार स्थापित किया गया है कि ‘औरते ही औरत की दुश्मन होती हैं’ कमोबेश यही धारणा समाज में भी प्रचलित है; लेकिन हम इससे सहमत नहीं हैं । औरतों की कंडिशनिंग ही ऐसे ताने-बाने में की जाती है कि उन्हें अपना सर्वस्व लुटाकर भी परम्परा को बचाना है ।
लेकिन ये परम्पराएँ बनाई किसनें ? इन्हें बनाया है घर और समाज के मुखिया नें । और यह मुखिया अपवादों को छोड़ कर पुरुष ही रहा है । इसलिए औरतों कि समस्याओं का ठीकरा उन्हीं के सर फोड़कर हम समस्या का सरलीकरण नहीं कर सकते जैसा कि Toilet- Ek Prem Katha में किया गया है । खैर, विषय की गंभीरता और उस पर आम जन की सीमित संवेदना के चलते एक बार फिल्म देखी जानी चाहिए. – chandrakanta
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