एक ख़त दामिनी के नाम A LetteR tO Damini

दामिनी , काश ! उसी दिन मैंने उसकी आँखें नोच ली होती जब पुरुष की तरह दिखने वाली उस काली ब-ह-रू-पि-या आकृति ने मुझे छुआ था.. छेड़ा था..भींचा –दबोचा था..

तो आज तुम बच जाती, आरुषि मरती नहीं और मुझे घर की तल्ख़ चारदीवारी में घुट-घुट कर जीना नहीं पड़ता।।तभी समाज से प्रश्न किया होता जब गली-नुक्कड़ के छि:-छोरों के मेरे बदन का इंच-इंच नाप देने पर ‘मुझे’ बुरका पहन लेने की हिदायत दी गयी थी, तो आज तुम्हारी देह निर्वस्त्र नहीं होती । जब-जब समाज नें मुझ पर माँ-बहन की गालियाँ गढ़ीं; मेरे स्वाधिकार मेरी स्वतंत्रता को वेश्या कहकर संबोधित किया तब-तब यदि मैंने उनकी ज़बान काट ली होती तो आज तुम्हारी देह को तुम्हारे अस्तित्व की पहचान नहीं बना दिया गया होता। अपने विवाह-संस्कार के वक़्त यदि मैंने सिन्दूर, मंगलसूत्र और कन्यादान की बेड़ियाँ के समक्ष आत्म-समर्पण नहीं किया होता तो आज तुम्हारे आत्म की इस तरह सार्वजनिक  हत्या नहीं होती। ‘तुम्हारी टूटी हुई आंतड़ियों, क्षत-विक्षत यौनांगों और चिथड़ा कर दी गयी देह पर हितोपदेश का यह अश्लील उत्सव नहीं मनाया जा रहा होता।’


  आह ! कि मैंने अपनी यह चुप्पी तब तोड़ी होती जब मैंने घर-गृहस्थी की दहलीज़ से बाहर कदम रखा और मेरे मस्तक पर बे-शरम बे-हया होने के आरोप गोद दिए गए. मैं फिर भी चुप रही। यदि उस वक़्त मैंने अपनी पीड़ा का हिसाब माँगा होता, तो आज तुम्हें, तुम्हारे औरत होने का दाम नहीं चुकाना पड़ता। उस सर्द-स्याह रात में अपनी ही देह की ओट में छिपकर सिसकता-बिलखता ठि-ठु-र-ता तुम्हारा अस्तित्व अखबार के पन्नों की सनसनी ना बनता। और तुम्हारे अस्मत-ए-चराग इण्डिया गेट पर यूँ जलाए-बुझाए नहीं जाते।

हमें माफ़ नहीं करना दामिनी
                                                               
Chandrakanta

View Comments

  • Demanding of the self, censuring the inner-me, the letter is more of celebration of the spirit of burning revulsion inside an unprejudiced and self-contained human being. Seldom one hears the daring roar challenging the self to bring about awakening inside in thousand others. Rationally and insistingly hatched, such an admission is virtuous, unprecedented and exemplary. Inspirational and Provoking.

  • हां, चंद्रकांता... हम सब वैसी स्त्रियां जिन्‍होंने अपने साथ होने वाली हिंसा को चुपचाप बर्दाश्‍त किया हम सब ऐसे दानव-पिशाच को बनाने के अपराधी हैं...हम अपराधी हैं दामिनी के...

  • बहुत गहरी सौच .. थोड़ा देर से ही सही अब कुछ ऐसा ही किया जाये।

    यहाँ पर आपका इंतजार रहेगा: शहरे-हवस

  • आप सभी दोस्तों को नए साल की शुभकामनाएं।
    आपकी रचनात्मक प्रतिक्रियाओं के लिए पुनः आभार।।

    चंद्रकांता

Recent Posts

नदिया किनारे हेराए आई कंगना / Nadiya kinare herai aai kangana

नदिया किनारे हेराए आई कंगना / Nadiya kinare herai aai kangana, अभिमान, Abhimaan 1973 movies…

11 months ago

पिया बिना पिया बिना बसिया/ Piya bina piya bina piya bina basiya

पिया बिना पिया बिना बसिया/ piya bina piya bina piya bina basiya, अभिमान, Abhimaan 1973…

11 months ago

अब तो है तुमसे हर ख़ुशी अपनी/ Ab to hai tumse har khushi apni

अब तो है तुमसे हर ख़ुशी अपनी/Ab to hai tumse har khushi apni, अभिमान, Abhimaan…

11 months ago

लूटे कोई मन का नगर/  Loote koi man ka nagar

लूटे कोई मन का नगर/ Loote koi man ka nagar, अभिमान, Abhimaan 1973 movies गीत/…

11 months ago

मीत ना मिला रे मन का/  Meet na mila re man ka

मीत ना मिला रे मन का/ Meet na mila re man ka, अभिमान, Abhimaan 1973…

11 months ago

तेरे मेरे मिलन की ये रैना/ Tere mere milan ki ye raina

तेरे मेरे मिलन की ये रैना/ Tere mere milan ki ye raina, अभिमान, Abhimaan 1973…

11 months ago

This website uses cookies.