कुछ संवाद परिवर्तन का एक पूरा विचार हमारे सामने रख देते हैं .यह संवाद भी कुछ ऐसा ही है .एक औरत की निजता पर केवल उसका अधिकार है।केवल वही तय करेगी की वह सेक्स के लिए तैयार है या नहीं।औरत हो, सेक्स वर्कर हो या नाचने गानेवाली हो अपने शरीर पर उसका अधिकार है और यह कोई शर्म की बात नहीं है .शर्म का हकदार तो वह समाज है जो इनसे जुड़े रूपकों को गढ़ता है और अपने फायदे के लिए मनमाना इस्तेमाल करता है .
फिल्म का कथानक आरा ( बिहार ) की एक लड़की के इर्द-गिर्द बुना गया है .अपनी जीविका के लिए वह ‘रंगीला डांस पार्टी’ ( पंकज त्रिपाठी ) में गाने और नाचने का काम करती है .पूरा मोहल्ला अनारकली के हुनर का दीवाना है . कहानी में हलचल तब आती है जब नशे में धुत्त शहर का वी.सी. ( संजय मिश्र ) एक पार्टी के दौरान अनारकली की गरिमा कम करने की कोशिश करता है . नाचने-गाने वाली के नाम पर वह उसे आसानी से उपलब्ध हो सकने वाली औरत समझता है और किसी भी कीमत पर पा लेना चाहता है . उसकी इस सोच को चुनौती देती है ‘अनारकली आफ आरा ‘.
फिल्म की कहानी साधारण है असाधारण है फिल्म का क्लाइमेक्स .जो इस फिल्म में डायरेक्शन का सबसे बेहतरीन हिस्सा है .अनारकली मंच पर एक नाटिका प्रस्तुत कर वी.सी. से अपना हिसाब बराबर करती है वह ‘धिन ताक धिन ताक धिन ताक धा’ की धुन गाते हुए वी. सी. के मुंह पर ताली पीटती है और बार बार पीटती है
Anarkali of Aarah
.क्या शानदार दृश्य है। नायिका हमारे समाज की सामंतवादी सोच की धज्जियाँ उड़ाकर रख देती है। दृश्य में स्वरा का अभिनय , पार्श्व में परदे पर वी. सी. की अश्लीलता का वीडियो और संगीत की ध्वनियों का इतना बढ़िया कॉर्डिनेशन हुआ है वहां पर की आप खुद को फिल्म में उतरा हुआ महसूस करने लगेंगे . यह फिल्मांकन कुछ कम रियलिस्टिक होने के बावजूद निर्देशक की क्रिएटिविटी का बढ़िया नमूना है। इसके बाद फिल्म का अंतिम दृश्य जहाँ नायिका वापस अपनी धुन में चली जा रहे है .वह बेफिक्र होकर अपने बाल पीछे की तरफ धकेलती है और यह क्षण उसकी जीत का नाद करता है .उस दृश्य में आप भी महसूस करने लगेंगे मानो अनारकली के जरिये दुनिया की हर औरत नें अपनी लड़ाई जीत ली हो।
Anarkali of Aarah के कथानक की सबसे खास बात यह है कि नायिका अपनी लड़ाई ख़ुद लड़ती है किसी अन्य की बैसाखियों पर नहीं।बीच में किसी दृश्य से पहले अनारकली की माँ का जिक्र आना भी एक समानांतर स्थिति को रचता है । फिल्म की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है। फिल्म में अनारकली का एक संवाद है जहाँ वह कहती है “मैं भी दूध की धुली नहीं हूँ..गाने बजाने वाले हैं लेकिन इसका ये मतलब नहीं की कोई भी आकर बजा जाए’..वह बताना चाहती है की काम और सेक्स दोनों ही महिला की अपनी च्वाइस हैं . लेकिन समस्या यह है की सामंतवादी और पूंजीवादी दोनों ही व्यवस्थाएं स्त्री को एक स्वतंत्र बुनावट के रूप में नहीं देखती.देखता तो लोकतंत्र भी नहीं है क्योंकि समाज की जिन धमनियों से वह से वह लोकतंत्र आया है उसने समाज को कम राजनीति को अधिक फायदा पहुँचाया है .
एक और बात फिल्म बहोत सहजता से आपको यह सन्देश देती है की एक महिला और पुरुष केवल सहभागी या दोस्त भी हो सकते हैं .फिल्म में अनारकली का ढोलक बजने वाले लड़के के साथ सम्बन्ध कुछ इसी तरह बुना गया है .वरना किसी औरत की मदद करने वाले पुरुष को अक्सर हिंदी फिल्मों में नायक या महिला का प्रेमी बना दिया जाता है . स्वरा का अभिनय बढ़िया है.पंकज त्रिपाठी को और भूमिकाएं मिलनी चाहिए गजब की सहजता है उनके अभिनय में .अच्छा अभिनय दर्शक की उम्मीद और बढ़ देता है .हीरामन ( इश्तेयाक खान ) का किरदार ओर उनकी सहजता आपको मोह लेगी। संजय मिश्र अपने किरदार में एकदम फिट हैं लेकिन किसी वी.सी. को इस तरह के किरदार में देखना खटकता है .
अविनाश दास किसी और चरित्र को खलनायक की भूमिका में बन सकते थे . Anarkali of Aarah का संगीत उम्दा है और फिल्म को गति देता है .संगीत रोहित शर्मा का है जिन्होंने ‘नाहम जणामी’ ( शिप आफ थिसस ) के लिए संगीत दिया था . हमें व्यक्तिगत तौर पर फिल्म का संगीत और गीत के बोल लाज़वाब लगे। इसे आप फिल्म का यू. एस. पी. कह सकते हैं।ध्वनियों , मुकरी, लोक शब्द, लोकस्टेज के गीत सबका प्रयोग खुलकर किया गया है .संगीत पर आप थिरकने लगेंगे .शायद स्थानीय वाद्यों /इंस्ट्रूमेंट्स का इस्तेमाल भी किया गया है .सारा सारा रा ,घन घनघोर, सरक सरक सरकिया, धिन ताक धिन ताक धिन ताक धा ध्वनियों का इतना सुन्दर प्रयोग है फिल्म संगीत में की आप आनंद से झूम उठेंगे.संगीत खनक से भरा हुआ है .
स्थानीय स्टेजगीतों से सजी है फिल्म और सभी प्लेबेक सिंगर्स की आवाज़ अच्छी है . Anarkali of Aarah फिल्म के गीत कर्णप्रिय हैं .अपने परिवेश के अनुसार हैं किसी को वे द्विअर्थी या अश्लील लग सकते हैं। यह समझ दर्शकों पर है .संवादों में स्थानीय भाषा का इस्तेमाल है और यदि आप यू. पी., बिहार की पृष्ठभूमि से नहीं हैं तो एक दो जगह आपको संवाद समझने में दिक्कत हो सकती है, कहीं- कहीं हमें भी दिक्कत हुई. अनारकली की कहानी फर्स्ट हाफ में भागती हुई सी लगी .कहीं- कहीं स्क्रीनप्ले कमजोर हुआ है .
फिल्म के संवाद अच्छे हैं संवाद ही किसी फिल्म को अरसे तक आपके दिमाग में बिठाये रखते हैं ।हां, फ़िल्म में यूनिवर्सिटी में जिस तरह नाच-गाने का आयोजन दिखाया गया है वह कम रियलिस्टिक लगा . अगर ऐसा होता है तो हमारी जानकारी में नहीं है। बाकी, अनारकली की पूरी टीम शाबासी की हकदार है .वेलडन .आप भी फिल्म देखने जाइये ,यह एक उम्दा फिल्म है, आप निराश नहीं होंगे.
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