रचना पाठ

प्रेम जनमेजय : मोची भया उदास

प्रेम जनमेजय : मोची भया उदास : स्वर चंद्रकांता

मेरी चप्पल टूट गई थी। मेरी चप्पल ‘पुरानी’ थी इसलिए टूट गई थी। नई चप्पल नहीं टूटती है। आजकल नया ब्रांड या मॉडल आने से नई चीज पुरानी हो जाती है, बदल ली जाती है। यूज एंड थ्रो देवी के आर्शीवाद से टूटती नहीं है। पुरानी ‘वस्तु’, घर की बाई, वाचमैन, कूड़ेदान आदि की शोभा बढ़ाती है। सुना हैं आज के बाजार में व्यक्ति भी वस्तु हो गया है। ‘पुराना’ हो गया व्यक्ति भी यूज एंड थ्रो देवी की कृपा से इस्तेमाल हो रहा है।

मैं और मेरी पत्नी अपने बेटे के घर में थे। बेटे ने हाईराईजर में आलीशान फ्लैट लिया था। कम कीमत में आलीशान फ्लैट लेना हो तो कुछ समय वीराने में रहने की आदत डालनी पड़ती है। आलीशान फ्लैट वो होता है जिसका कोई ‘पड़ोस’ नहीं होता है।

सुनिये युवा व्यंग्यकार लालित्य ललित का दिलचस्प व्यंग्य ‘पांडे जी बन गये प्रधानमंत्री’ https://gajagamini.in/pandey-ji-bane-pradhanmantri-lalitya-lalit/

मेरा बेटा बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करता है। उसकी कंपनी का मुख्यालय अमेरिका में है। जब भारत में दिन होता तो अमेरिका में रात होती है और जब भारत में रात होती है तो अमेरिका में दिन होता है। दिन तो काम करने के लिए बना है। इसलिए उसका दफ्तर तो दफ्तर है ही घर भी दफ्तर है।

मेरी चप्पल टूट गई थी। मैंने अपने बेटे से कहा – बेटा मेरी चप्पल टूट गई है।वो सुबहवाली हड़बड़ी में था। वैसे चाहे सुबह हो या शाम वो हड़बड़ी में ही होता है। उसने मेरी ओर हड़बड़ निगाह से देखा और तपाक से डाईनिंग टेबल पर रखे अपने लैप टॉप पर बैठ गया। कहने को लैप टाप आपकी गोदी में होना चाहिए पर अक्सर लोग उसकी गोदी में बैठे दिखाई देते हैं। उसके एक कान में इयर प्लग था। मुझे लगा उसने मेरी बात सुनी नहीं।

मैंने ‘अपने’ बेटे से फिर कहा – बेटा, मेरी चप्पल टूट गई है।

मैंने सुन लिया पापा, चिल… आपका ही काम कर रहा हूँ।’ उसने दूसरे कान से, जिसमें इयर प्लग नहीं लगा था, सुन लिया था।
पर तुम तो कंप्यूटर के समाने बैठे हो, अपना काम कर रहे हो।’
अपना नहीं आपका काम। आप तो जानते हैं यह कॉलोनी नई है और हम भी यहाँ नए हैं। मुझे यहाँ की शॉप्स की ज्यादा जानकारी नहीं है। गूगल सर्च में देख रहा हूँ आसपास कोई जूतों का शोरूम हो और वहाँ से नई चप्पल ले आना।’


नई की जरूरत नहीं है। बस थोड़ी सी टूटी है, कोई भी मोची पाँच मिनट में गाँठ देगा।
मोची तो पाँच मिनट में गाँठ देगा पर मोची को ढूढने में पाँच घंटे भी लग सकते हैं। इससे अच्छा है नई ले लो।
तुम कोई मोची ढूँढ़ दो… मैं उसके पास चला जाऊँगा।
गूगल सर्च पर मोची नहीं मिलेगा… मिला तो इस एरिया का नहीं होगा और महँगा होगा। लगता है मेरी कॉल आ रही है… अभी मेरे पास टाईम नहीं है। ऐसा करता हूँ शाम को सर्च करता हूँ और हो सकता है ऑनलाईन अच्छी डील मिल जाए।’ यह कहकर वह कंप्यूटर से उठ गया और दूसरे कान में इयर प्लग ठूँस लिया।

जैसे महापुरुष सत्य की तलाश में निकलते हैं, चुनावकाल में नेता वोटर की तलाश में निकलता है, पुलिसवाला शिकार की तलाश में निकलता है, मैं मोची की तलाश में निकला। चारों ओर किसी गंजे-सा खुला मैदान मुझे चुनौती दे रहा था कि मोची नामक बाल ढूँढ़ कर तो दिखा।

नैतिक मूल्यों-सा दुरूह मोची मुझे, भ्रष्टाचार मंत्रालय में ईमानदारी-सा, बचे पेड़ की छाँह में बैठा दिख गया। उससे कुछ दूरी पर पान, बीड़ी, सिगरेट और गुटखे वाले का खोखा था। जैसे सब्जी आदि की दुकान नई कॉलोनी की प्राथमिकता है वैसे ही पान, बीड़ी, सिगरेट और गुटखे वाले का खोखा भी। इसे खोलने के लिए बस पुलिस प्रभु की कृपा चाहिए होती है।

जैसे महापुरुष सत्य की तलाश में निकलते हैं, चुनावकाल में नेता वोटर की तलाश में निकलता है, पुलिसवाला शिकार की तलाश में निकलता है, मैं मोची की तलाश में निकला। चारों ओर किसी गंजे-सा खुला मैदान मुझे चुनौती दे रहा था कि मोची नामक बाल ढूँढ़ कर तो दिखा। नैतिक मूल्यों-सा दुरूह मोची मुझे, भ्रष्टाचार मंत्रालय में ईमानदारी-सा, बचे पेड़ की छाँह में बैठा दिख गया।

मोची उदास बैठा था। मक्खियाँ नहीं थी फिर भी उन्हें मार रहा था। वो आभासित मक्खियों को मार रहा था। आजकल हमारे जीवन में आभासित दुनिया बहुत महत्वपूर्ण हो गई है। जीवन में मित्रों और संबंधियों के पास मिलने का समय नहीं है और हर बार न मिलने के बहाने ढूँढ़ने पढ़ते हैं। पर फेसबुक या वट्स एप्प पर एक ढूँढ़ो तो हजार मित्र मिलते हैं। अनेक बार तो मित्रों को अनफ्रेंड करना पड़ता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की संतान – पति/पत्नी, एक दूसरे से जितना आभासित दुनिया में मिलते हैं उतने भासित दुनिया में नही।

मोची है कि उसके पास काम नहीं है, काम नहीं है तो धन नही है। समय ही समय है। इसलिए वह उदास है। बहुराष्ट्रीय कंपनी की संतानों के पास धन बहुत है पर समय इल्ले है। इसलिए उनका परिवार उदास है।

‘शिक्षा हमारे भीतर का शुभ है’ पढ़िए 1954 की फिल्म जागृति पर एक महत्वपूर्ण लेख https://matineebox.com/jagrati-1954/

मैंने मोची से कहा – मेरी चप्पल टूट गई है, क्या इसे गाँठ दोगे।

– और हम बैठे किसलिए हैं?’ उसके स्वर में कड़ुवाहट-सी थी।

– पर भाई नाराजगी से क्यों बोल रहे हो?

– आप जो हमारी हमारा मजाक बना रहे हैं। सुबह से दोपहर हो गई मक्खियाँ मारते। शाम को ठुल्ला आ जाएगा अपना हक माँगने। आप पूछ रहे हो कि चप्पल गाँठोगे…

– नाराज क्यों होते हो, निराश मत होओ अभी कॉलोनी नई है, धीरे-धीरे ग्राहक आने लगेंगे।

– क्या खाकर आएँगे ग्राहक। अपनी तो किस्मत में खोट है। कॉलोनी बस जाएगी पर हमारी दुकान का सूखा कम न होगा। वो समाने पान वाले की दुकान देख रहे हैं। रोज सौ-दो सौ लोग आते हैं उसकी दुकान में। सरकार ने गुटखा बंद किया हुआ है पर ब्लैक में उससे जितना चाहे ले लो।

– घबराओ मत, एक दिन पकड़ा जाएगा…

मेरी बात सुनकर वो बहुत जोर से हँसा। उसने मुझे ऐसे देखा जैसे चुनाव के बाद मंत्री बना नेता मतदाता को देखता है, न्यायालय को गरीब देखता है या फिर कोई अक्लमंद मूर्ख को देखता है।

– ऐसे हँस क्यों रहे हो… मैंने कुछ गलत कहा…

– आपने कानूनन सही कहा पर यदि कानून उसकी दुकान में आकर खुद गुटखा लेता हो तो आप क्या करेंगें? बाबू जी नशा चाहे गुटखे का हो, सत्ता का हो या फिर भ्रष्टाचार का उसका नशाधारी पकड़ा नहीं जाता, यही घबराने की बात है। मेरे पास पैसा होता तो क्या मैं यह नीच काम करता…

– आपने कानूनन सही कहा पर यदि कानून उसकी दुकान में आकर खुद गुटखा लेता हो तो आप क्या करेंगें? बाबू जी नशा चाहे गुटखे का हो, सत्ता का हो या फिर भ्रष्टाचार का उसका नशाधारी पकड़ा नहीं जाता, यही घबराने की बात है। मेरे पास पैसा होता तो क्या मैं यह नीच काम करता…

– मेरे भाई, काम कोई भी नीच नहीं होता है…

– पर बाबू जी आज के समय में जिसके पास पैसा नहीं है, वह नीच ही माना जाता है। ऐसे नीच लोगों को लिए न तो न्याय मिलता है और न ही सम्मान। जिस काम से पैसा न मिले तो वो नीच ही है… मैं तो सोच रहा हूँ कि कल से मैं भी पान का खोखा खोल लूँ…

– पर इस तरह से तुम जैसे लोग हमारे समाज से गायब हो जाएँगे, मोची इतिहास का विषय मात्र रह जाएगा।

इस बार वो हँसा नहीं, हल्का-सा मुस्काया और मेरी तरफ देखा और बोला – बुरा न मानें तो एक बात पूछूँ बाबू जी!

– हाँ पूछो।

– आपको क्या घर में खाना परोसा जाता है?

मैं कुछ अचकचाया और फिर बोला – परोसा तो नहीं जाता, पर टेबल पर डोंगे आदि में रख दिया जाता है और हम अपनी इच्छानुसार ले लेते हैं।’

– इसका मतलब ‘परोसा’ शब्द आपके घर से गायब हो गया है।’ यह कहकर वह मंद मंद मुस्काता-सा मेरी चप्पल गाँठने लगा।

मैं उसका क्या जवाब देता, चुप रहा।

सोचा कि हमारी जिंदगी से गाँठने वाले गायब हो गए तो क्या होगा?

<समाप्त>

Chandrakanta

View Comments

Recent Posts

श्री शिवताण्डवस्तोत्रम् Shri Shivatandava Strotam

श्री शिवताण्डवस्तोत्रम् Shri Shivatandava Strotam श्री रावण रचित by shri Ravana श्री शिवताण्डवस्तोत्रम् Shri Shivatandava…

4 months ago

बोल गोरी बोल तेरा कौन पिया / Bol gori bol tera kaun piya

बोल गोरी बोल तेरा कौन पिया / Bol gori bol tera kaun piya, मिलन/ Milan,…

5 months ago

तोहे संवरिया नाहि खबरिया / Tohe sanwariya nahi khabariya

तोहे संवरिया नाहि खबरिया / Tohe sanwariya nahi khabariya, मिलन/ Milan, 1967 Movies गीत/ Title:…

5 months ago

आज दिल पे कोई ज़ोर चलता नहीं / Aaj dil pe koi zor chalta nahin

आज दिल पे कोई ज़ोर चलता नहीं / Aaj dil pe koi zor chalta nahin,…

5 months ago

हम तुम युग युग से ये गीत मिलन के / hum tum yug yug se ye geet milan ke

हम तुम युग युग से ये गीत मिलन के / hum tum yug yug se…

5 months ago

मुबारक हो सब को समा ये सुहाना / Mubarak ho sabko sama ye suhana

मुबारक हो सब को समा ये सुहाना / Mubarak ho sabko sama ye suhana, मिलन/…

5 months ago

This website uses cookies.