देवी ! जो मन की हर इच्छा पूरी करती हो। लेकिन, हमने औरत को अपनी इच्छापूर्ति का साधन ही बना दिया !
देवी ! जो हमारे सब दुखों को हर ले .लेकिन, हमनें औरतों के जीवन को ही दुःख में बदल दिया !!
देवी ! जिसकी आराधना दिया जलाकर की जाती हे।
और हमनें औरतो को ही जला दिया !!!
कभी सोचा हे हमनें ..हम सबनें !
देवी का यह प्रायोजित आवरण एक “सांस्कृतिक ढोंग” से अधिक और कुछ भी नहीं हे .
और हम सभी ने इस ढोंग को ना केवल रचा हे ,
बल्कि समय समय पर इसे और भी पुख्ता किया हे .
देवी हे कहाँ !और कहाँ है देवी का सम्मान !!
सच तो यह हे की यह ढोंग हमारी आत्मा में इस कदर रच-बस गया हे कि
कोई क़ानून ,कोई प्रशासन इसे खत्म ही नहीं कर पा रहा हे।
क्यूंकि, समाज और धर्म की सोच के सामने किसी का बस नहीं चलता और
हम अपनी मानसिकता बदलना नहीं चाहते .
हमें डर हे;
यदि व्यवस्था बदल गयी ,समाज बदल गया तो सम्बन्ध भी बदलेंगे और जिसके पास अधिकार हैं शक्ति हे वह उसे कभी नहीं छोड़ना चाहेगा
हमनें भी औरत में
देवत्व को तो प्रेषित कर दिया किन्तु उसे एक पाषाण से अधिक तवज्जो प्राय: नहीं दी .
हम यह भूल गए हैं कि यदि
देवी के प्रति यदि श्रद्धा भाव ना हो तब वह एक पत्थर से अधिक और कुछ भी नहीं .
.अतीत के पृष्ठों को यदि हम खंगालेंगे तब पायेंगे कि जिस समाज में उसकी रियाया में परिवर्तन के प्रति सकारात्मक आग्रह नहीं होता उसे जड़ता ग्रस लेती है ‘प्रभु वर्ग’ की सम्मोहक शक्तियों से लैस यह जड़ता अपनी तासीर में बेहद मादक है और इसी मद नें हमें बाँध रखा है इसलिए हमारी परवरिश ..हमारे संस्कार औरत को ‘देह से अधिक’ कुछ और होने नहीं देते।
इस ‘सांस्कृतिक ढोंग ‘नें ही महिलाओं को समाज का ‘बाई प्रोडक्ट’ बना दिया है। ना तो उसका कोई स्व-अस्तित्व है ना ही किचन की चारदीवारी के बाहर उसकी कोई भूमिका समाज द्वारा स्वीकृत हो पायी है।उसकी पहचान पिता ,पति या पुत्र के साथ नत्थी कर दी गयी है और सार्थकता बच्चे के जनम तलक सीमित .हम यह समझना बूझना ही नहीं चाहते की सार्थकता तो सृजन में होती है।। जीवन में होती है।।
जनम देना और सृजन करना दो भिन्न बातें हैं .
और देवी से छेड़खानी !!!
छेड़ाखानी अक्सर पुरुष ही करते हैं और फरमान जारी कर दिया जाता है स्त्रियों को घर की चौखट में गाड़ दिए जाने का .ना मालूम क्यूँ !हमें इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता की लडकियां तो इन चौखटों में भी सुरक्षित नहीं हैं !
आँख बंद कर लेने से समस्या दिखाई देना भले ही बंद हो जाए
लेकिन ख़त्म नहीं हो जाती .इसलिए, समस्या का कारण ख़त्म कीजिये ताकि समस्या ही बाकी ना रहे..
SAVE THEM INSTEAD OF SAFE THEM
महिलाओं को चुनने का अधिकार दीजिये.अपने निर्णय लेने दीजिये, बोलने दीजिये उन्हें
आखिर उन्हें भी जीने का अधिकार हे ,जानने का अधिकार हे.जब उनमें दुनिया की समझ पैदा हो जायेगी तब उन्हें
किसी बैसाखी , किसी आरक्षण की जरुरत नहीं रह जायेगी.उन्हें बैसाखियों की जरुरत नहीं अधिकारों की जरुरत हे क्योंकि ,
बैसाखियाँ कितनी ही खूबसूरत क्यों ना हों
बनाती तो हमें अपाहिज ही हैं … ………….
therefore,
DO NOT KEEP THEM ASIDE,
GIVE THEM RIGHT TO DECIDE.. Timeline of women’s rights
चंद्रकांता
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