दो टुकड़ा चाँद sPlit mOOn
मैं भीख हूँ
धूल से लबरेज़
खुरदरे हाथ-पाँव
सूखे मटियाले होंठ, निस्तेज
अपनी निर्ल्लज ख-ट-म-ली देह को
जिंदगी की कटी-फटी-छंटी
चादर में छिपाती हूँ
खुरदरे हाथ-पाँव
सूखे मटियाले होंठ, निस्तेज
अपनी निर्ल्लज ख-ट-म-ली देह को
जिंदगी की कटी-फटी-छंटी
चादर में छिपाती हूँ
मैं भीख हूँ
अपनी बे-कौड़ी किस्मत
खाली कटोरे में आजमाती हूँ
कूड़े करकट के रैन-बसेरों में
मैली-कुचली कतरनों को
गर्द पसीनें में सुखाती
ओढती और बिछाती हूँ
मैं भीख हूँ
कूड़े करकट के रैन-बसेरों में
मैली-कुचली कतरनों को
गर्द पसीनें में सुखाती
ओढती और बिछाती हूँ
मैं भीख हूँ
आम आदमी की दुत्कार
पाती हूँ घृणा-तिरस्कार
फांकों में मिलता है बचपन
और चिथड़ों में लिपटा आलिंगन
मैं नहीं जानती सभ्यता के
आचार-व्यापार, व्याभिचार
मैं भीख हूँ
पाती हूँ घृणा-तिरस्कार
फांकों में मिलता है बचपन
और चिथड़ों में लिपटा आलिंगन
मैं नहीं जानती सभ्यता के
आचार-व्यापार, व्याभिचार
मैं भीख हूँ
ढीठ, फिर मुस्कराते हुए
बांधकर कोई अदृश्य शक्ति पाँव में
निकल पड़ती हूँ हर रोज
भीड़ भरी सड़क पर अकेली, मांगने
मेरे हिस्से के ‘दो टुकड़े चाँद के’ ..
– चंद्रकांता –
बांधकर कोई अदृश्य शक्ति पाँव में
निकल पड़ती हूँ हर रोज
भीड़ भरी सड़क पर अकेली, मांगने
मेरे हिस्से के ‘दो टुकड़े चाँद के’ ..
– चंद्रकांता –
marmsparshi..aur saral
अदभुत भाव से परिपूर्ण वास्तविकता को रेखांकित करती अभियक्ति ….
बहुत ही सुंदर कविता जो शब्दों से बोध की कुरुपता को दर्शा रही है। पूरी बेबाकी से।
In a very grounded-awestruck manner, You Have spoken her heart out by this masterpiece of realism, commanding glitzy glory and crowning immense deference for a child beggar and related practices.
Thank you for feeling, writing and sharing about a heroine unsung!
अप्प की हर शब्द दिल को चूता है