दो टुकड़ा चाँद sPlit mOOn
मैं भीख हूँ धूल से लबरेज़ खुरदरे हाथ-पाँव सूखे मटियाले होंठ, निस्तेज अपनी निर्ल्लज ख-ट-म-ली देह को जिंदगी की कटी-फटी-छंटी
Continue reading'मैं कुछ अलहदा तस्वीरें बनाना चाहती हूँ जैसे अंबर की पीठ पर लदी हुई नदी, हवाओं के साथ खेलते हुए, मेपल के बरगंडी रंग के पत्ते, चीटियों की भुरभुरी गुफा या मधुमक्खी के साबुत छत्ते, लेकिन बना देती हूं विलापरत नदी पेड़ पंछी और पहाड़ ।'
मैं भीख हूँ धूल से लबरेज़ खुरदरे हाथ-पाँव सूखे मटियाले होंठ, निस्तेज अपनी निर्ल्लज ख-ट-म-ली देह को जिंदगी की कटी-फटी-छंटी
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