क्यूंकि, बेहूदा मानसिकता की कोई हद नहीं..
क्यूंकि, बेहूदा मानसिकता की कोई हद नहीं.. स्त्री का श्रृंगार से रिश्ता एक कभी न ख़त्म होने वाले उत्सव की
Continue reading'मैं कुछ अलहदा तस्वीरें बनाना चाहती हूँ जैसे अंबर की पीठ पर लदी हुई नदी, हवाओं के साथ खेलते हुए, मेपल के बरगंडी रंग के पत्ते, चीटियों की भुरभुरी गुफा या मधुमक्खी के साबुत छत्ते, लेकिन बना देती हूं विलापरत नदी पेड़ पंछी और पहाड़ ।'
क्यूंकि, बेहूदा मानसिकता की कोई हद नहीं.. स्त्री का श्रृंगार से रिश्ता एक कभी न ख़त्म होने वाले उत्सव की
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