डर लगता है ..
एक पंक्ति लिखती हूँ और अक्सर मिटा देती हूँ नि-रं-कु-श सत्ता के भय से फिर अपने भीतर के बचे हुए
Continue reading'मैं कुछ अलहदा तस्वीरें बनाना चाहती हूँ जैसे अंबर की पीठ पर लदी हुई नदी, हवाओं के साथ खेलते हुए, मेपल के बरगंडी रंग के पत्ते, चीटियों की भुरभुरी गुफा या मधुमक्खी के साबुत छत्ते, लेकिन बना देती हूं विलापरत नदी पेड़ पंछी और पहाड़ ।'
एक पंक्ति लिखती हूँ और अक्सर मिटा देती हूँ नि-रं-कु-श सत्ता के भय से फिर अपने भीतर के बचे हुए
Continue readingक्या वाकई आप सोचते हैं कि प्रेम पढ़कर आत्मसात कर लेने वाली कोई वस्तु है ? मैंने जब-जब अंतरंग होकर
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