फुर्सत हो .. तो जरा ठहरिये ..
कभी-कभी आपको भी नहीं लगता कि हम केवल वह नोट बनकर रह गए है जिसे बाज़ार अक्सर अपनी सुविधा के
Continue reading'मैं कुछ अलहदा तस्वीरें बनाना चाहती हूँ जैसे अंबर की पीठ पर लदी हुई नदी, हवाओं के साथ खेलते हुए, मेपल के बरगंडी रंग के पत्ते, चीटियों की भुरभुरी गुफा या मधुमक्खी के साबुत छत्ते, लेकिन बना देती हूं विलापरत नदी पेड़ पंछी और पहाड़ ।'
कभी-कभी आपको भी नहीं लगता कि हम केवल वह नोट बनकर रह गए है जिसे बाज़ार अक्सर अपनी सुविधा के
Continue readingजानती हूँ ! कि, दफ़न कर दिए जाएंगे मेरी चाहतों के रोमानी सि-ल-सि-ले इतिहास के पन्नों में, एक दिन और
Continue readingकितने धागों में ..जो ये जान पाती तो बाँध लेती तुम्हे ..जाने नहीं देती तुम कहते हो की मन का
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