क्यूंकि, बेहूदा मानसिकता की कोई हद नहीं..
क्यूंकि, बेहूदा मानसिकता की कोई हद नहीं.. स्त्री का श्रृंगार से रिश्ता एक कभी न ख़त्म होने वाले उत्सव की
Continue reading'मैं कुछ अलहदा तस्वीरें बनाना चाहती हूँ जैसे अंबर की पीठ पर लदी हुई नदी, हवाओं के साथ खेलते हुए, मेपल के बरगंडी रंग के पत्ते, चीटियों की भुरभुरी गुफा या मधुमक्खी के साबुत छत्ते, लेकिन बना देती हूं विलापरत नदी पेड़ पंछी और पहाड़ ।'
क्यूंकि, बेहूदा मानसिकता की कोई हद नहीं.. स्त्री का श्रृंगार से रिश्ता एक कभी न ख़त्म होने वाले उत्सव की
Continue reading‘शहरों के लोग बेहद असंवेदनशील होते हैं’ ! ‘उनके सीने में दिल नहीं होता’ !! आपको भी ऐसे विश्वास सुनने
Continue readingबस, मुझी से प्रेम करो‘!!!एक अजीब सी समझ है यह प्रेम को लेकर ..एक विकृत सी रोमानियत.हम प्रेम को व्यक्ति/देह
Continue readingदामिनी , काश ! उसी दिन मैंने उसकी आँखें नोच ली होती जब पुरुष की तरह दिखने वाली उस काली ब-ह-रू-पि-या आकृति ने मुझे छुआ
Continue readingप्रकृति की संपूर्ण रचनात्मकता जिस एक अनंत भाव में सिमट आती हों ब्रह्माण्ड का समस्त सौंदर्य और मन की सभी अभिलाषाएं जिस एक प्रेरणा
Continue readingकभी-कभी आपको भी नहीं लगता कि हम केवल वह नोट बनकर रह गए है जिसे बाज़ार अक्सर अपनी सुविधा के
Continue readingजानती हूँ ! कि, दफ़न कर दिए जाएंगे मेरी चाहतों के रोमानी सि-ल-सि-ले इतिहास के पन्नों में, एक दिन और
Continue readingकितने धागों में ..जो ये जान पाती तो बाँध लेती तुम्हे ..जाने नहीं देती तुम कहते हो की मन का
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