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चिट्ठी , मिटटी लगती थी..
कुछ भूल गए हैं हम..चिट्ठी लिखना .. बातें खट्टी हों कड़वी या बताशा चिठ्ठी, मिटटी सी लगती थी आँखें
Continue readingएक खूबसूरत ..संजीदा ..एक मासूम सा एहसास..
प्रकृति की संपूर्ण रचनात्मकता जिस एक अनंत भाव में सिमट आती हों ब्रह्माण्ड का समस्त सौंदर्य और मन की सभी अभिलाषाएं जिस एक प्रेरणा
Continue readingफुर्सत हो .. तो जरा ठहरिये ..
कभी-कभी आपको भी नहीं लगता कि हम केवल वह नोट बनकर रह गए है जिसे बाज़ार अक्सर अपनी सुविधा के
Continue readingतुमको! हर बार गढूँगी, खुद में..
जानती हूँ ! कि, दफ़न कर दिए जाएंगे मेरी चाहतों के रोमानी सि-ल-सि-ले इतिहास के पन्नों में, एक दिन और
Continue readingतो बाँध लेती तुम्हे . .
कितने धागों में ..जो ये जान पाती तो बाँध लेती तुम्हे ..जाने नहीं देती तुम कहते हो की मन का
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