शेफ़ालिका वर्मा : मुक्ति
शेफ़ालिका वर्मा : मुक्ति : स्वर चंद्रकांता
मैथिली कहानी मुक्ति का हिंदी अनुवाद
माँ सारे दिन तुम मीटिंग में लगी रहती हो, जुलूस-नारे इन सब से क्या होने वाला है माँ ?
–ओह कोलेज में पढ़ती हो तुम,क्या तुम्हे इसका ज्ञान नही बेटा —सारा देश ,देश तो दूर सारे विश्व में महिला मुक्ति आन्दोलन चल रहा है …तभी तो आज हमे दम मरने की भी फुर्सत नही ….अनु अपने काम में डूबी अपनी बेटी मेंहा को जबाब भी देती जा रही थी ..–मुक्ति आन्दोलन ? मुक्त होने की ये आकांक्षा किस से माँ …पति से , पुत्र से, परिवार से ..माँ मेरे दिमाग में तो कुछ आता ही नही है –धृष्ट बालिका इस अगम मुक्ति को जानने के प्रयास में थी ..
अनु पुत्री की बात सुन चौंक गयी थी आज समाज में एक ओर नारी मुक्ति आन्दोलन की धूम मची है, जिसकी नेता स्वयम मेंहा की माँ थी … अनु को अपनी पुत्री पर दया आयी . ममता उमड़ी –एक निरीह दृष्टि मेंहा पर देती वो समझाने लगी –बेटा, समाज में महिला पर कितने अत्याचार हो रहे हैं .परिवार में महिला का शोषण ,दहेज़ के कारण अपमान ,अनाचार क्या नही हो रहा है….
कमल कोमल सी भाव भरी मेहा चुपचाप अपनी माँ की बातें सुन रही थी . ,स्कूल से कोलेज तक फर्स्ट आने वाली ,बोली में मधुरिमा ,चाल में गरिमा …अपने पिता की सौम्यता और महानता का निखार उसमे था . .हिमालय सी धीर गम्भीर पिता की संतान थी मेंहा .व्यस्त डॉक्टर के जीवन में समय का अभाव देख अनु ने अपने लिए महिला क्लब में स्थान खोज लिया था, महिला नेता के रूप में विख्यात भी हो गयी थी.महिला मुक्ति आन्दोलन अनु देखती थी ,समझती भी थी पर ये नही जानती थी –मुक्ति किस से ??
बड़े बड़े बैनर लेकर ,अर्धनग्न, स्लीवलेस ,बैकलेस ब्लाउज में झिलमिलाते पारदर्शी आंचल में ,नियोन रौशनी की तरह झिलमिलाती देह की दीपशिखा में , एक दूसरे की देह पर गिरती पड़ती ,हंसती बोलती बीच सडक पर नारों से ज्यादा प्रदर्शन करती ……मेंहा का मन वितृष्णा से भर उठता .
प्राय कोई न कोई मीटिंग पार्टी घर पर होती रहती ..मेहा इस सब से अलग अपने रूम में रहती . केवल चाय नाश्ता लेकर बैठक में जाती . डॉक्टर साहब भी निश्चिन्त रहते पत्नी व्यस्त तो हो गयी.उस दिन मीटिंग में होती बातें मेहा के कानों में गर्म शीशे की तरह पिघल रही थी —–मिसेज चौधरी अपनी प्रोफेसर बहू के साथ आयी थी …मिसेज झा ने बहू की तारीफ करते पूछा –बड़ी सुन्दर साड़ी है ..कहाँ से ली हो ?
क्लास में भाषण देनेवाली बहू घर में भींगी बिल्ली की तरह रहने वाली बहू ने कहा –यहाँ की नही है. मायके की है
मिसेज चौधरी को जैसे आग लग गयी —-एक साड़ी के लिए मायके की तारीफ कर रही हो ..और क्या दिया तुझे मायके वालों ने ?हाँ आजकल की लडकियाँ मायके की ही तारीफ करती रहती है . मेरी बहू बहुत बड़े वकील की बेटी है, अहंकार कितना उसमे है…….मिसेज झा बडबडाती रहीहाँ एक बात तो समझ लो, वकील,डाक्टर ,इंजीनियर ,ठेकेदार की बेटी सब से ब्याह नही करना चाहिए.. पैसे के कारण दिमाग ठिकाने पर नही रहता इनकी बेटियों का . .
मिसेज लाल कम नही थी ..
सुनिये प्रसिद्द लेखक चरण सिंह पथिक की कहानी ‘दो बहनें’ https://gajagamini.in/do-bahnen-charan-singh-pathik/
पैसेवालों की बेटियों की क्या बात , जैसे संस्कार देंगे ,बच्चे वैसे हि तो बनेगे . मेरी मेहा को ही देखो ….
बगल के कमरे से सब सुनती माँ के मुंह से अपना नाम सुन मेंहा के मुंह में जैसे कुनैन आ गया . किन्तु वहां बैठी सभी औरतें मेहा के नाम से चुप हो गयी .किसी ने तुरत बात बदल दी—इतनी अच्छी लडकियों की शादी दहेज़ के कारण नही होती हैहाँ…एक उसांस भरती अनु ने कहा –ये तो सच है … मै भी लगी हूँ एक अच्छे लडके की तलाश में ..प्रसाद जी वकील साहब का बेटा प्रोफेसर है ,उसकी कीमत ४ लाख रूपये,साथ में टी वी, .फ्रिज ..क्या क्या नही …
प्रसाद जी की पत्नी के कानों में जैसे ही बात गिरी –हा हा मैंने तो चार लाख ही रखे हैं , ठाकुर जी की पत्नी तो अपने चार्टर्ड अकाउंट बेटे का छ लाख मांग रही है ..महिला संघ की बातें सुन सुन मेहा का मन फटे बादल की तरह शून्य में चला जाता . माता पिता अपनी अपनी दुनिया में व्यस्त , छोटा भाई दिल्ली में पढता था ..खुद मेंहा पटना विमेंस कॉलेज से बी ए आनर्स की परीक्षा दे रही थी . पुस्तकों की दुनिया में खोई रहती . …
पढिये नयी वेब सीरीज ‘पातळ लोक’ की समीक्षा https://matineebox.com/paatal-lok-review-intriguing-story-jaideep-ahlawat/
किन्तु आज मेहा का मन सजल जलद की भांति माँ पर बरस गया.–माँ ,मै मीटिंग में नही रहती हूँ पर आप सबों की सारी बातें सुनती रहती हूँ —आप जानती हैं महिला को मुक्ति किस से चाहिए ??—-अपनी जड़ता से , अज्ञानता से,अशिक्षा के अंधकार से …अनु अवाक फिर मुस्कुराती बोली ..बेटा, तुम्हे समझने में अभी वक़्त लगेगा.माँ दहेज़ पर सारी स्त्रियाँ बढ़ बढ़ कर बोलती है ,किन्तु स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है.
–क्या बोलती हो मेहा –तमक उठी अनु बेटी की बात पर
–हाँ माँ मुझे बोलने दो आज मुझसे नही सुना जाता ये अनर्गल प्रलाप —एक बार मेरी भी तो सुनो माँ …चुप हो गयी अनु …–माँ आज यदि सारे बेटों की माँ कसम खा ले हम अपने बेटों को नही बेचेंगी कोई सामान नही लेंगी , तो किसी बेटे के बाप की मजाल नही जो दहेज़ ले ले . पत्नी से विरोध ले कोई अपनी गृहस्थी में अशांति नही लाना चाहेगा .अनु चुप्प ..जैसे किसी पुरानी पुस्तक का नया पन्ना खुल आया उसके सामने …
–उस दिन मीटिंग में माँ चौधरी चाची अपनी बहू को कितना कुछ बोल रही थी ,झाजी आंटी
अपनी बहू की ..
माँ किसी के पिता किसी बहू की बुराई नही करते फिर माँ ही क्यों ..वो भूल जाती है कि वो भी किसी की बहू थी ..जो स्वयं माँ नही बन सकती वो बहू से बेटी बनने की आशा क्यों रखे ..नारी स्वयम नारी पर अत्याचार करती है —मेहा साँस भी नही ले रही थी , धाराप्रवाह थी …—
आप बलात्क्कर की बात करती हैं माँ ..फैशन में चूर,अर्धनग्न नारियां वासना को ही तो जाग्रत करती हैं , माँ आप दशा – दिशा दिखाइए इस महिला समाज को….मेहा का स्वर भावावेश से आर्द्र हो गया था , स्वर की संवेगता और सजलता से माँ का ह्रदय सिहर उठा. नाम और यश के पंख पर उड़नेवाली अनु अपनी युवा पुत्री के तर्क और आवेग से पंखविहीन हो जैसे गिर गयी . जिसे मै बच्ची समझती रही उसके ह्रदय में इतने तूफान ..
बहुत देर तक अनु सोचती रही..मेहा की बातें उसे आंदोलित करती रही —नही नही मेहा का कहना सही है ..किधर जा रहा हमारा नारी- समाज . परिवार टूट रहा है. जिस संयुक्त परिवार की मेरुदंड नारी थी आज मुक्ति खोजने के प्रयास में अपने स्थान से भी वंचित हो गयी.. जो माता –पिता इतने कष्ट से अपने बच्चों को पाल पोस उसे मनुष्य बनाते हैं ..वे ही संतान अपने माता पिता को भी साथ रखने को तैयार नही ..पति पत्नी और संतान…न्यू क्लियर परिवार .
संतान भी माता पिता की व्यस्तता देख उनसे विमुख होती जारही है ..तब फिर बचता क्या है नारी समाज के पास —साडी कपडा , जेवरजात और आलोचना – प्रत्यालोचना के केंद्र में नारी मुक्ति आन्दोलन का नारा …सारा दिन अनु का अंतर्द्वंद में बीता ..रात में खाने के टेबुल पर उसने डॉक्टर साहब से पूछा – आप महिला मुक्ति आन्दोलन से क्या समझते हैं ..?
डाक्टर साहब चौंक उठे –खाते खाते बोले —जो तुम समझती हो …
भाभा कर हंस पड़ी मेहा ..अनु के अधरों के कोण पर मुस्की की झलक आ गयी …नही मजाक में बात को मत उड़ा दीजिये ..आज मेरी बेटी ने मुझ में अपराध भाव जगा दिया है.अरे सचमुच ? — हमारी बेटी मेहा रानी को कुछ बोलने भी आता है .. डाक्टर साहब हँसते बोले ..
फिर अनु के मुंह से सारी बातें सुन डाक्टर धीर गंभीर भाव से बोले — अनु, किसी देश की असली पहचान उस देश की नारी होती है …अपने देश की नारियों के चेहरे पर जो कान्ति ,वाणी में मिठास और चाल में गरिमा होती है वही इस देश की माटी में है, प्रकृति में है ..भारतीय नारी के लाज भरे चेहरे में जो सौन्दर्य है अनु वो अन्यत्र नही ..पुरुष नारी को रहस्य से भरा ही देखना पसंद करते हैं अनु ..
यह तो पुरुष की लोलुपता है –झपटती अनु बोली –नारी क्या भोग्या है …
तुम गलत समझती हो अनु यहाँ भोग्या का प्रश्न कहाँ . समस्त प्रकृति रहस्य से भरी है वैज्ञानिक इस रहस्य को तार तार कर देने में लगे हैं ..नारी भी वही रहस्यमयी प्रकृति है जिसके अंतरतम तक जाने के लिए पुरुष एक्स रे बन जाता है . नारी का त्याग , समर्पण ,सेवा पुरुष से संभव नही ….
तब क्यों महिला मुक्ति-आन्दोलन हो रहे हैं —– अनु के समक्ष प्रश्न उसी तरह खड़ा था
—अनु, महिला मुक्ति का नाम महिला उछ्रिन्ख्लता नही है नारी में सब कुछ है , अभाव है ,साहस का आत्मशक्ति का ..कितनी भी पढ़ लिख ले औरतें किन्तु स्वयम निर्णय नही ले सकती, छोटी छोटी बातों में पुरुष के शरण में चली जाती है , कोई बलात्कार करता है ,नारी स्वयम को तो कलंकित समझती ही है दूसरी भी दोषी ही समझती है , बलात्कार करनेवाला बेदाग घूमते रहता है…. मेंहा ठीक कहती है अनु कुछ करती हो तो नारियों के भीतर आत्मनिर्भरता, स्वरक्षा और आर्थिक स्वाधीनता की शक्ति जगाओ ..
पापा ..चाची की शादी के पांच साल हो गये ,कोई बच्चा नही हुआ ..सभी औरतें उसे बाँझ कहती है..इसमें उनका क्या दोष..मै तो माँ से यही कहती हूँ औरतें ही औरतों को सताती है . मर्द तो मूंछों पर ताव देते रह्रते है ..मेंहा तमतमा गयी थी
नही बेटा ऐसा नही होता है स्त्री स्त्री- जाति के सुख दुःख नही देख सिर्फ अपने परिवार का हित अहित देखती है . स्त्री ही क्यों ..क्या पुरुष अपाने परिवार का हित अहित नही देखता दुसरे पुरुष को भीख मांगते देख कहाँ अपनी जेब काट उसे दे देता… डाक्टर साहब की बातों से मेहा जितनी उमगित थी अनु उतनी ही व्यथित ..आज तक महिला समिति में किये गये सारे कार्य उसे सारहीन लगने लगा . …रात भर करवटें बदलती रही ..क्या क्या सोचती थी..कितनी अच्छी बातें डाक्टर साहब , स्वयम उसकी बेटी मेहा ने कही …..
मन को शान्त कर उसने अपने सारे सोच को मेहा की तरफ मोड़ दिया इस तेजस्विनी बेटी का भविष्य क्या होगा… डाक्टर साहब गरीबों के मसीहा थे . वो मरीजों का पैसे के लिए नही बल्कि मर्ज़ दूर करने की प्रैक्टिस करते थे . इसीलिए उनके पास गरीब मरीज ज्यादा आते, उनका यश भी शीर्ष पर था . पर पैसे के धनी नही थे..लाखो लाखों में लडके बिकने लगे ..तभी समाज में शुरू हो गया लड़का सडक पर से उठाओ जबरदस्ती शादी कराओ ..अजीब स्थिति थी …
शिक्षा हमारे भीतर का शुभ है यह खुबसूरत सन्देश देने वाली अविस्मरणीय फिल्म ‘जागृति’ की समीक्षा पढ़िए https://matineebox.com/jagrati-1954/
मेंहा के मामा विपुल बाबु मेहा के योग्य वर की तलाश में थे. डाक्टर साहब भी विपुल बाबु पर सारा भर सौंप निशिचिंत रहते थे .और एक दिन न जाने कहाँ से पछवा की तरह विपुल बाबु आये ….अनु के कानों में कुछ गुनगुना गये —–
विपुल , कुल खानदान सब देख लिया है न ?—हाँ बहन लड़का प्रोफेसर है फर्स्ट क्लास केरियर , होनहार और तेजस्वी ———-विपुल उत्साहित थे .अनु चिंतित …..क्या डाक्टर साहब उसके पिता से बातें नही करेंगे ? – ये अटपटा नही लगता है ..नही बहन , अब समय कहाँ है ? मै सब से मिल चूका हूँ. आज से पांचवे दिन शादी के लिए मैंने फिक्स भी कर लिया है …
डाक्टर साहब सुन कर चुप रह गये . पत्नी और उसका भाई , विश्वास कर गये .मेहा के लिए थोड़े सोच में पड गये ……देखते देखते घर में रौनक आ गयी . शादी की तैयारियां शुरू हो गयी . मेंहा पहले तो अकचका गयी फिर माँ की चिंता ,इच्छा जान चुप रह गयी . , कहाँ तो वो अपने केरियर बनाने में लगी थी और कहाँ…..
साधारण साज-सज्जा के साथ तैयारी पूरी हो गयी . दस – बारह बारात के साथ दुल्हे राजा पहुंचे .. लड़का सुन्दर था किन्तु उसके निर्विकार चेहरे पर एक उदासी ,एक विराग भाव जैसे अन्तर में कोई छटपटी एक ,बेकली हो . विपुल के हाथों में सरात – बरात दोनों का प्रबंध था .लड़का का एक भाई लडके से सटे खड़ा रहता था .उसके तीन चार दोस्त लड़के को घेरे रहते थे और मेहा की तीन चार दोस्त मेहा को घेरे रहती थी . ..हंसी मजाक के बीच शादी की सारी विधियाँ सम्पन्न हुई . ..सिन्दूर दान का समय आ गया .शान्त और धीर लडके के हाथ में सिंदूर दिया गया . .
अचानक रात बिषैले सांप में परिवर्तित हो गयी . शादी के साज सामान बिषैले कीड़े की तरह मंडप में रेंगने लगे . लड़का सिंदूर लेकर खड़ा हुआ , लडकी के दोस्त उसे घेरे जोरों से ठहाका लगा रही थी .प्रोफेसर साहब शान्त भाव से मेंहा की मांग में सिंदूर दे , झपट्टा मार.मेहा के चारो दोस्तों की मांग में भी सिंदूर डाल दिया उसने . स्थिति भयावह हो गयी ,धरती कांपने लगी , लोगों के कलेजे कांपने लगे –ये क्या कर दिया लडके ने –
—मैंने अपनी पत्नी के अलावे इन चारो लडकियों से भी शादी कर ली है ..अब ये पांचो मेरी पत्नियाँ है .
सुनते ही सबों के अधरों की हंसी खत्म हो गयी ,चेहरे पे राख उड़ने लगी किसी के मुंह से कोई शब्द नही निकल रहा था .चारो लड़कियां मेरी पत्नी जिनका कि मै नाम भी नही जानता, को पकड़ी सारे विध व्यहार में साथ रही ..शाश्त्र के अनुसार मेरी पत्नियाँ हो गयी
पंडितों ने सर झुका लिए किसी के पास हठात हुयी इस घटना का कोई जबाब नही था . .अपने जीवन के इस पोस्टमार्टम को देख मेहा को काटो तो खून नही . स्तब्धता के आवरण को चीरता मौन भी मुखर हो जाता है .इस मौन में त्रिशंकु की तरह अटकी मेहा को जैसे होश आया ,..उसने दुल्हन की सज्जा माथे पर से हटाई और सीधे उस लडके से पूछा —
—आपको मेरा नाम भी नही मालूम ये असत्य है …
ये सत्य है —अब प्रोफेसर साहब को भी ताकत आई …विपुल बाबु इस शहर में पांच दिनों से मुझे बंधक बनाये हुए थे वे अपनी कोई सहयता करने के बहाने मुझे यहाँ ले आये मै खुश था चलो किसी के काम तो मै आया . ..उन्ही पांच दिनों में मुझे पता चला इन लोगों का एक गिरोह है जो लडकों को उठाकर ले जाते हैं और शादी करवाते हैं …वास्तव में इसी बीच विपुल बाबु और सारे बारात गायब . —-सिंदूर दान के बाद जब विपुल बाबु ने मेरी जान छोड़ी तब मै आप सब को कह पाया .
दीन हीन प्रोफेसर साहब की बातों ने जैसे सबों को काठ बना गया , मानो काटो तो खून नही ….
नही नही ..ऐसा नही हो सकता …तेजस्वी अनु अपनी एक मात्र पुत्री का ये गंजन देख चिल्ला उठी . –
— आप स्थिर रहो माँ — गम्भीर स्वरों में मेहा ने कहा —फिर उसने लड़के से पूछा –आपने मन्त्र पढ़ा था क्या… …
नही –मै तो डर से घिघिया रहा था , मन्त्र कहाँ सुनता
.मेहा की गुरु गम्भीर आवाज़ वातावरण को सिहरा गयी —-प्रोफेसर साहब ! आपको जबरदस्ती शादी के लिए यहाँ लाया गया ..विवाह मात्र वेद मन्त्र , सिंदूर से नही होता ..वो पाठ एकान्त भाव का समर्पण होता है ..उस समय आपके प्राण अवग्रह मे थे यहाँ बैठे पंडित पांचो लड़कियों से आपके विवाह का समर्थन दे रहे हैं . क्या यही शाश्त्र है , यही धर्म है… —आवेश से मेहा हांफ रही थी ..किंचित सांस लेती गंभीर स्वरों में कहा –प्रोफेसर साहब , मै आपको मुक्त करती हूँ .
मै इस विवाह को विवाह नही मानती हूँ और न ही मेरी ये निरीह दोस्त मानती हैं ..हम इतने गये गुजरे नही हैं प्रोफेसर साहब ..आप चकित न हों . मै एक लडकी होकर ,एक नारी होकर ये सब आपको कह रही हूँ . नारी की स्थिति मात्र विवाह ही है ये मै नही मानती ..
विवाह स्त्री पुरुष का समर्पण है ..मै इतनी छोटी हूँ आपके सामने ..फिर भी मै आपको कह रही हूँ . ये सब मै नही , मेरे पिता की दी हुई शिक्षा और संस्कार हैं मै अकेली नही हूँ मेरे साथ मेरे माता- पिता की शक्ति है . मै इस सिंदूर को नही मानती जो जबरदस्ती दिया जाय और एक साथ पांच पांच लडकियों को ..धर्म की दृष्टि में मान्य हो जाये ..पर अपना धर्म भी इतना रोगी ,कर्मकांडी नही रहा है ..जो भी हो हम इसे नही मानते ..
प्रोफेसर साहब अवाक . उनकी बुद्धि एक चतुर्थ वर्ष की छात्र के तर्क वितर्क और ओजस्विता के सामने जैसे निष्प्राण हो गयी थी . वो क्या सोच रहे थे , कितने भयभीत थे , पर यहाँ तो पूरा पासा हि पलट गया .सभी अतिथि बडबड़ा रहे थे –क्या हो गया ज़माने को ..न तो ऐसा बदमाश लड़का ही देखा , ना ही ऐसी अगत्ती लड़की
डाक्टर साहब अब शान्त स्थितप्र्ग्य , चुपचाप एक ओर खड़े थे , अनु का मन भी पुत्री की बातों से स्थिर हो रहा था .. मेहा भी जलमय मेघ की तरह विनीत ..—माँ , आप अपने महिला संघ से मत डरें . आप सबों के आशीर्वाद से ही मै शक्तिमयी हो उठी हूँ . ..पुन प्रोफेसर साहब की और देखती बोली मेहा —-
मैंने आपको मुक्त कर दिया , महिला मुक्ति के लिए आन्दोलन करती है .पर वे नही जानती मुक्त करने का सबसे ज्यादा अधिकार और शक्ति महिलाओं के पास है . आप अपने घर जाइए, जो हुआ उसे एक बुरे सपने की तरह भूल जाइये , लीजिये इस सिंदूर को भी मै आपके सामने ही पोछ लेती हूँ —-कहती मेहा अपने माथे के सिंदूर को पोछने लगी ..
प्रोफेसर साहब जैसे एक अस्तित्व व्यापी मूढ़ता में पड़े हों , उनकी तन्द्रा टूटी ..अज्ञात सम्मोहन से आविष्ट उन्होंने मेहा के हाथ पकड लिए —–तुम धन्य हो..मेरे लिए पूज्य भी ..मेरे अपराध को क्षमा करो –तुम मेरी हो —आस्ते से हाथ छोडती मेंहा ने कहा –नही प्रोफेसर साहब मै एक उदास पराजित पत्नी की जिन्दगी नही जीना चाहती हूँ ..मै इस शादी को स्वीकारुंगी तो समस्ज में आये दिन कितने लड़कों को फुसला कर, बंधक रख शादी होती रहेगी ..जबरदस्ती उसे सधवा बना कर विधवा की जिन्दगी जीने को विवश कर देते हैं समाज ..मै इसका विरोध करती हूँ
–ठीक है मेहा –मै आऊंगा अपने पूरे परिवार के साथ बारात को लेकर , अनायास मिले इस हीरे को मै नही छोडूंगा —-प्रोफेसर साहब का हतशून्य आत्मसम्मान जग चूका था —मेरे अपूर्ण ज्ञान की पूर्णता हो तुम ..मै जल्द आ रहा हूँ —और वो डाक्टर साहब और अनु के चरणों में झुक गये……
-डा शेफ़ालिका वर्मा-
One thought on “शेफ़ालिका वर्मा : मुक्ति”