Prabhat Goswami प्रभात गोस्वामी : मैं नहीं माखन खायो

Prabhat Goswami प्रभात गोस्वामी : मैं नहीं माखन खायो : Recitaion By ChandraKanta

प्रभात गोस्वामी : मैं नहीं माखन खायो

हज़ारों की भीड़ में नेत्रीजी ने खड्डा नदी के ऊपर जिस छोटे पुल के लिए नींव की पहली ईंट रखी थी वह पुल बनकर उद्घाटन के लिए तैयार था. क्षेत्र के लोगों की छोटी- सी माँग भी पूरी हो गई थी . पर बीती रात ख़बर वायरल हुई कि पुल पहले मानसून को भी नहीं झेल पाया. कल रात की पहली बरसात में ही ज़मींदोज़ हो गया.

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जैसे ही यह ख़बर नेत्रीजी के पास पहुँची, उनके धैर्य का पुल भी टूट गया.  यह बात दीगर है कि नेताओं के धैर्य के पुल तो बात-बात में टूटते ही रहते हैं. उनकी कोई नींव भी तो नहीं होती!पूरी तकनीकी टीम को लबड़धक्के लेने के लिए नेत्रीजी के बँगले में बुलाया गया.  उनकी आँखों से मानसून में भी अंगारे बरस रहे थे. फिर, मानसून सत्र भी तो आ रहा है, जहाँ विपक्ष प्रश्नों की बौछार करेगा!

नेत्रीजी का ग़ुस्‍सा कमरे की छत तोड़कर असमान तक पहुँचने को आमाद था. घर के नौकर-चाकर से लेकर अन्य स्टाफ़ के लोग भी सरकारी फ़ंड से बनी किसी कमज़ोर नींव वाली दीवार की मानिंद थर-थर काँप रहे थे . इस भय के माहौल में नेत्रीजी रह-रह कर सब पर बिजली भी गिरा रहीं थीं.

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बँगले से दनादन फ़ोन खड़कने शुरू हो गए थे. तकनीकी टीम के अधिकारियों में  कोई डर के मारे काँप रहा था तो कोई ऐसा भी था जो किसी बड़े योद्धा की तरह युद्ध के मैदान में लड़ने के लिए तैयार था. ऐसे हादसों से इस शख़्स को डर नहीं लगता,  अपितु उसकी आँखों में एक नई परियोजना के नक़्शे उभरने लगते हैं! जो चला गया वह वापस थोड़े ही आएगा. प्रकृति का नियम तो यही है. इसके आगे कोई नियम नहीं चलता.

बारिश में पुल ढह गया, प्रकृति के आगे सब लाचार हैं . किसी का बस नहीं चलता .चीफ़ साहब के नेतृत्त्व में परियोजना से जुड़े सभी अभियंता, वास्तुकार बुझे-बुझे चेहरे लिए नेत्रीजी के बँगले पहुँचे. पीए साहब ने मौसम की भविष्यवाणी करते हुए बताया – मौसम बहुत ही ख़राब है. कुछ भी हो सकता है? पता नहीं कितनों पर बिजली और कितनों पर गाज गिरेगी? कितने नपेंगे? कुछ भी नहीं कह सकते! ज़रा सँभल कर रहियेगा.

तभी सबसे छोटे साहब ने काँपते हाथों से एक लिफ़ाफ़ा पीए साहब के हाथ में थमाते हुए कहा- कुछ ज़रूरी काग़ज़ात हैं! रख लें. मानो कह रहे हों- मेरा ख्याल रखना. थोड़ी देर में नेत्रीजी ने सबसे पहले चीफ़ साहब को अंदर बुलाया . कुछ देर में वह बाहर आ गए. फिर एक-एक कर सबकी हाज़िरी हुई. बाहर निकलते हुए ऐसे लग रहे थे मानो थाने में ‘सेवा सुश्रुषा’ करने के बाद छूट कर आए हैं.

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अंत में, फ़ील्ड में पुल के सारे कार्यों का निष्पादन करने वाले अधिशाषी अभियंता का नंबर लगा. थर-थर कॉंपते हुए वह भी अंदर गए. नेत्रीजी ने ग़ुस्से से भरी लाल आँखों से पूछा – तुमने ही सबसे ज्‍़यादा माखन खाया लगता है. मरोगे? साहब बड़े रुआँसे हो कर बोले – मैं नहीं माखन खायो, ओ मैया मोरी! मैं नहीं माखन खायो. 

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अब क्या था एक्सइएन साहब ने नेत्रीजी के आगे लंबलेट होते हुए बड़ी मासूमियत से अपनी सफ़ाई देनी शुरू कर दी – मैया, मैं तो सदैवे ही आपका सबसे प्यारा पुत्र-सा रहा हूँ, मेरी ‘सेवा’, में कभी-भी कोई कमी नहीं रही है. फिर भी आप मुझ पर संदेह कर रहीं हैं? मैं तो बहुत छोटा -सा हूँ . मेरे हाथ तो छींके (परियोजना) तक पहुँचते ही नहीं. फिर मैं कैसे माखन खा सकता हूँ?

मैया मोरी सच कहता हूँ. मैं नहीं माखन खायो! फिर भी आपको शक है? आप इन लोगों के बहकावे में आ गईं? तो मैया मेरा चार्ज किसी और को दे दो. नहीं खाना मुझे माखन. मैंने तो सारा माखन पहले ही आपके छींके में सुरक्षित रख दिया था. मैं माखन लगाता ज़रूर रहा हूँ, खाने का का कार्य मेरा नहीं है! इसलिए मैया मोरी, मैं नहीं माखन खायो.

नेत्रीजी के भीतर अचानक माता यशोदा की आत्मा प्रवेश करती है. अपने प्रिय ‘लल्‍ला’ पर भरोसा करते हुए उन्होंने टूटे हुए पुल की जाँच के आदेश दे दिए. चीफ़ साहब को जाँच देते हुए उसमें विलम्ब करने की हिदायत दे दी. जाँच पूरी होने-   तक नीचे के तीन-चार जूनियर अभियंताओं (जिन्होंने अगले कई-कई सालों की व्यवस्था की हुई है) को सस्पेंड कर दिया गया.

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लेखा शाखा के एक अधिकारी और कैशियर को एपीओ (आगामी आदेशों की प्रतीक्षा में ) कर दिया गया. और, खड्डा नदी पर फिर से एक मज़बूत पुल बनाने का कार्य शुरू करने की योजना बनाने के निर्देश दिए गए.