Ranvijay Rao Satire लोकतंत्र की चौखट पर रामखेलावन
Ranvijay Rao Satire लोकतंत्र की चौखट पर रामखेलावन: श्री रणविजय राव भावना प्रकाशन ‘लोकतंत्र की चौखट पर रामखेलावन’ रणविजय राव
Continue reading'मैं कुछ अलहदा तस्वीरें बनाना चाहती हूँ जैसे अंबर की पीठ पर लदी हुई नदी, हवाओं के साथ खेलते हुए, मेपल के बरगंडी रंग के पत्ते, चीटियों की भुरभुरी गुफा या मधुमक्खी के साबुत छत्ते, लेकिन बना देती हूं विलापरत नदी पेड़ पंछी और पहाड़ ।'
Ranvijay Rao Satire लोकतंत्र की चौखट पर रामखेलावन: श्री रणविजय राव भावना प्रकाशन ‘लोकतंत्र की चौखट पर रामखेलावन’ रणविजय राव
Continue readingरणविजय राव : दिन भर की बात : स्वर चंद्रकांता आज बिना अलार्म बजे ही उसकी आंख खुल गई ।
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