Male Discourse! इस दुनिया को पुरुष विमर्श की जरुरत है!
Shraddha and Aftab- failure of a love story or We Need Male Discourse!
Male Discourse
विवाह हो या सह-जीवन कोई भी व्यवस्था औरतों के पक्ष में नहीं है। कभी सुना है कि किसी महिला ने किसी पुरुष के टुकड़े कर दिए हों! या किसी पुरुष पर तेजाब डाल दिया हो? लेकिन पुरुषों का ऐसा करना एक आम वाकया है फिर वह मानसिक विक्षिप्त हो या सामान्य। Platonic love
हत्या हो, तेज़ाब हो, बलात्कार हो, विवाह हो या सह-जीवन (लिव इन) की विफलता हर बात की जिम्मेदारी अंततः महिलाओं पर डाल देना हमारी विक्षिप्त और हत्यारी मानसिकता का ही अंश है। आपने देखा होगा घर परिवार में महिलाएं अपनी समस्या अव्वल तो बताती ही नहीं हैं, एक समय पर बताने की कोशिश भी करती हैं तो कभी डरा-धमकाकर तो कभी प्रेम की शातिर आड़ में उन पर समझौता करने का दवाब बना दिया जाता है। सबसे अधिक दुःखद स्थिति प्रेम विवाह या सह-जीवन संबंध की होती है। जहाँ परिवार और समाज द्वारा विफलता की पूरी जिम्मेदारी महिलाओं पर ही थोप दी जाती है। जो मायका छोड़ते हुए हम दुःखी होते हैं दअरसल वह कभी हमारा था ही नहीं, मायका हो या ससुराल दोनों पुरुषों का ही होता है। मायका तो महिलाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
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क्या आर्थिक आज़ादी सचमुच महिलाओं को उनका हक दिलवा सकी है?
एक समय था जब आर्थिक आज़ादी को महिलाओं का तारणहार मान लिया गया था। परिवर्तन तो हुआ लेकिन समाज की सोच में कोई आमूल-चूल बदलाव नहीं आया। विवाह संस्था को ठुकराकर महिलाओं ने सह-जीवन में आज़ादी और समता ढूंढी। वहाँ भी वे पत्नी की ही भूमिका निभाती रहीं, प्रेमिका भी रहीं तो भी नुकसान में रहीं। पुरुषों के दिमाग में क्या फ़ितूर है कि वे महिला साथी को जिम्मेदारी न समझकर आफ़त मानने लगते हैं और महिलाओं को क्या जुनून है कि वे पुरूष को ही जीवन का केंद्र बना लेती हैं और साथी पुरुष का भेद खुल जाने पर भी घुटती रहना चाहती हैं! इस घुटन में हमारी घुटन भी शामिल है।
बाकी विवाह के लाभ और सह-जीवन के नुकसान गिनवाना हमें बौद्धिक विलासिता अधिक लगता है। यदि आप ठान लेंगे तो सृष्टि की सबसे सुंदर, सबसे तार्किक और सबसे सक्षम व्यवस्था भी विफ़ल हो जाएगी। पूरे विवेक के साथ जिन महिलाओं ने निर्णय लिए वे भी ठगी गईं। हम जानते हैं न तो सभी पुरूष गुनाहगार हैं न सभी महिलाएं विक्टिम। लेकिन गुनाह के अनुपात की स्थिति भयावह है। कृपया महिलाओं के निर्णय पर सवाल उठाना बंद कीजिए और समस्या की जड़ पर चोट कीजिए। अपने सामाजिक व्यवहार और समाजीकरण में सुधार कीजिए। अपने लड़कों को समझाइए। जिस दिन आपके लड़के समझ जाएंगे उस दिन विवाह हो या सह-जीवन दोनों में समस्या कम हो जाएगी। अन्यथा दोनों ही महिलाओं के लिए नुकसान का सौदा हैं और बनी रहेंगी।
पाठकों! कोई एक दो उदाहरण देकर टूट मत पड़ियेगा। आपका घर और आपके अनुभव अपवाद होंगे। बाकी सरे समाज यही आलम है। श्रद्धा ने विश्वास किया, विश्वाघात पाया। सह-जीवन से विवाह में जाने का दवाब बना रही थी तो भी हत्या की अधिकारी तो नहीं थी। और हाँ, जानती हूँ महिलाएं भी कम नहीं है लेकिन क्रूरता और विश्वासघात में पुरुषों की बराबरी करने में अभी लंबा समय बाकी है..
अब दुनिया को पुरूष विमर्श की जरूरत है!