मरू नवकिरण त्रैमासिक पत्रिका का अक्टूबर-दिसंबर 2020 (साहित्य कला और संस्कृति परिशिष्ट) अंक मिला। यह अंक कहानी-लघुकथा विशेष है। परिशिष्ट काआवरण चित्र बेहद खूबसूरत है जिसमें बच्चे को गोद में लिए हुए माँ है। माँ बच्चे के लिए दुनिया का सर्वाधिक सुरक्षित आश्रय है। माँ मनुष्य के भीतर का शुभ है इससे अधिक और क्या कहूँ!
लघु कथा के साथ सबसे बड़ी समस्या सपाटबयानी की होती है जो कि इस परिशिष्ट की कुछ लघु कथाओं में भी दिखाई दी।
इस अंक में कहानी पर इला पारीक, डॉ. कृष्णा आचार्य और आशा शर्मा के ज्ञानवर्धक आलेख हैं। नव लेखकों को आशा शर्मा जी का ‘सरल और तरल हों कहानियाँ’ आलेख अवश्य ही पढ़ना चाहिए जिसमें बेहद सरल शब्दों में उन्होंने कहानी विधा पर बात की है। लघु कथा पर माधव नागदा ने संग्रहणीय आलेख लिखा है।अंक में लगभग 23 रचनाकारों द्वारा लिखी गई लघु कथाएं हैं जिनमें डॉक्टर पी.सी आचार्य की ‘कल किसने देखा है’, प्रियंका सोनी की ‘आईना’, सरोज भाटी की ‘फर्ज,’ मोनिका शर्मा की ‘वॉइस मैसेज’, विनोद कुमार विक्की की ‘जीवन बीमा’ और राजकुमार धर द्विवेदी की ‘गधे का नवाचार’ अच्छी लघु कथाएं हैं।
प्रमिला गंगल की ‘नम्रता’ और प्रेम जनमेजय की ‘ईश्वर की मृत्यु’ विशेषांक की सबसे सार्थक लघु कथाएं हैं। ‘फ्री वाली चाय’ विवेक रंजन श्रीवास्तव की प्रेरणादायक लघु कथा है। डॉक्टर चंद्रेश क्षत्राणी की लघुकथा ‘मैं किस लिए हूँ!’ बेहद सामयिक है। सात दरवाजे की प्रतीक कथा के माध्यम से उन्होंने आत्ममुग्धता के शिकार लेखकों पर रोचक तंज किया है। हालाँकि कथा की बुनावट और बेहतर हो सकती थी।
संग्रह में कुल सात कहानियाँ भी हैं जिसमें सोनी लक्ष्मी राव की कहानी ‘गुब्बारेवाला’ प्रेरणादायक और संतुलित कहानी है. बाकी कहानियाँ अभी पढ़ी जानी शेष हैं।परिशिष्ट में सुप्रसिद्ध हिंदी राजस्थानी कवि कथाकार राजेंद्र जोशी की नवीनतम पुस्तक ‘प्लॉट नंबर 203’ जो पंद्रह कहानियों का संग्रह है, की रोचक समीक्षा नदीम अहमद ‘नदीम’ द्वारा की गई है। हालाँकि वर्तनी की अत्यधिक त्रुटियाँ लेख को बाधित करती हैं.
राजस्थान के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की पत्रिका’ राजस्थान सुजस’ का अक्टूबर 2020 का अंक महात्मा गांधी एकाग्र है. परिशिष्ट में इस अंक की समीक्षा डॉ. अजय जोशी द्वारा की गई है जो विशेषांक को पढ़ने की उत्सुकता पैदा करती है। एकाग्र में श्री मंगलेश डबराल, श्री फारुख अफरीदी और डॉक्टर अजय जोशी के लेख भी शामिल है।
लघुकथा विशेषांक में हिंदी कहानी और लघु कथा पर लिखा हुआ डॉ. अजय जोशी का संपादकीय भी है।कुछ लघु कथाएं अधूरी लगीं तो कुछ शब्दों का अतिक्रमण करती हुई दिखीं। कहीं शब्दों का चमत्कार अधिक था तो कुछ लघु कथाओं में सपाट बयानी दिखी। जबकि लघु कथाओं को तथ्य और शब्द संयोजन दोनों ही दृष्टि से सारगर्भित होना चाहिए।
मेरे विचार में लघुकथा हमें शब्दों का अनुशासन सिखाती है। शब्दों की मितव्ययता, शब्द शक्ति की मुखरता और सारगर्भित कथ्य किसी भी लघुकथा का केंद्रीय पक्ष होने चाहिए।इसमें चंद्रकांता की लघुकथा ‘अनोखी’ भी शामिल है जो अधूरी छपी है। पिछले अंक में भी वर्तनी की काफी त्रुटियाँ थीं संपादक को इस तरफ ध्यान देना चाहिए। इस अंक में संस्मरण का अभाव खला। लेखकों के लिए एक सुझाव है कि कहानी लिखने के बाद उसे कम से कम दो बार अवश्य पढ़ें। वर्तनी की एकाधिक त्रुटियाँ रचना के संप्रेषण में बाधा पैदा करती है।कुल मिलाकर यह एक पठनीय परिशिष्ट है। एक ऐसे समय में जब लघु पत्रिकाएं संकट काल से गुजर रही हैं, मरू नवकिरण का यह संकल्प निश्चय ही सराहनीय है। लघु पत्रिकाओं को पाठकों का सहयोग मिलना चाहिए। आप पत्रिका का सब्सक्रिप्शन भी ले सकते हैं ।
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