चंद्रकांता-कविता-मेह-तुम-टूटकर-बरसो

मेह तुम टूटकर बरसो
नीरद की दहलीज़ लांघकर
सागरों से फट पड़ो
घट-घट मे भर दो प्राण
कण-कण कों कर दो तृप्त
मेह तुम टूटकर बरसो।
पत्ते झुलस गये हैं
प्रकृति उदास है
मेढ़ों की शुष्क दरारों को
सूखे हुए चनारों को
सावन की आस है
मेह तुम टूटकर बरसो।

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झींगुर मूक हो गए 
सूने-सूने सब गीत हैं
यौवन है थका हुआ
कंवल चुपचाप है
वसुंधरा में ताप है
मेह तुम टूटकर बरसो।
पाखी सब रूठे हुए
पोखर सब उजड़ गए   
हलधर को कलेश है
थक चुका कुम्हार है
सूना हुआ चाक है
मेह तुम टूटकर बरसो।


 © पिंक रोज़ (चंद्रकांता) PINK ROSE ( CHANDRAKANTA)







साभार गूगल चित्र