पिलकेंद्र अरोड़ा : ये रचना अगर छप भी जाये तो क्या है
पिलकेंद्र अरोड़ा : ये रचना अगर छप भी जाये तो क्या है : स्वर चंद्रकांता
व्यंग्य : ये रचना अगर छप भी जाए तो क्या है !
बचपन मे कहीं पढ़ा था कि साहित्य में तोप, तलवार और बम के गोलों से भी ज्यादा शक्ति होती है। उन्हीं दिनों एक फिल्म लगी थी, ‘समाज को बदल डालो’। बस फिर क्या था! मुझ पर तोप चलाकर समाज को बदल डालने की एक धुन सवार हो गई!….. क्रांतिकारी धुन
और मैं बन गया साहित्य का तोपची ।और जमकर रचनाओं की बम बार्डिंग षुरू कर दी ! पर यह क्या! न बम फूटे !न समाज बदला! जिसे मैने तोप समझा, वह तमंचा निकली । जिसे बम समझा, वह टिकड़ी! वह भी फुस्स!
अब जब भी मैं कोई नई रचना लिखता हूं या किसी पुरानी रचना को रफू करता हूं !तो ये सोचता हूं कि ये रचना अगर छप भी जाए तो क्या है…! क्या लिखूं, और क्यों लिखू . साहित्य और देष का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है !कि जिस जिस विषय पर मैंने वक्र-द्रष्टि वह विषय और अधिक वक्र हो गया। वो कहते हैं! हैं न जहां जहां पावं पड़े संतन के..
अब जब भी मैं कोई नई रचना लिखता हूं या किसी पुरानी रचना को रफू करता हूं !तो ये सोचता हूं कि ये रचना अगर छप भी जाए तो क्या है…! क्या लिखूं, और क्यों लिखू . साहित्य और देष का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है !कि जिस जिस विषय पर मैंने वक्र-द्रष्टि वह विषय और अधिक वक्र हो गया। वो कहते हैं! हैं न जहां जहां पावं पड़े संतन के……
मैने भूख पर लिखा, भुखमरी बढ़ गई। मैने लिखा था कि उड़ीसा के कई गांवों में बच्चों को यह नहीं पता! कि रोटी क्या होती है! और दाल किसे कहते हैं! 6 महीने बाद पता लगा कि उस गांव के बच्चे अब सल्फास खाकर अपनी भूख मिटाने लगे हैं!
सुनिये चर्चित व्यंग्यकार प्रभात गोस्वामी का व्यंग्य ‘मैं नहीं माखन खायो’ https://gajagamini.in/prabhat-goswami-main-nahin-makhan-khayo/
मैंने गरीबी पर लिखा ,गरीबी रेखा की परिभाषा बदल गई। लोग बालीवुड की रेखा की गरीबी की चर्चा करने लगे! मैने बेकारी पर लिखा, आटोमेषन बढ़ गया। इंडिया डिजिटल हो गया । बीमारी पर लिखा, ष्मषान बढ़ गए। मंहगाई पर लिखा , मिल,, माल, और मल्टीप्लेक्स बढ़ गए। इधर मैं विसंगतियों पर लिखता रहा !उधर विसंगतियां मुंह फाड़ कर मुझे चिढ़ाती रहीं!
भ्रष्टाचार पर लिखा ,स्विस बैंकों मे नए खाते खुल गए! नेताओं पर लिखा ,,विधायकों और सांसदों मंडिया खुल गई । संसद पर लिखा, मर्यादा भंग हो गई। विधानसभा पर लिखा ,गरिमा तार -तार हो गई। समाजवाद पर लिखा, खाईयां बढ़ गईं। खाईयों पर लिखा ,कुएं बढ़ गए। स्वदेशी पर लिखा, मल्टीनेषनल बढ़ गईं।देसी पर लिखा, अहाते बढ़ गए। अहातों पर लिखा, माल्या बढ़ गए।माल्या पर लिखा नीरव मोदी बढ़ गऐ। नीरव मोदी पर लिखा ष्तो बैंको के एनपीए बढ़ गए। एनपीए पर लिखा ,कई बैंक यस बैंक हो गए।
षर्म मुझे फिर भी नहीं आई !मैं लिखता ही रहा!लिखता ही रहा!
किसान पर लिखा, आत्महत्याएं बढ़ गई। उद्योग पर लिखा, पोल्युषन बढ़ गया ।मजदूर पर लिखा, मषालें बढ़ गईं। पुलिस पर लिखा, सलाखें बढ़ गईं। वकील पर लिखा ,कटघरे बढ गए ।डाक्टर पर लिखा, वैंटीलेटर बढ़ गए। अफसर पर लिखा, छापे बढ़ गए। छापे पर लिखा, सीबीआई पीबीआई बन गई! पोलिटिकल ब्यूरो आफ इन्वेस्टीगेषन !
किसान पर लिखा, आत्महत्याएं बढ़ गई। उद्योग पर लिखा, पोल्युषन बढ़ गया ।मजदूर पर लिखा, मषालें बढ़ गईं। पुलिस पर लिखा, सलाखें बढ़ गईं। वकील पर लिखा ,कटघरे बढ गए ।डाक्टर पर लिखा, वैंटीलेटर बढ़ गए। अफसर पर लिखा, छापे बढ़ गए। छापे पर लिखा, सीबीआई पीबीआई बन गई! पोलिटिकल ब्यूरो आफ इन्वेस्टीगेषन !
पर मैंने हठ न छोड़ा और लगातार लिखता ही रहा!
धर्म पर लिखा, साम्प्रदायिकता बढ़ गई। जाति पर लिखा, वोट बैंक बढ़ गए। शिक्षा पर लिखा, कोचिंग कारखाने खुल गए। हिंदी पर लिखा, कान्वेंट बढ़ गए।कान्वेंट पर लिखा ,चर्च बढ़ गए। चर्च पर लिखा बजरंगी बढ़ गए! बजरंगियो पर लिखा कामरेड बढ गए! कला पर लिखा, कलाबाजी बढ़ गई। साहित्य पर लिखा ,गुटबाजी बढ़ गई। और संस्कृति पर लिखा,धंधेबाजी बढ़ गईं। टेलीविजन पर लिखा, फैषन चैनल बढ़ गए। फिल्म पर लिखा ,सैंसर बोर्ड के भाव बढ़ गए।
सैंसर बोर्ड पर लिखा ,षिला और जवान हो गई। मुन्नी और बदनाम!होे गई।वेबसाईट पर लिखा ,पावन पुनीत और धार्मिक साईट्स बढ़ गईं। साईटस पर लिखा समाज में पषु बढ़ गए! ंपषुओं पर लिखा , षहर में जंगल बढ़ गए।
महात्मा गांधी पर लिखा गोड़़से बढ़ गए। गोड़से पर लिखा ,कुछ मंदिर बढ़ गए! नेहरू पर लिखा, गुलाब में कांटे बढ़ गए। कांटों पर लिखा, कमल बढ़ गए!कमल पर लिखा, कीचड़ बढ़ गया।कीचड़ पर लिखा दल -दल बढ गई!
मैं निराष नहीं हुआ और लिखने का अपराध करता रहा!
Amazon Prime Video’s nine episodes web-series Paatal Lok is a crime thriller.https://matineebox.com/paatal-lok-review-intriguing-story-jaideep-ahlawat/
संन्यास पर लिखा, बाबागिरी बढ़ गई। बाबाओं पर लिखा, गुफाएं बढ़ गईं !गुफाओं पर लिखा हनीप्रीते बढ़ गई। हनीप्रीतो पर लिखा ,बाबा बढ़ गए! निर्भया पर लिखा ,कैंडल कारखाने बढ़ गए। कैंडल पर लिखा, ,दामिनियां बढ़ गईं! दामिनियों पर लिखा सभ्यता की चीखें बढ़ गईं! चीखों पर लिखा ,संस्कृति की सिसकियां बढ़ गईं! सिसकियों पर लिखा इंसानियत के आंसू बढ गए।
इसीलिए कभी कभी में सोचता हूं कि ये रचना अगर छप भी जाए तो क्या है!