मजदूर – २
उनके पसीने से आती
निर्मम सडांध
आपको इतनी तीखी लगती है, कि
उस गंध के बारे में सोचनें भर से ही
आपके मखमली नथुने
पैरों की बिवाईयों की भांति फट जाते हैं
दिमाग भि-न-भि-ना जाता है
और धमनियां लगभग काम करना बंद कर देती हैं
लेकिन फिर भी आप
फेसबुक-ट्विटर पर
और गली-मोहल्ले-कालेज की चर्चाओं में
‘थर्ड -क्लास’ के पक्ष में अपनी आवाज़ बुलंद करते हैं
प्रदर्शन के गंभीर पोज़
बेहद रो-मा-नि-य-त के साथ अपडेट करते हैं
प्रशंसा का और अधिक सुख लेने हेतु
कुछ चुनिन्दा ‘फर्स्ट-क्लास’ बुद्धि विक्रेताओं को टैग करते हैं
किन्तु आत्मतुष्टि की ये भंगिमाएं
स्वकर्तव्य बोध के अभाव में
उतनी ही बे-गैरत हैं, जितना
प्रेस के लियें गैरजरूरी है
अनुसूचित जाति-जनजाति के मजदूर का
किसी बंद पड़ी खदान में काम करते हुए
ठेकेदार-राज्य-प्रशासन की
एकजुट अव्यवस्था के मध्य दबकर, फंसकर
अकेले मर जाना !!!
दरअसल, हम सभी अधिनायक अवसरवादी हैं ..
चंद्रकांता