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Aruna Shanbagh Uthenesia अरुणा शानबाग की कहानी और भारत में इच्छामृत्यु

Aruna Shanbagh अरुणा शानबाग और इच्छामृत्यु

मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल की नर्स अरुणा शानबाग हॉस्पिटल के वार्ड बॉय सोहनलाल वाल्मीकि द्वारा की गई क्रूरतम हुई यौन हिंसा के कारण चार दशक तक कोमा (Vegetative State) में रहीं . उनकी इच्छामृत्यु ( uthenesia) के आवेदन को कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया। अरुणा शानबाग के मामले के चलते भारत में पहली बार इच्छा मृत्यु पर बहस शुरू हुई.

Image courtesy google

अरूणा शानबाग का मामला:- हल्दीपुर कर्नाटक की अरुणा रामचंद्र शानबाग मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल के स्पेशल वार्ड में नर्स थीं . अरुणा की सगाई उसी अस्पताल के एक जूनियर डॉक्टर से हुई थी। 27 नवम्बर 1973 को अपनी ड्यूटी खत्म कर जब अरुणा चेंजिंग रूम में कपड़े बदल रही थीं अस्पताल के एक वार्ड बाय सोहनलाल वाल्मीकि ने पालतू पशुओं को बांधकर रखने वाली चेन अरुणा की गर्दन में बाँधी और उनके के साथ अप्राकृतिक यौनाचार किया . इस क्रूरतम यौन हिंसा और गर्दन में चेन के कसे जाने से अरुणा के दिमाग को आक्सीजन की सप्लाई बंद हो गई जिससे अरुणा को दिखना बंद हो गया, उनका शरीर निष्क्रिय हो गया और वह कोमा में चली गयीं.  

तो क्या सोहनलाल को इस क्रूरतम अपराध के लिये कोई सजा हुई ? Social Justice

घटना की रिपोर्ट 

अब जो बात मैं आपको बताने जा रही हूँ बहोत संभव है आपके पैरों तले से जमीन खिसक जाए या इंसानियत पर आपका भरोसा कम हो जाए . इस क्रूरतम अपराध के लिये सोहनलाल को कोई सजा नहीं मिली. अस्पताल प्रशासन ने बदनामी के डर से रेप की रिपोर्ट नहीं करवाई। सोहनलाल के खिलाफ हत्या व लूटपाट की कोशिश का मामला दर्ज हुआ जिसके लिये उसे केवल सात साल की सजा हुई . इस पूरे केस में कहीं भी बलात्कार और अप्राकृतिक यौन हिंसा का जिक्र नहीं किया गया और न ही उसके लिए सोहनलाल को कोई सजा दी गयी.  

आखिर सोहनलाल ने ऐसा क्रूरतम अपराध क्यों किया? क्या उसकी अरुणा से कोई निजी दुश्मनी थी ? 

गूगल पर उपलब्ध लेखों में पिंकी वीरानी द्वारा अरुणा शानबाग पर लिखी गयी किताब के हवाले से यह बात बताई गयी है कि सोहनलाल पशुओं के लिये आने वाला भोजन चुराता था इस भोजन का इस्तेमाल कुत्तों पर किये जाने वाले मेडिकल एक्सपेरिमेंट के लिये होता था. इस बात को लेकर उसका अरुणा से विवाद हुआ और वह गुस्से में था इसलिये उसने अरुणा के साथ यह जघन्य हिंसा की. 

चूँकि अरुणा को उस वक़्त मासिक धर्म चल रहा था इसलिये सोहनलाल ने उसके साथ अप्राकृतिक यौनाचार को अंजाम दिया. कोर्ट ने माना कि वह रेप के इरादे से अरुणा के पास गया था लेकिन टू फिंगर टेस्ट में वजाइनल रेप की पुष्टि नहीं हुई इसलिये सोहनलाल को इस घटना में कभी भी रेप का अपराधी नहीं माना गया . चूँकि अपराध को अंजाम देते वक्त उसने अरुणा की बालियाँ और घडी भी चुराई थी उसे केवल इसी बात के लिये अभियुक्त बनाया गया . 

सोहनलाल की शादी इस घटना के कुछ वक्त पहले ही हुई थी वह उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. सोहनलाल के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है की इस घटना के बाद वह अपनी पहचान बदलकर दिल्ली के किसी अस्पताल में नौकरी करने लगा था . दुःख की बात है की सोहनलाल का कोई रिकार्ड या कोई तस्वीर पुलिस के पास नहीं है . भविष्य में किसी अपराध से सचेत रहने के लिए मीडिया व प्रशासन द्वारा अपराधी की तस्वीर सार्वजनिक की जानी चाहिए। 

इस हादसे के बाद अरुणा ने अपने जीवन के चार दशक किंग एडवर्ड अस्पताल के वार्ड नंबर 4 के नजदीक बने एक छोटे से कमरे में बिता दिए. 1980 में अस्पताल की नर्सों ने अरुणा को वहां से हटाए जाने और नर्सों की वर्किंग कंडीशन्स को लेकर हड़ताल की जिसके आगे बम्बई म्युनिसिपल कारपोरेशन को झुकना पड़ा और अरुणा को केईएम् अस्पताल से शिफ्ट करने का अपना फैसला बदलना पड़ा. इस पूरे केस में यदि कोई आशा की किरण है तो वह है किंग एडवार्ड अस्पताल की वो नर्सें जिन्होंने सच्ची लगन से अरुणा की देखभाल की और उनकी पीड़ा को एक परिवार का कोमल स्पर्श दिया।

अरुणा बयालीस वर्ष तक कोमा में रहीं डाक्टरों द्वारा दी गयी रिपोर्ट के मुताबिक 18 मई 2015 को ६६ वर्ष की आयु में निमोनिया और लंग्स इन्फेक्शन की वजह से उनकी मृत्यु हो गई। 

इच्छा-मृत्यु 

दिसंबर 2010 में  लेखिका और मानवाधिकार कार्यकर्ता पिंकी विरानी की तरफ से अरुणा के लिये इच्छा मृत्यु मांग की गई, ताकि अरुणा को इस पीड़ा भरे जीवन से मुक्ति मिल सके. पिंकी वीरानी की अपील पर माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अरुणा की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय मेडिकल टीम गठित की गई. 

मेडिकल टीम ने अपनी जांच में अरुणा को PVS यानी persistant vegetative state में पाया . परसिस्टेंट vegetative state चेतना या conciousness का एक डिसआर्डर है . जिसमें मरीज भौतिक रूप से तो जागृत दिखाई पड़ता है लेकिन बहोत अधिक ब्रेन इन्जरिस की वजह से उसकी चेतना किसी बात पर प्रतिक्रिया नहीं करती. इसमें व्यक्ति में सोचने व  समझने की क्षमता नहीं रह जाती . यह शरीर की एक स्थाई शिथिल अवस्था है . यह कोमा की स्थिति से अलग है कोमा में व्यक्ति गहरी नींद या लंबी बेहोशी की हालत में चला जाता है . 

अरुणा के केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लाइफ सपोर्ट को बंद करने का फैसला माता-पिता, पति या पत्नी, या अन्य करीबी रिश्तेदारों, या बेहद करीबी मित्र ही ले सकते हैं.  और इस फैसले के लिए संबंधित उच्च न्यायालय से मंजूरी की आवश्यकता होगी. कोर्ट ने वीरानी को अरुणा शानबाग के ‘सबसे करीबी दोस्त’ के रूप में मानने से इनकार कर दिया कोर्ट की नजर में अरुणा की देखभाल करने वाले  केईएम हाॅस्पिटल के स्टाफ को अरुणा  का  ‘सबसे करीबी दोस्त’ माना गया । केईएम अस्पताल के कर्मचारियों ने यह इच्छा प्रकट की कि अरुणा शानबाग उनकी देखरेख में जिए, अंततः कोर्ट ने अस्पताल को इस बात की इजाजत दी और अरुणा बाग की इच्छा मृत्यु के आवेदन को खारिज कर दिया।

.इस केस से भारत में उन लोगों के लिए सम्मान के साथ मृत्यु के अधिकार पर बहस शुरू हुई थी, जो स्थायी  कोमा की स्थिति में थे. 

इस तरह साल 2011 के अपने फैसले में पहली बार कहा था कि पैसिव इच्छा मृत्यु की अनुमति दी जानी चाहिए . 

( इच्छा-मृत्यु पर कोर्ट का अब तक रुख क्या रहा है . )

इच्छामृत्यु अर्थात यूथेनेशिया। इस पर सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायधीशों की बेंच ने 7 मार्च 2011 को एक ऐतिहासिक फैसला दिया और कहा कि इंसान को गरिमा के साथ जीने और गरिमा के साथ मरने का पूरा हक है. मृत्यु का अधिकार भी अनुच्छेद २१ के तहत व्यक्ति का मौलिक अधिकार है. कोर्ट द्वारा पैसिव युथेनेशिया या निष्क्रिय इच्छामृत्यु को वैध बनाने के लिए व्यापक दिशानिर्देशों भी जारी किये गये ।. 

पैसिव यूथेनेशिया के तहत मरीज़ को दिए जा रहे इलाज या लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम में धीरे-धीरे कमी कर दी जाती है जबकि एक्टिव यूथेनेशिया में ऐसा प्रबंध किया जाता है जिससे मरीज़ की सीधे मौत हो जाए जैसे मरीज को जहर का इंजेक्शन देना . भारत में एक्टिव युथेनेशिया अब भी गैर कानूनी है . 

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा – यदि कोई व्यक्ति किसी असाध्य बिमारी से पीड़ित है तब उसे कुछ शर्तों के साथ लिविंग विल की इजाजत दी जानी चाहिए. 

यह लिविंग विल क्या है ?

लिविंग विल एक लिखित दस्तावेज है, जिसमें कोई व्यक्ति अपने जीवित रहते हुए यह वसीयत लिख सकता है कि – यदि उसे कोई लाइलाज बिमारी हो जाए, वह कोमा में चला जाए या वह अपनी चिकित्सा को लेकर कोई निर्णय ले पाने की स्थिति में न हो तो उसके शरीर को लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम पर न रखा जाए. और ऐसी स्थिति में उनके परिजन जीवन रक्षक प्रणाली को हटवाने के लिए अधिकृत होंगे . लेकिन, 

लिविंग विल पर इच्छा मृत्यु की इजाजत मेडिकल बोर्ड के अंतिम फैसले के बाद ही दी जा सकेगी और जिस व्यक्ति को इच्छा मृत्यु चाहिए उसके परिवार की मंजूरी लेना जरुरी होगा. वर्तामन में भारत में कुछ शर्तों के साथ लिविंग विल और पैसिव युथेनेशिया दोनों ही कानूनी हैं .यदि व्यक्ति की लिविंग विल नहीं है तब भी उस व्यक्ति के रिश्तेदार और चिकित्सक मिलकर ‘परोक्ष इच्छामृत्यु’ का निर्णय ले सकते हैं. इस फैसले के लिए संबंधित उच्च न्यायालय से मंजूरी की आवश्यकता होगी. दुःख की बात है कि अरुणा शानबाग ने इच्छा मृत्यु के जिस कानून के लिए राह दिखाई वह खुद उसका उपयोग नहीं कर सकीं और 42 वर्ष तक एक अकथनीय पीड़ा को झेलती रहीं।

पिंकी वीरानी ने अरुणा शानबाग पर Aruna’s Story: The True Account of a Rape and Its Aftermath नाम से एक किताब भी लिखी. अरुणा की कहानी पर दात्ताकुमार देसाई ने मराठी में कथा अरुणाची नाम से एक नाटक लिखा. इसके अतिरिक्त हरकिशन मेहता का फिक्शन उपन्यास जड़ चेतन भी अरुणा शानबाग के जीवन पर आधारित है .

Chandrakanta

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