हे! पीताम्बर
अब तुम चमत्कृत नहीं करते
अनावृत हो चली है
तुम्हारे अधरों पर खेलती
वह कुटिल मुस्कान
तुम्हारे मस्तक पर, शोभित
यह पंख-मयूर
आत्मा में
शूल की तरह चुभता है
कहो! कृष्ण
तुम केवल पुरुष ही थे ना
जो छलते रहे
स्त्री का तन-मन-वचन
बहरूपिया बनकर
अरे! निर्लज्ज निष्कामी
देखो उस स्त्री को
जो छ-ट-प-टा-ती रही
तुम्हारी दूषित मर्यादा के(द्वारा)
नोच लिए जाने पर
गुनाहों के देव!
तुम्हारा पीत वस्त्र
बिकता है रात-दिवस
गली-मोहल्ले हर नुक्कड़
कौड़ी के भाव जिस्म बनकर
सच कहो!
तुम्हारा हिय नहीं फट पड़ता
मधुबन के माली..
( पीताम्बर कृष्ण का संकेत यहाँ केवल ‘छलना’ के अर्थ में किया गया है )
चंद्रकांता
Recent Posts श्री शिवताण्डवस्तोत्रम् Shri Shivatandava Strotam श्री रावण रचित by shri Ravana श्री शिवताण्डवस्तोत्रम् Shri Shivatandava…
बोल गोरी बोल तेरा कौन पिया / Bol gori bol tera kaun piya, मिलन/ Milan,…
तोहे संवरिया नाहि खबरिया / Tohe sanwariya nahi khabariya, मिलन/ Milan, 1967 Movies गीत/ Title:…
आज दिल पे कोई ज़ोर चलता नहीं / Aaj dil pe koi zor chalta nahin,…
हम तुम युग युग से ये गीत मिलन के / hum tum yug yug se…
मुबारक हो सब को समा ये सुहाना / Mubarak ho sabko sama ye suhana, मिलन/…
This website uses cookies.
Accept
View Comments
आपके फेसबुक पेज से आपके ब्लॉग के बारे मे पता चला।
आप बहुत अच्छा लिखती हैं। यह कविता भी अच्छी लगी।
सादर
-----
अगर कुछ दे सको तो ........
एक निवेदन
कृपया निम्नानुसार कमेंट बॉक्स मे से वर्ड वैरिफिकेशन को हटा लें।
इससे आपके पाठकों को कमेन्ट देते समय असुविधा नहीं होगी।
Login-Dashboard-settings-comments-show word verification (NO)
अधिक जानकारी के लिए कृपया निम्न वीडियो देखें-
http://www.youtube.com/watch?v=L0nCfXRY5dk
धन्यवाद!
आभार यश जी हमें पहले भी इस और किसी नें संकेत किया लेकिन हमें तकनिकी रूप से समझ नहीं आया।
आपसे निवेदन है की अब सेटिंग चेक कीजिये शायद सुधार हो गया है।
This comment has been removed by the author.
This comment has been removed by the author.
A social concern in lyrical form. Beautiful. I again appreciate you to take the poetry beyond the limits of art.