बराक नम्बर ग्यारह का वह अनूठा बसंत
जब पेड़ की उनींदी शाखों पर पर नई कपोलें फूटनें लगें, जाड़ों से ठिठुरते हुए पक्षियों की सुस्ती एक मधुर
Continue reading'मैं कुछ अलहदा तस्वीरें बनाना चाहती हूँ जैसे अंबर की पीठ पर लदी हुई नदी, हवाओं के साथ खेलते हुए, मेपल के बरगंडी रंग के पत्ते, चीटियों की भुरभुरी गुफा या मधुमक्खी के साबुत छत्ते, लेकिन बना देती हूं विलापरत नदी पेड़ पंछी और पहाड़ ।'
जब पेड़ की उनींदी शाखों पर पर नई कपोलें फूटनें लगें, जाड़ों से ठिठुरते हुए पक्षियों की सुस्ती एक मधुर
Continue readingJagriti 1954 – हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल कर, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल कर ।
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