चिट्ठी , मिटटी लगती थी..














कुछ भूल गए हैं हम..चिट्ठी लिखना ..


बातें खट्टी हों
कड़वी या बताशा  
चिठ्ठी, मिटटी सी लगती थी

आँखें भीजती थीं  
पाते से थाती प्यार की
मन, मल्हार गाता था

डाकिये का आना
होता था खबर,किसी के
आने-जाने, गीत की 

लांघकर दीवारें
देस-परदेस की
अब नहीं आती, चिट्ठी

चिठ्ठी में छिपा मन
मन की धड़कन, चुप है
कितनी सदियाँ रीत गयी

अब गुलमोहर के
फूल नहीं खिलते, कागज़ पर 
खिलखिलाती है ट्रिन ! ट्रिन !! ट्रिन !!!



चंद्रकांता