फेसबुक के बहुचर्चित कार्यक्रम *‘नमस्ते भारत’ ने पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी के रचना कर्म पर परिचर्चा आयोजित कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की*
7 जुलाई 1883 को जयपुर की पुरानी बस्ती में महाराजा राम सिंह के राज पंडित पं. शिवराम शर्मा और लक्ष्मी देवी के घर चंद्रधर शर्मा गुलेरी का जन्म हुआ। संस्कृत के प्रकांड पंडित गुलेरी जी निबंधकार, कवि, कहानीकार, संपादक, समीक्षक, भाषाविद, कला समीक्षक व गहन शोधकर्ता थे। इस अवसर पर ‘नमस्ते भारत विद चंद्रकांता’ कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि, लेखक व आलोचक डॉ. राम दरश मिश्र, वरिष्ठ कथाकार, आलोचक व साहित्य इतिहासकार डॉ. सुशील कुमार फुल्ल, वरिष्ठ कवि, कथाकार व बाल साहित्यकार डॉ. प्रत्यूष गुलेरी, लेखक व ब्लॉगर डॉ. आशुतोष गुलेरी एवं जयपुर से कवि व लेखक श्री प्रेमचंद गाँधी ने शिरकत की।
कार्यक्रम की सूत्रधार चंद्रकांता द्वारा गुलेर ग्राम में 138 वें गुलेरी जयंती समारोह के विषय में पूछे जाने पर डॉ. प्रत्यूष गुलेरी ने बताया कि कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए आज गुलेर में पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी को श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए। चर्चा के दौरान डॉ. प्रत्यूष गुलेरी ने बताया कि गुलेरी जी केवल गुलेर या हिमाचल के न होकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक हैं। उनका जन्म राजस्थान ( जयपुर ) में हुआ बावजूद इसके उनका अपनी मातृभूमि गुलेर से सदैव अनन्य प्रेम रहा इसीलिए उन्होंने गुलेरी उपनाम का वरण किया। उन्होंने अपने कार्यों से गुलेर को सदा के लिए अमर कर दिया। डॉ. प्रत्यूष गुलेरी ने ‘नमस्ते भारत’ के मंच से पं. चंद्रधर शर्मा और गुलेर से जुड़े हुए संस्मरण भी साझा किए तथा उनके लेखन को समग्र रूप से सामने लाने के लिए डॉ. पीयूष गुलेरी व गुलेरी बंधुओं के योगदान पर भी चर्चा की।
1983 में चंद्रधर शर्मा गुलेरी की जन्म शताब्दी पर बहुत से पत्र-पत्रिकाओं में उन पर विशेषांक निकाले थे। 1983 के सारिका विशेषांक में डॉ. फुल्ल ने एक विशेष संदर्भ में गुलेरी जी को कहानीकार मानने से इंकार कर दिया था! कार्यक्रम की सूत्रधार चंद्रकांता द्वारा इसकी पड़ताल किए जाने पर डॉ. फुल्ल ने कहा की पं. चंद्रधर ने खुद को कहानीकार, कवि या निबंधकार न मानते हुए अपने आत्म-परिचयात्मक लेख में इस बात की पुष्टि की है कि ‘मैं एक आलोचक विद्वान के रूप में जाना जाता हूँ’। गुलेरी जन्मशती पर डॉ. पीयूष गुलेरी, डॉ विद्यधर शर्मा गुलेरी और मनोहर जी ने अपने शोध व श्रम से सामग्री संचित की जिससे उनका रचना कर्म विस्तृत रूप में हमारे समक्ष आया। पुस्तक समीक्षा का आरंभ 1902 में गुलेरी जी के संपादकत्व वाले ‘समालोचक’ से ही हुआ।
1983 तक प्राप्त उनकी तीन कथाएं ‘उसने कहा था, सुखमय जीवन व बुद्धू का कांटा’ एक पाठक के तौर पर मुझे भी रोचक लगती है किंतु एक समीक्षक की दृष्टि से मैंने उनके संयोजन में शिथिलता का अनुभव किया। गुलेरी जी के निबंधों में प्रसंगों की अधिकता है। Usne Kaha Tha ‘उसने कहा था’ को गुलेरी जी की कालजयी कहानी के रूप में ख्याति प्राप्त है किंतु ‘बुद्धू का कांटा’ अधिक सक्षम कहानी है।
श्रोता के रूप में उपस्थित डॉ. सरोज परमार ने ‘ निबंधों में प्रसंग’ पर अपनी सहमति दी किंतु उन्होंने ‘उसने कहा था’ को गुलेरी जी की श्रेष्ठ कथा माना। ‘भारत की जय’ कविता को उनकी श्रेष्ठ कविता मानते हुए डॉ. फुल्ल ने कहा कि संस्कृत व हिंदी में लिखी उनकी कविताओं की व्याख्या हो तथा उनके रचना धर्म का पुनर्पाठ किया जाना चाहिए। डॉ. फुल्ल ने उस काल के आलोक में गुलेरी काव्य में दरबार की स्तुति की प्रवृति को भी उकेरा। जिस पर डॉ. आशुतोष गुलेरी ने अपना पक्ष रखते हुए उनसे असहमति जाहिर की। उन्होंने ‘रवि’ और ‘आहिताग्नि’ कविता का उदाहरण देते हुए कहा कि आरंभिक चौबीस छंद पढ़ते हुए यह स्तुतिगान प्रतीत होती है किंतु पच्चीसवें बंध को पढ़कर स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि यह दरबारी काव्य नहीं है अपितु राजशाही पर कटाक्ष या व्यंग्य है। डॉ. आशुतोष ने गुलेरी जी के काव्य रचना कर्म पर प्रकाश डालते हुए बताया कि गुलेरी जी की कविताएं छंदबद्ध हैं। आपने शिखरिणी छंद में कही गयी ‘आहिताग्नि’ कविता का सरस् पाठ कर श्रोताओं को मोह लिया। डॉ. आशुतोष ने यह भी कहा की गुलेरी जी के कृतित्व को समझने के लिए पाठक को भी उन्हीं के शिखर स्तर पर बैठना होगा। डॉ. प्रत्यूष ने गुलेरी जी की टिप्पणियों, दृष्टांतों और निबंधों को कहानी या लघुकथा कहकर छापने की प्रवृत्ति की निंदा करते हुए इसे बाजार उन्मुख आचरण कहा।
कार्यक्रम में आदरणीय डॉ. रामदरश मिश्र ने वीडियो वक्तव्य के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज की। आपने ‘उसने कहा था’ को हिंदी की प्रथम कहानी कहे जाने के संदर्भ में अपने विचार साझा किए। जन्मस्थली जयपुर, राजस्थान में गुलेरी जी की साहित्यिक प्रतिष्ठा पर बात करते हुए श्री प्रेमचंद गांधी ने बताया जयपुर में ऐतिहासिक रूप से प्रगतिशील परंपरा के लेखकों में गुलेरी जी अग्रणी हैं। इस बात को मद्देनजर रखते हुए राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ उस परिसर को ‘गुलेरी ग्राम’ का संबोधन दिया जहाँ संघ का प्रथम कार्यक्रम आयोजित हुआ था । 2015 में गुलेरी जी द्वारा रचित उसने कहा था कहानी के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर एक गोष्ठी की गई थी जिसमें उनके संपूर्ण रचना कर्म पर इस बहाने चर्चा की गई। इस कार्यक्रम का निचोड़ यह रहा कि साहित्य में गुलेरी जी के योगदान को सही तरीके से रेखांकित नहीं किया जा सका है। उन्होंने यह भी बताया कि राजस्थान में किसी गली का नाम गुलेरी जी के नाम पर रखे जाने का प्रस्ताव भी किया गया लेकिन सरकार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया।
पालमपुर से लेखिका व संपादक सुश्री चंद्रकांता व तकनीकी निदेशक डी.डी. शर्मा के निर्देशन में ‘नमस्ते भारत’ कार्यक्रम सार्थक साहित्यिक विमर्श हेतु महत्वपूर्ण साहित्यिक परिचर्चाएं आयोजित करता रहा है। कार्यक्रम में भागीदारी के लिए www.facebook.com/chandrakanta.writer पर जुड़ा जा सकता है । श्री प्रेमचंद गाँधी ने चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ के संपूर्ण कृतित्व पर आयोजित विमर्श के लिए ‘नमस्ते भारत’ के इस अनूठे प्रयास की मुक्तकंठ से सराहना की और कार्यक्रम का समापन करते हुए सभी वक्ताओं को धन्यवाद प्रेषित किया।
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