आंधी तूफ़ान के बीच उम्मीद की रौशनी chilDren Of hOpe 2
भगाणा डायरी 2
06.05.14, 7:30 pm आंधी-तूफ़ान से जूझते बच्चे
निजी व्यस्तता और फिर ट्रैफिक जाम के चलते आज शाम जंतर–मंतर, दिल्ली पर पहुँचने में नियत समय से लगभग एक घंटा देरी हो गयी। पहुँचते ही बच्चों नें घेर लिया और कहा चंदा दीदी हमें लगा आज आप आयेंगी नहीं, हम तो इंतजार करते रहे। (चंदा दीदी नाम अनीता भारती दी नें बच्चों को सुझाया)। दो बच्चे अपनी कापी–पेन और ड्राइंग का सामान लेकर हमारे पास आकार खड़े हो गए हमने पूछा– बाकी बच्चे कहाँ हैं ! लेकिन किसी से कोई जवाब नहीं मिला। शाम के साढ़े सात बज रहे थे कैंप में किसी तरह की कोई रोशनी नहीं थी। अब स्ट्रीट लाइट की छांव में बच्चों का कोना ढूँढना था. .
भगाणा कैंप से लगभग की दूरी पर एक पब्लिक कंविन्स (शौचालय) बना हुआ है वहाँ ‘विज्ञापन के कालम‘ वाली साइड से काफी सफ़ेद रोशनी आ रही थी . एक महिला बाहर बैठकर कपड़े धो रही थीं और वहीं पर जल बोर्ड का पानी का एक टैंक लगा हुआ था। शौचालय के द्वार पर एक पुलिसकर्मी वहाँ बैठे गार्ड से कुछ बातें कर रहे थे जैसे ही वह चलने को हुए हमने उनसे पूछा ‘एक्सक्यूज़ मी, सर क्या हम वहाँ सफ़ेद रोशनी की तरफ बच्चों को पढ़ा सकते हैं ? कौन से बच्चे ! जवाब मिला ..हमने कहा यही जो हरियाणा वाले कैप में हैं । पुलिसकर्मी नें कहाँ बिलकुल मैडम और शौचालय के समीप ही एक अधिक बेहतर जगह सुझाते हुए उन्होने हमें दरी वहाँ बिछा लेने के लिए कहा।
… शौचालय की सीध में बनी यह वही ‘बैरिकेड वाली जगह‘ थी जहां 26 अप्रैल को भगाणा प्रदर्शनकारियों पर पुलिस प्रशासन नें ज्यादती की तथा मोर्चे को गृह-मंत्री आवास तक जाने से रोकने के लिए कड्वकबद्द (chain) बैरिकेड्स लगा दिये थे और इन्हें तोड़ने की कोशिश करने पर भगाणा के महिलाओं–पुरुषों, युवाओं, बच्चों , छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की दोनों तरफ से घेराबंदी कर ली थी। कल ठीक उसी जगह पर विस्थापित कर दिये गए परिवारों के बच्चे परिवर्तन का एक नया पृष्ठ जोड़ रहे थे।…
कैंप से केवल चार-पाँच मीटर की दूरी होने पर भी कुछ बच्चों को उनके अभिभावकों नें आज पढ़ने नहीं भेजा। बच्चों से इस संदर्भ में पूछताछ करने पर भी कोई जवाब नहीं मिला। फिर एक लड़के नें दबी आवाज में बताया ‘रात भोत हो गयी है ईसकर उस लड़की की माँ णे उसे भेजने से मना कर दिया।‘
आखिरकार काफी समझाने और सुरक्षा का आश्वासन देने के बाद एक महिला नें अपनी बेटी को हमारे साथ पढ़ने के लिए भेजा। उन्हीं पुलिसकर्मी नें भी हमें कहा ‘मैं देखता हूँ की कौन है जो नहीं भेज रहा बच्चे को पढ़ने !’ हमने उन्हें कहा की सर मामला नाजुक है थोड़ा प्यार से समझाना होगा … हम खुद देखते हैं। उन्होने ना केवल बच्चों की पढ़ाई में रुचि ली बल्कि आश्वासन भी दिया की ‘आप सब यहाँ सुरक्षित हैं … इसलिए चिंता की कोई बात नहीं ।‘
बच्चों को पढ़ाते हुए बीच में एक व्यक्ति आए और जानकारी लेने लगे की हम क्यों और क्या पढ़ा रहे हैं बच्चों को ! संक्षिप्त बातचीत के दौरान उन्होने अपना परिचय दिया और बताया की वो यहाँ पास ही ‘राजभाषा को लेकर चल रहे धरने‘ से जुड़े हुए हैं। उन्होने यह भी कहा की यदि यहाँ बी. ए. स्तर के स्टूडेंट हों तो वे उन्हें पढ़ा सकते हैं ।
… कुछ इस तरह कल रात स्ट्रीट लाइट की रोशनी में कुछ जुगनू टिमटिमाते रहे। यदि आप और हम निश्चय कर इन बच्चों का साथ दें तो इन बच्चों के ऊबड़-खाबड़ भविष्य को ‘एक सही दिशा‘ मिल पाएगी। चलिये हम सब अपना एक कदम निर्माण की और उठाएँ … …
चंद्रकांता