क्यूंकि, बेहूदा मानसिकता की कोई हद नहीं..स्त्री का श्रृंगार से रिश्ता एक कभी न ख़त्म होने वाले उत्सव की तरह…
'शहरों के लोग बेहद असंवेदनशील होते हैं' ! 'उनके सीने में दिल नहीं होता' !! आपको भी ऐसे विश्वास सुनने…
बस, मुझी से प्रेम करो'!!!एक अजीब सी समझ है यह प्रेम को लेकर ..एक विकृत सी रोमानियत.हम प्रेम को व्यक्ति/देह…
1 प्रिय ! बहुत बार तुमसे कहना चाहा किन्तु, प्रेम में गढ़ दिए गए शब्द नहीं तय कर पाए फासले …
जिंदगी के कुछ खट्टे कुछ कड़वे पलछिनों को, आज जाड़ों की मीठी धूप मेंअपने गुलाबी दुपट्टे पर रख बिछा दिया जिनके बरसों अलमारी…
दामिनी , काश ! उसी दिन मैंने उसकी आँखें नोच ली होती जब पुरुष की तरह दिखने वाली उस काली ब-ह-रू-पि-या आकृति ने मुझे छुआ…
हे! पीताम्बर अब तुम चमत्कृत नहीं करते अनावृत हो चली है तुम्हारे अधरों पर खेलती वह कुटिल मुस्कान तुम्हारे मस्तक…
कलाकृति..आज कुछ टूटे-फूटे, विस्मृत कंकड़-पत्थर साफ़ किये जो मुंडेर पर बिखरे पड़े थे बेफिक्र, बेतरतीब से अनमने यहाँ-वहाँ.. मैंनें, निर्भीक चुन लिया सभ्यता के अधि-शेष सूत्रों इतिहास…
मैं भीख हूँ धूल से लबरेज़ खुरदरे हाथ-पाँव सूखे मटियाले होंठ, निस्तेज अपनी निर्ल्लज ख-ट-म-ली देह को जिंदगी की कटी-फटी-छंटी …
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