Vijay Vishal विजय विशाल का काव्य संग्रह – चीटियाँ शोर नहीं करतीं
Vijay Vishal – एक पगडंडी का सड़क हो जाना/महज रास्ते का चौड़ा होना भर नहीं है कविता पर लिखते हुए
Continue reading'मैं कुछ अलहदा तस्वीरें बनाना चाहती हूँ जैसे अंबर की पीठ पर लदी हुई नदी, हवाओं के साथ खेलते हुए, मेपल के बरगंडी रंग के पत्ते, चीटियों की भुरभुरी गुफा या मधुमक्खी के साबुत छत्ते, लेकिन बना देती हूं विलापरत नदी पेड़ पंछी और पहाड़ ।'
Vijay Vishal – एक पगडंडी का सड़क हो जाना/महज रास्ते का चौड़ा होना भर नहीं है कविता पर लिखते हुए
Continue readingWorld Water Day- रहिमन पानी राखी बिन पानी सब सून, पानी गए न ऊबरे मोती, मानुष, चून। रहीम साहब ने
Continue readingHoli the color of Inspiration -चल जा रे हट नटखट भारत में रंगों का त्योहार फागु पूर्णिमा को होता है
Continue readingLove is the most colorful festival – ‘नदिया के पार’ (1982 ) जोगीरा सारा रा रा रा रा रा …
Continue readingVyangya Kavita – व्यंग्य कविता हाशिए पर क्यों? नागार्जुन की विख्यात कविता “प्रतिबद्ध” कि पंक्तियां. हैं- प्रतिबद्ध हूं/संबद्ध हूं/आबद्ध हूं…जी
Continue readingHoli The Color Of Love – फागुन 1973 कितनी खूबसूरत परंपरा है फागुन की जहां बरसों के गिले-शिकवे भुलाकर एक
Continue readingJhamakada Folk Dance Of Kangra – झमाकड़ा – नानू गोहरे आया वो ——झमाकड़ेया, झमाकड़ेया झमाकड़ा लोकनृत्य को कौन नहीं जानता
Continue readingDr. Ramesh Saini व्यंग्य की त्रैमासिकी व्यंग्ययात्रा के जुलाई-दिसम्बर 2021 अंक (कोरोना प्रभावित संयुक्तांक) का ‘त्रिकोणीय’ डॉ. रमेश सैनी पर
Continue readingMedia Vimarsh Jan-Mar 21 – भरोसे का नाम ही पत्रकारिता है -मीडिया विमर्श, मीडिया और मूल्यबोध विशेषांक’ मीडिया विमर्श’ जनसंचार
Continue readingपुस्तक संस्कृति पर परिचर्चा : डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ , डॉ. दिविक रमेश, डॉ. प्रेम जनमेजय और डॉ. इन्द्र
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