Bandini 1963 – बंदिनी एक ऐसा प्रेमगीत है जहां, प्रेम सुविधा का नहीं समर्पण और संघर्ष का नाम है ।

1963 में बिमल रॉय की फ़िल्म बंदिनी आई । इस फ़िल्म का कथानक उन्होने प्रेम को चुना जहां एक डाक्टर जेल की एक महिला कैदी से प्रेम कर बैठता है । लेकिन, महिला का अपना एक प्रेम भरा अतीत है जिसके  कारण वह डाक्टर का प्रणय निवेदन स्वीकार नहीं कर पाती। बंदिनी के माध्यम से विमल राय ने प्रेम में मिलन, बिछोह और ईर्ष्या के स्वभाव को बेहद खूबसूरती से ब्लैक एंड वहाइट पर्दे पर उतारा है । बंदिनी के रूप में नूतन के अभिनय की सहजता आपका मन मोह लेगी। फ़िल्म की कथा चारुचंद्र चक्रवर्ती की बांग्ला कहानी ‘तामसी’ पर आधारित थी। चारुचंद्र जरासंध नाम से लिखते थे। दिलचस्प बात यह है कि वे कोलकाता की अलीपुर जेल में कई साल जेलर रहे। इसका प्रभाव आप जेल के दृश्यों पर भी देख सकते हैं जिनकी सलाखों से गजब का यथार्थ फूटता है।फिल्म कि पटकथा नबेन्दु घोष कि है आपको याद होगा विमल राय की फिल्म सुजाता का स्क्रीनप्ले भी नबेन्दु ने ही लिखा था । फिल्म के लिए संवाद पाल महेंद्र ने लिखे हैं। बंदिनी को उस वर्ष सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय फ़िल्म का पुरस्कार मिला।   

Bandini Movie 1963

बंदिनी की पृष्ठभूमि आज़ादी से पहले 1920-30 के ब्रिटिश भारत की है की है। फिल्म जेल के दृश्य से शुरू होती है। जहां एक ‘सी क्लास’ कैदी नम्बर 12 जिसका नाम कल्याणी ( नूतन ) है, एक कत्ल के लिए उम्रकैद की सजा काट रही है । जेल में एक बुजुर्ग महिला रामदेई को तपेदिक की बीमारी है जिसकी देखभाल से सबके इंकार कर देने के बाद कल्याणी यह जिम्मेदारी लेने को तैयार हो जाती है। डॉक्टर देवेंद्र ( धर्मेंद्र) कल्याणी का सेवा भाव देखकर उसके प्रति आकर्षित होता है और उसे प्यार कर बैठता है ।

लेकिन कल्याणी अपने अतीत की वजह से देवेंद्र का प्रेम स्वीकार नहीं कर पाती। जेल की अन्य महिला कैदी कल्याणी पर इस बात को लेकर तंज कसती हैं। कल्याणी के अस्वीकार के कारण देवेंद्र अपनी नौकरी से इस्तीफा देकर वापस घर चला जाता है। जेलर महेश ( तरुण बोस ) देवेंद्र का अच्छा मित्र है। उसके इस्तीफे की वजह जानकर जेलर साहब कल्याणी को अपने पास बुलाते हैं। और उसे अपना अतीत बताने की गुजारिश करते हैं। कल्याणी उन्हें अपनी आपबीती लिखकर देती है । यहां से फिल्म फ्लैशबैक में चली में चली जाती है।

 फिल्म जेल से गाँव के परिवेश में पहुँच जाती है जहां चुलबुली और काम को लेकर निष्ठावान लड़की कल्याणी अपने पोस्टमास्टर पिता के साथ रहती है। वह एक स्वतंत्रता सेनानी बिकाश घोष से प्रेम करने लगती है । बिकाश गांव में नजरबंद है, स्थितियां ऐसी बनती हैं कि बिकाश को गांव छोड़ना पड़ता है। वह वापस आने का वादा करता है, कल्याणी उसका इंतजार करती है लेकिन वह नहीं आता । गांव के लोगों के तानों से परेशान होकर एक रात वह गाँव छोड़कर रोजगार की तलाश में अपनी सहेली के पास शहर आ जाती है ।

शहर के एक अस्पताल में उसे हिस्टीरिया की मरीज एक तुनकमिजाज औरत की देखभाल की जिम्मेदारी मिलती है। एक दिन कल्याणी के पिता उससे मिलने शहर आ रहे होते हैं तभी कार से टकरा कर कर उनकी मृत्यु हो जाती है । इसी दौरान कल्याणी को मालूम चलता है कि जिस मरीज की वह तीमारदारी कर रही है वह कोई और नहीं बिकाश की पत्नी है। एक दिन कल्याणी उस औरत को जहर दे देती है जिससे उसकी मौत हो जाती है ।कल्याणी अपना अपराध स्वीकार कर लेती है और उसे जेल हो जाती है । यहां से फ़िल्म वापस वर्तमान में लौटती है जहां  जेलर साहब कल्याणी की आपबीती सुनकर उसे रिहा करवाने की कोशिश करते हैं। अपने अच्छे स्वभाव और जेलर महेश की कोशिशों के चलते कल्याणी को जेल से जल्दी रिहा कर दिया जाता है ।

फिल्म में नूतन की बॉडी लैंग्वेज हमेशा की तरह कमाल की है। हाव-भाव की भाषा में संवाद कर सकना हर कलाकार के बूते की बात नहीं है। बंदिनी के लिए नूतन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया। रिहाई के बाद जेलर उसे देवेंद्र का लिखा हुआ खत देता है जिससे कल्याणी को मालूम होता है कि देवेंद्र की मां ने कल्याणी को बहू के रूप में स्वीकार लिया है । जेलर कल्याणी के देवेंद्र के घर जाने का इंतजाम करते हैं और जेल वार्डन को उसके साथ भेजते हैं। स्टेशन पहुँचकर उसकी मुलाकात एक बार फिर बिकाश से होती है । विकास बहुत बीमार है उसे छूत की बीमारी लग गई है वह अपना अंतिम समय गाँव में बिताना चाहता है और स्टीमर के चलने का इंतज़ार कर रहा है, जो कुछ देर में छूटने वाला है । कल्याणी को उसके सहयोगी से मालूम होता है कि बिकाश को देश के लिए बहुत मजबूरी में अपने प्रेम का त्याग कर किसी और औरत से शादी करनी पड़ी। यहाँ फिल्म उस मोड पर आकार रुकती है जहां से कल्याणी को अपने आने वाले जीवन की दिशा तय करनी है । दहलीज के इस पार साहस है और उस पार दुस्साहस ।

कुछ फिल्मों के क्लाइमेक्स आपके दिमाग की भीत को निचोड़ कर रख देते हैं और आपके भीतर कला की भूख को मिटाते हैं। बंदिनी एक ऐसा ही सिनेमा है। फ़िल्म का क्लाइमेक्स तसल्ली से फिल्माया गया है । स्टीमर की आवाज़ का उतार-चढ़ाव, पार्श्व से आती हुई ध्वनियों की धमक, नायिका के चेहरे पर बिलखता विस्मय, उसकी बरसों की छटपटाहट,  स्थितियों से समझौता कर चुके नायक बीमार बिकाश का सपाट चेहरा और ‘ओ रे माझी मेरे साजन हैं उस पार’ गीत का बजना। क्लाइमैक्स में कैमरा वर्क बहोत बढ़िया है । बंदिनी में छायांकन कमल बोस का है कमल ने बतौर सिनेमेटोग्राफर विमल दा के साथ काफी वक़्त तक काम किया है । आपको ध्यान दिलाती चलूँ कि फिल्म निर्माण में आने से पहले ‘न्यू थिएटर्स प्राइवेट लिमिटेड’ की कई फिल्मों के लिए खुद विमल राय ने बतौर कैमरामैन काम किया । इसका असर उनकी फिल्मों पर भी दिखता है ।

आप जरा क्लाइमैक्स के वक़्त का संवाद देखिये जहाँ बिकाश स्टीमर में बैठ चुका है, स्टीमर के  छूटने की आवाज़ आती है और कल्याणी रेल की तरफ जाने की बजाय स्टीमर की तरफ भागती है… वार्डन – कल्याणी ! कहाँ जा रही है ? कल्याणी – वहीं जहां मुझे जाना चाहिए। वार्डन – पागल मत बनो ! हमारा रास्ता उधर नहीं है । कल्याणी – नहीं, मेरा रास्ता उधर ही है … फिल्म में जहाँ कहीं संवाद नहीं है वहां छायांकन नें फ़िल्म की भाषा को और अधिक गहरा कर दिया है। । जैसे देवेंद्र का विवाह की बात करते हुए कल्याणी का अपने पांव से जमीन को खुरचना, घर छोड़कर जाते हुए समुद्र की रेत पर कल्याणी के पांव के निशान, जहर देने के दृश्य के वक़्त जलती बुझती रोशनी और हथौड़े का पीटा जाना । कल्याणी द्वारा अपराध स्वीकारोक्ति का दृश्य भी बेहद उम्दा है । बिमल दा के ये ‘सिनेमैटिक इशारे’ बहोत गहरे हैं। फिल्म में ध्वनियों का इस्तेमाल बेहद सुंदर है। डी. बिलिमोरिया को इस फ़िल्म में ध्वनि निर्देशन  के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार भी दिया गया।

जीवन में कभी कभी ऐसा क्षण  आता है जहां साहस सुविधा का और दुस्साहस अंतहीन संघर्ष का नाम हो जाता है । कल्याणी संघर्ष का विकल्प चुनती है और अंततः, स्टीमर में बैठकर बिकाश के साथ चली जाती है।  

https://gajagamini.in/%e0%a4%a6%e0%a5%8b-%e0%a4%86%e0%a4%81%e0%a4%96%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%b9-%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%a5/

बंदिनी स्त्री विषयक सिनेमा का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है । हिंदी सिनेमा में बंदिनी सरीखी कम ही फिल्में ऐसी हैं जहां नायकत्व नायिका के हिस्से में आया हो। फिल्म एक बात और प्रस्तावित करती है कि संघर्ष के लिए हर औरत का झांसी कि रानी बनना जरूरी नहीं है , सबसे जरूरी है वह औदात्य है जो संघर्ष के भार और उससे उपजी पीड़ा को अपने कंधों पर उठा सके। कैदी महिलाओं पर या आज़ादी की लड़ाई में महिलाओं के योगदान पर हिंदी सिनेमा में मुख्यधारा की कोई और फ़िल्म शायद ही हो।

बंदिनी को फ़िल्म, कहानी, निर्देशन और छायांकन की श्रेणी में फ़िल्मफेयर के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार से नवाजा गया ।  हमारी गुज़ारिश है फ़िल्म से जुड़े तमाम संगठनों और संस्थाओं से की एक श्रृंखला के तहत ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ और ‘क्लासिक सिनेमा’ का वह सुनहरा दौर फिर से जिंदा किया जाना चाहिए। अच्छा सिनेमा किसी भी भाषा और किसी भी समय का हो वह हमारी सांस्कृतिक धरोहर है हमें उसे बिसराना नहीं चाहिए। बंदिनी एक खूबसूरत प्रेमगीत है। फ़िल्म में देवेंद्र का निस्वार्थ प्रेम देखकर उसके साथ सहानुभूति होती है। लेकिन कल्याणी का  प्रेम संघर्ष की आंच पर तपा है, उसने बिछोह का कड़वापन चखा है, इसलिए बंदिनी के प्रेम में स्वाद है। उसके लिए प्रेम सुविधा का नहीं, संघर्ष का नाम है और ऐसा प्रेम सम्मान पैदा करता है । खुसरो इस बात को बहोत आकर्षक तरीके से कह गए  हैं – खुसरो दरिया प्रेम का/उल्टी वा की धार।/ जो उतरा सो डूब गया,/ जो डूबा सो पार।। एक ऐसा समाज जो मोटे तौर पर प्रेम के विरोध में खड़ा हो, एक ऐसा दौर जहां प्रेम की बस छाया पकड़ी जा सकती हो वहां बंदिनी का प्रेम और उस प्रेम के प्रति समर्पण हमें हमारे मनुष्य होने को लेकर और अधिक आश्वान्वित करता है । बंदिनी स्त्री-पुरुष ही नहीं स्त्री के प्रकृति से प्रेम को भी बुनती है यह बात फ़िल्म के गीतों को सुनकर महसूस की जा सकती है।  

Chandrakanta

Recent Posts

श्री शिवताण्डवस्तोत्रम् Shri Shivatandava Strotam

श्री शिवताण्डवस्तोत्रम् Shri Shivatandava Strotam श्री रावण रचित by shri Ravana श्री शिवताण्डवस्तोत्रम् Shri Shivatandava…

1 week ago

बोल गोरी बोल तेरा कौन पिया / Bol gori bol tera kaun piya

बोल गोरी बोल तेरा कौन पिया / Bol gori bol tera kaun piya, मिलन/ Milan,…

2 weeks ago

तोहे संवरिया नाहि खबरिया / Tohe sanwariya nahi khabariya

तोहे संवरिया नाहि खबरिया / Tohe sanwariya nahi khabariya, मिलन/ Milan, 1967 Movies गीत/ Title:…

2 weeks ago

आज दिल पे कोई ज़ोर चलता नहीं / Aaj dil pe koi zor chalta nahin

आज दिल पे कोई ज़ोर चलता नहीं / Aaj dil pe koi zor chalta nahin,…

2 weeks ago

हम तुम युग युग से ये गीत मिलन के / hum tum yug yug se ye geet milan ke

हम तुम युग युग से ये गीत मिलन के / hum tum yug yug se…

2 weeks ago

मुबारक हो सब को समा ये सुहाना / Mubarak ho sabko sama ye suhana

मुबारक हो सब को समा ये सुहाना / Mubarak ho sabko sama ye suhana, मिलन/…

2 weeks ago

This website uses cookies.