चिट्ठी , मिटटी लगती थी..
कुछ भूल गए हैं हम..चिट्ठी लिखना .. बातें खट्टी हों कड़वी या बताशा चिठ्ठी, मिटटी सी लगती थी आँखें
Continue reading'मैं कुछ अलहदा तस्वीरें बनाना चाहती हूँ जैसे अंबर की पीठ पर लदी हुई नदी, हवाओं के साथ खेलते हुए, मेपल के बरगंडी रंग के पत्ते, चीटियों की भुरभुरी गुफा या मधुमक्खी के साबुत छत्ते, लेकिन बना देती हूं विलापरत नदी पेड़ पंछी और पहाड़ ।'
कुछ भूल गए हैं हम..चिट्ठी लिखना .. बातें खट्टी हों कड़वी या बताशा चिठ्ठी, मिटटी सी लगती थी आँखें
Continue readingप्रकृति की संपूर्ण रचनात्मकता जिस एक अनंत भाव में सिमट आती हों ब्रह्माण्ड का समस्त सौंदर्य और मन की सभी अभिलाषाएं जिस एक प्रेरणा
Continue readingकभी-कभी आपको भी नहीं लगता कि हम केवल वह नोट बनकर रह गए है जिसे बाज़ार अक्सर अपनी सुविधा के
Continue readingजानती हूँ ! कि, दफ़न कर दिए जाएंगे मेरी चाहतों के रोमानी सि-ल-सि-ले इतिहास के पन्नों में, एक दिन और
Continue readingकितने धागों में ..जो ये जान पाती तो बाँध लेती तुम्हे ..जाने नहीं देती तुम कहते हो की मन का
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