कैंडी

1

कमरे में धुंए के सफ़ेद छल्ले बेफिक्री से तैर रहे थे आप सोच सकते हैं कमरे में कितना तनाव भरा हुआ होगा! धुंआ अपने चरम पर था और हर एक कश के साथ साँसों में निकोटिन घुल रहा था। सनद रहे की सिगरेट हर बार किसी फ़िक्र को भुलाने के लिये नहीं फूंकी जाती। मैंने कभी परीक्षा की तैयारी करते वक़्त पढ़ा था की निकोटिन उत्तेजना पैदा करता है और इंसान के दिमाग के उस हिस्से को जकड़ लेता है जहाँ से वह सोच-विचार करता है।

दोपहर के दो बजकर बीस मिनट हुए ही थे की सफ़ेद धुंए की यह तन्मयता एक तेज आवाज़ से खंडित हो गयी। दरवाजे की घंटी बजी थी । ब्रजेश ने सिगरेट को अपने होठों से हटाया और टेबल पर रखी हुई लकड़ी की एश ट्रे पर मसलकर उसे बुझा दिया। चार फ्लोर की बिल्डिंग में प्रथम तल पर फ्लैट न: 202 में रहने वाला ब्रजेश बच्चों के किसी एनजीओ के लिये काम करता था। दिन में वह डाक्यूमेंटेशन का कुछ काम किया करता था और रात में सड़कों की गोद में पलने वाले बच्चों को पढ़ाने के लिये जाया करता था। जी हाँ ये वही बच्चे थे जिन्हें हम और आप ‘स्ट्रीट चिल्ड्रन’ के नाम से जानते हैं। जब भी वह फ्लैट पर रहता था तो सिगरेट फूंकते हुए लिखना-पढना उसका दिन भर का शगल होता था । 

इस फ्लैट में सिगरेट तो रोज ही जलती बुझती थी लेकिन आज सिगरेट को बुझाते हुए ब्रजेश ने उसे कुछ अजीब तरीके से मसला था। मसली हुई सिगरेट को उसने कोई दस सेकंड तक देखा होगा तभी दूसरी बार घंटी बजी और वह दरवाजा खोलने के लिये कुर्सी से उठ खड़ा हुआ। ब्रजेश ने दरवाजा खोला तो सामने एक आठ साल का लड़का खड़ा हुआ था जिसकी नाजुक सी पीठ पर एक भारी सा बस्ता और हाथ में मिल्टन की एक बड़ी बोतल टंगी हुई थी। ब्रजेश की शादी नहीं हुई थी अब तलक, कोई बच्चा भी उसने गोद नहीं लिया था फिर कौन था यह लड़का ? 

यह लड़का था राहुल। किसी भी आम बच्चे की तरह दिखने वाला राहुल ब्रजेश के पड़ोस में रहने वाले अनवर शर्मा और नीरजा की एकमात्र संतान थी। वैसे वर्तमान समय मे यह ‘पड़ोस’ भी बड़ा दिलचस्प फिनोमिना है। शहरों में अब घर तो रहे नहीं उनकी जगह बड़ी बड़ी बिल्डिंगें उग आई हैं और हमारी संवेदनाओं की तरह अब हमारा पड़ोस भी सिमट गया है। इन जहाजनुमा बिल्डिंगों में अब सामने वाला घर ही आपका पड़ोस कहलाता है। खैर! संवेदनाओं को विराम देकर थोड़ा आगे बढ़ते हैं। शादी के सात आठ साल तक तमाम नीम-हकीमों और दवाखानों में तलुए घिसे थे तब कहीं जाकर अनवर और नीरजा को संतान का सुख नसीब हुआ था। लेकिन कितनी अजीब सी बात है जब औलाद नहीं होती तो उसे पाने के लिये हम सारी दुनिया की खाक छान लेते हैं और जब औलाद हो जाती है तब उसके लिये फुर्सत निकालने के लिये भी टाईम चार्ट बनाना पड़ता है।

ऊपर अनवर शर्मा नाम सुनकर आप चौंके तो जरूर होंगे! पेशानी पर बल मत पड़ने दीजिये और यकीन जानिये ऐसे नाम भी हो सकते हैं। अनवर हाई कोर्ट के एक प्रतिष्ठित जज के यहाँ टाइपिस्ट था सब उसे शर्मा जी कहकर ही बुलाते थे। अनवर और नीरजा का प्रेम विवाह हुआ था। नीरजा पहले एक प्राइवेट स्कूल में नर्सरी की टीचर थी लेकिन किसी बीमारी की वजह से उसे बहोत अधिक छुट्टियां लेनी पड़ी थीं। जिसका परिणाम यह हुआ की उसे स्कूल से निकाल दिया गया। पूरे छः महीने घर पर खाली बैठने के बाद आखिरकार उसे एक क्रेच में बच्चों को संभालने का काम मिल ही गया। पहले की नौकरी में दोपहर तक ही फारिख हो जाने वाली नीरजा को अब सुबह नौ से शाम छः बजे तक की नौकरी में खटना पड़ता था। इसलिए अब एक बड़ी समस्या यह थी की स्कूल से घर आने के बाद राहुल घर पर अकेला कैसे रहेगा! तो बहोत सोच विचार के बाद यह तय किया गया की गाँव से अम्मा को बुला लिया जाये। 

हालांकि अनवर पिछले दो साल से गाँव नहीं गया था क्या करता बेचारा! छुट्टी मिलना कोई आसान काम नहीं था। वीकेंड पर थोड़ी बहोत फुर्सत होती थी तो वह मॉल में तफरी करने और सिनेमा देखने में निकल जाती थी। आज आपातकाल में ही सही इसी बहाने उसे अपनी अम्मा की तो याद आयी। तो तय किया गया की जब तक अम्मा के गाँव से यहाँ आने की व्यवस्था नहीं हो जाती तब तक दोपहर भर के लिये राहुल को ब्रजेश के यहाँ छोड़ दिया करेंगे। एक शाम उन्होंने ब्रजेश को चाय पर बुलाया और अपना प्रस्ताव उसके समक्ष रखा। ब्रजेश भी बगैर ना नुकुर किये मान गया। मानता भी क्यूँ नहीं आखिर दूध चीनी ख़त्म होने पर नीरजा भाभी ही तो उसका एकमात्र आसरा थीं। फिर घर जैसी सुविधाओं का लाभ लेते रहने के लिये यदा कदा पडोसी धर्म तो निभाना ही पड़ता है। सबसे सुखद बात यह थी की राहुल के साथ साथ अब नीरजा ब्रजेश का लंच भी पैक कर दिया करती थी। एक अकेले आदमी को और क्या चाहिए!

आज अच्छे पड़ोसी होने की इस कवायद का पाँचवा दिन था। स्कूल वैन रोज की तरह राहुल को बिल्डिंग के गेट तक छोड़ गयी। उछल कूद करता हुआ राहुल पहली मंजिल तक आया और उसने ब्रजेश के फ़्लैट की घंटी बजा दी। ब्रजेश ने सिगरेट बुझाई और दरवाज़ा खोला। राहुल भीतर आया उसने बस्ते और बोतल को एकतरफ पटका और आते ही सामने बिछे हुए दीवान पर पसर गया।

‘हाऊ वाज यूर डे राहुल …’ ब्रजेश ने उसके दोनों गलों को सहलाते हुए पूछा।

‘अंकल मेको भूख लगी है’ राहुल ने उसकी बात का जवाब न देते हुए बड़ी मासूमियत से कहा।

ब्रजेश ने झटपट दीवान एक पुराना अखबार बिछाया और किचन से दोनों टिफिन लाकर उस पर खोलकर रख दिये। कमरे में पसरा हुआ तंबाकू का फ्लेवर थोड़ी देर के लिये खाने की पसीजी हुई महक में तब्दील हो गया। राहुल के टिफिन में आलू की भजिया, दो पराठें और थोड़ा सा मिक्स फ्रूट जैम रखा हुआ था। टिफिन खुलते ही राहुल उस पर टूट पड़ा। ब्रजेश के टिफिन में आलू की भजिया के साथ मिर्च का अचार और चार चपातियां थीं। उसने दो चपातियां निकाल लीं और बाकी की दो रात के लिये अख़बार में लपेट कर रख दीं।

खाना खत्म करते ही ब्रजेश ने पैकेट में बची हुई आखिरी सिगरेट भी निकाल ली। उसने सिगरेट को अपने होठों के बीच दबाया, टेबल की दराज से माचिस निकाली फिर एक झटके से माचिस की डिबिया पर तीली को खेंचकर सिगरेट को जलाया और उसे फूंकने लगा। बिस्तर पर बैठा राहुल यह सब देख रहा था। दो कश मारने के बाद ब्रजेश ने राहुल को सिगरेट दिखाते हुए उसे पीने का इशारा किया।

‘पियेगा  !’    

ब्रजेश का इशारा देखकर राहुल थोडा पीछे हो गया और दीवार से सटकर बैठ गया। उसे थोड़ा सकपकाया हुआ देखकर ब्रजेश ने अपनी पैंट की पॉकेट से चॉकलेट की दो कैंडी निकाली और हथेली पर रखकर राहुल की तरफ बढ़ा दी। कैंडी देखते ही राहुल की आँखों में चमक दौड़ गयी और उसने झपटकर ब्रजेश के हाथों से उन्हें ले लिया। यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है की बच्चों को मीठा कितना पसंद होता है और जब बात कैंडी या चॉकलेट की हो तो बच्चों की लार टपकने लगती है। 

‘लेकिन बदले में मुझे क्या मिलेगा !’ यह कहते हुए ब्रजेश ने राहुल का बायाँ हाथ पकड़ लिया।

‘आपको क्या चाहिए अंकल !’ राहुल ने कैंडी चूसते हुए कहा।   

जवाब में ब्रजेश के अधरों पर एक क्रूर सी मुस्कराहट तैर गयी। वह कुर्सी से उठा उसने बहोत धीमे से जाकर कुण्डी चढ़ाई और दरवाजे को बंद कर दिया।

‘आप यहाँ अंकल की गोद में आकर बैठो ..कम ऑन! ..आज अंकल आपको एक अच्छी सी स्टोरी सुनायेंगे आपकी फेवरेट हॉरर स्टोरी । ’ यह कहकर ब्रजेश ने राहुल को पलंग से उठाकर अपनी गोद में बैठा लिया और वापस सिगरेट के कश भरने लगा। कुछ ही देर में एक बार फिर से कमरे में धुंए की सफ़ेद चादर बिछ गयी।  

ब्रजेश की कहानी शुरू हो चुकी थी और राहुल भी पूरे इंटरेस्ट से कहानी को सुन रहा था। कहानी सुनते हुए राहुल को एक मुलायम सी गुदगुदी का अहसास हो रहा था। वक़्त बीतने के साथ कहानी में हॉरर का कंटेंट और राहुल की बेचैनी दोनों ही बढ़ते जा रहे थे। लेकिन थोड़ी ही देर में तनाव इतना बढ़ गया की राहुल की फेवरेट कैंडी की मिठास फीकी पड़ गयी और उसकी गुदगुदी छ-ट-प-टा-ह-ट में तब्दील हो गयी। राहुल को परेशान होता देखकर ब्रजेश ने उसे कसकर पकड़ लिया। कोई साठ सेकंड के बाद राहुल पर ब्रजेश की कसावट शिथिल पड़ने लगी। कहानी इतनी अधिक डरावनी थी की डर के मारे राहुल गीला हो गया और ब्रजेश भी.. 

ब्रजेश भी.. ?? 

पहले घर परिवार में बड़े बुजुर्ग साथ रहा करते थे तो बचपन एक खुबसूरत सपना बनकर बच्चों की कोमल यादों में ज़िंदा रहा करता था। लेकिन अब स्थितियां बदल गयी हैं। घर मकान में तब्दील हो गये हैं, शिक्षा के मंदिर दुकान बन गये हैं और पड़ोसी खूंखार भेड़िये हो गये हैं । 

2

बच्चों पर अपनी अपेक्षाओं का बोझ डाल देना एक आसान बात है मुश्किल है उनके सपनों को अपनी आँखों में बसाकर उन्हें पोसना। बहोत से माता पिता बच्चों पर अपने सपनों का बोझ डालने में जरा भी नहीं हिचकिचाते। राहुल के साथ भी ठीक ऐसा ही हुआ। राहुल हमेशा से एक सिंगर बनना चाहता था लेकिन उसके पिता उसे शहर का नामी वकील बनते हुए देखना चाहते थे। शर्मा जी शहर के एक प्रतिष्ठित वकील के यहाँ काम किया करते थे, जी हुजूरी करते हुए उन्होंने अपने बेटे को बड़ा वकील बनाने का सपना देख लिया था। जाहिर सी बात थी उसे अब राहुल को पूरा करना था। बचपन में लोगों की नाक में दम कर देने वाला राहुल अब बहोत कम बोलता था। बोलने को तो बहोत कुछ था उसके पास लेकिन अब उसके शब्द जुबान तक आकर अटक जाया करते थे।

आज राहुल उन्नीस बरस का था। साल भर पहले ही उसने भोपाल में एल. एल. बी. ग्रेजुएशन के पांच वर्षीय कोर्स में दाखिला लिया था। अभी चंद रोज ही हुए थे शर्मा जी ने राहुल को अपने बॉस मिस्टर रंजीत सेठी के जानकार नरेश सक्सेना जी के यहाँ वकालत का पाठ सीखने के लिये लगवाया था। कॉलेज के बाद कोई तीन चार घंटे के लिये राहुल सक्सेना साहब के यहाँ काम सीखने के लिये जाने लगा था। सक्सेना साहब हफ़्ते में दो या तीन दिन के लिये ही ऑफिस में बैठते थे। बाकी वक़्त उनका एक जूनियर डेविड ऑफिस संभाला करता था। डेविड की बहन की शादी थी तो उसने कुछ दिनों का अवकाश लिया हुआ था। आज सक्सेना साहब ऑफिस में ही थे। ब्लैक टी पीते हुए वो राहुल से एक लेटर टाईप करवा रहे थे। मालूम नहीं उन्हें क्या सूझी।

‘राहुल! राहुल नाम है न तुम्हारा .. कौन सा साल है यह तुम्हारा ?’ सक्सेना ने चाय की चुस्की लेते हुए पूछा।

‘सेकंड इयर’ राहुल ने उसकी बात में कोई खास दिलचस्पी जाहिर नहीं की।

‘कोई गर्लफ्रेंड भी बनाई है या अभी तक सूखे सूखे ही घूम रहे हो ..’  इतना कहकर सक्सेना ने एक वाहियात सी हंसी हस दी। 

‘अरे बताओ भाई ! तुम तो लड़कियों की तरह शरमा रहे हो… अच्छा नहीं बताना चाहते तो कोई बात नहीं।’ सक्सेना ने राहुल की भंगिमा को भांपते हुए कहा।

राहुल सकपका गया उसने कोई जवाब नहीं दिया।

‘अच्छा ये बताओ तुम्हें कभी किसी ने बोला नहीं की तुम्हारी ये उंगलियाँ बहोत प्यारी हैं .. एकदम लड़कियों की तरह मुलायम सी ..दिखती हैं.. देखो तो किस तरह की-बोर्ड में .. धंस ..जाती हैं टाइप करते हुए. .’  

ऐसा बोलते हुए सक्सेना ने चाय का कप टेबल पर रख दिया और उस कप के चारों तरफ अजीब तरीके से अपना हाथ फिराने लगा। यह उतना ही अजीब था जितना अजीब सालों पहले ब्रजेश का सिगरेट को मसलना हुआ करता था ।

‘सर आई हैव टू गो..आज ..आज माँ ने जल्दी घर आने को कहा है .. अगर आपकी परमिशन हो तो ..मैं ..’ 

‘हाँ हाँ .. क्यूँ नहीं .. ये लैटर टाइप करते ही निकल जाओ..बट रिमेम्बर ..अगले हफ्ता दस दिन ऑफिस में बहोत काम रहेगा..’     

माँ की बात तो एक बहाना था। राहुल उस वक़्त वहाँ से भाग जाना चाहता था। सक्सेना की बातें सुनकर बहोत असहज हो गया था वह। सिगरेट का वह सफ़ेद धुआँ फिर से उसकी आँखों के सामने तैरने लगा था। तो लैटर टाइप कर लेने के बाद राहुल एक सेकंड भी नहीं रुका उसने अपना बैग उठाया और तेजी से वहाँ से निकल पड़ा।

3

लिविंग रूम की खिड़की से बाहर झाँकने पर आसमान में झूलता हुआ चाँद दिखाई पड़ रहा था। घर के भीतर शर्मा जी का परिवार रात के भोजन की तैयारी कर रहा था। डाइनिंग टेबल पर लहसुन और सूखी लाल मिर्च का छौंका लगी हुई अरहर की दाल, उबले हुए चावल और आलू गोभी की सब्जी रखी हुई थी। राहुल और शर्मा जी वहीँ बैठे थे और नीरजा गर्म गर्म चपातियां सेककर ला रही थी। खाना खाते हुए राहुल ने अपने पिता को बताया की उसे सक्सेना साहब के यहाँ जाना अच्छा नहीं लगता। लेकिन आज एक बार फिर शर्मा जी ने उसकी बात को नजरंदाज कर दिया।

‘कैसी बात करता है यार! तू मेरा शेर बेटा है एक दिन अदालत में शेर की तरह दहाड़ेगा .. सोच तेरे बाप को कितनी तसल्ली मिलेगी उस दिन ..  बेटा .. मन लगाकर काम कर ..सक्सेना साहब बहोत अच्छे इंसान हैं उनके साथ रहेगा तो दो लोग जानेंगे तेरे बारे में .. अच्छे लोगों के बीच तेरा उठना बैठना होगा..’ 

‘पा .. वो सक्सेना जी मुझे बहोत देर तक रोक कर रखते हैं …रात हो जाती है और ..मेरी कॉलेज की स्टडी ..पूरी नहीं हो पाती ..और..’ 

राहुल ने हिम्मत जुटाकर एक बार फिर से कुछ बताना चाहा।

‘रात हो जाती है! ओये तू लड़का होकर ऐसी बात करता है!..तू लड़कियों की तरह डरपोक कबसे हो गया’ अनवर ने राहुल के कंधे पर अपना हाथ दबाते हुए कहा।

‘तुम्हारी मोबाइल वाली पीढ़ी की यही कमी है सब कुछ एक झटके में ही पा लेना चाहते हो ..यार ..कॉलेज तो डिग्री के लिये होता है असली वकालत तो सक्सेना साहब ही सिखायेंगे .. तुझे तो खुश होना चाहिए की तुझे उनका इतना वक़्त मिल जाता है .. लोग लाइन में खड़े रहते हैं सक्सेना जी से मिलने के लिये।’  

‘ठीक ही तो कहते हैं पापा .. अच्छे से खाओ पियो और खूब मन लगाकर काम सीखो।’ नीरजा ने घी लगी हुई गर्म रोटी राहुल की थाली में परोसते हुए अनवर की बात में हामी भरी।

नीरजा ने कुछ साल पहले ही नौकरी छोड़ दी थी। शर्मा जी की ऊपर की कमाई अच्छी हो रही थी तो अब नीरजा को घर से बाहर जाकर खटने की कोई जरूरत नहीं रह गयी थी। फिर वह एक अच्छी पत्नी थी और अच्छी पत्नियों का काम पति को खुश रखते हुए अपनी गृहस्थी को सजाने संवारने का होता है। खैर! इसके बाद ना तो राहुल ने कुछ कहा और न ही शर्मा जी ने उससे कुछ और पूछा। नीरजा रसोई में व्यस्त हो गयी और अभी थोड़ी देर पहले मोबाइल पीढ़ी पर ज्ञान बांटने वाले शर्मा जी अपने मोबाइल में टुक टुक करने लगे।

हमें समझना चाहिए की जीवन में जितना महत्व संवाद का है उतना ही मौन का भी। कभी कभी मौन रह जाना एक समाधान होता है लेकिन कभी कभी वह किसी बड़ी अनहोनी की आहट बनकर फूटता है। राहुल के मन में कुछ तो खटक रहा था जो वह बोलना चाहता था लेकिन बोल नहीं सका। एक पुरुष होने के नाते उस पर मर्द होने की तलवार जो लटका दी गयी थी। आपको नहीं लगता की ‘बोल्डनेस’ और ‘फियर’ जैसी बातों को जेंडर के खाँचे में बांटकर देखना सरासर अन्याय है! और हमारा समाज यह अन्याय खुलेआम करता है। 

4

सुबह सुबह शर्मा जी का मोबाईल खनक उठा। बॉस का फोन था सो नहीं उठाने जैसा कोई विकल्प था ही नहीं। फोन सुनते ही शर्मा जी के पैरों तले से जमीन खिसक गई। नीरजा ने बेड टी लेकर कमरे में प्रवेश किया ही था की वह शर्मा जी को शिथिल अवस्था में पलंग पर बैठा देखकर घबरा गयी।

‘क्या हुआ शर्मा जी! आप ऐसे सुन्न क्यूं बैठे हैं, तबियत तो ठीक है आपकी?’ उसने तुरंत ही चाय का कप टेबल पर रखा और शर्मा जी की पीठ सहलाते हुए पूछा।

‘बताइये न! क्यूं हैरान कर रहे हैं’

‘सेठी साहब का फोन था। कह रहे थे..राहुल ने.. पैसे..’

‘क्या किया मेरे राहुल ने!’ बताइये।

‘नीरू सेठी साहब बोल रहे थे की .. की राहुल ने सक्सेना जी के ऑफिस से बीस हजार की चोरी की है….हमने उसे कभी कोई कमी नहीं रहने दी..फिर राहुल ने ऐसा क्यूं किया!’ 

यह कहकर शर्मा जी ने नीरजा की तरफ देखा और उसका हाथ कसकर पकड़ लिया।

‘कोई गलतफहमी हुई होगी .. मुझे अपने बच्चे पर पूरा विश्वास है..आप इतनी सी बात को लेकर परेशान न होइए’

‘कहीं इसीलिये तो राहुल दो दिन से सक्सेना जी के यहाँ कम पर नहीं गया!..कहीं ..सच में तो…नहीं ..नहीं…राss हुल..’

शर्मा जी ने जोर से राहुल को आवाज दी और उसके कमरे की तरफ तेजी से अपने कदम बढ़ा दिये। जिस तेजी से वो राहुल की तरफ बढ़ते जा रहे थे उसी तेजी से उनका राहुल पर विश्वास पीछे छूटता जा रहा था। उधर राहुल अपनी स्टडी चेयर पर टेबल की तरफ सर झुकाकर बैठा हुआ था और पेपर पर कुछ गुच्छड़ मुच्छड़ कर रहा था। पता नहीं किस उधेड़बुन में था की पिता की आवाज उसके कानों में नहीं पड़ी। शर्मा जी किवाड़ खोलकर भीतर आये तब भी उसे सुध नहीं थी की कोई कमरे में आया है। 

‘तुम दो दिन से सक्सेना जी के पास नहीं गये कोई बात हुई है क्या?’ शर्मा जी ने कमरे के भीतर घुसते ही थोड़ा कड़क आवाज़ में राहुल से पूछा। शर्मा जी इतने आग बबूला हो रहे थे की बोलते हुए उनके मुँह से थूक छिटक रहा था।

आवाज़ सुनकर राहुल के शरीर में थोड़ी हरकत हुई। उसने अपनी कुर्सी घुमाई लेकिन वह मुँह नीचे करके ही बैठा रहा। शर्मा जी के पीछे पीछे नीरजा भी भागी हुई चली आयी।

‘पापा कुछ पूछ रहे हैं बेटा.. तुम..’ 

‘माँ प्लीज मुझे पापा से अकेले में बात करनी है।’ राहुल ने माँ की बात को काटते हुए बेहद धीमी आवाज में कहा। उधर शर्मा जी ने भी नीरजा को बाहर चले जाने का इशारा किया और राहुल के नजदीक आकर खड़े हो गये। इसके बाद पूरे दो मिनट तक कमरे में मौन पसरा रहा। फिर अचानक न मालूम क्या हुआ राहुल ने अपने पिता को अपनी दोनों बाहों में कसकर भींच लिया। उसके आलिंगन से शर्मा जी थोड़ा पिघल गए।

‘अरे! क्या हुआ..देख बेटा तुझसे कोई गलती हुई है तो बता दे। जवानी के जोश और अपने दोस्तों की संगत में बच्चों से अक्सर ऐसी गलतियां हो जाया करती हैं। सेठी साहब कह रहे हैं की तूने सक्सेना जी के ऑफिस से बीस हजार रुपए चुराये हैं..क्या यह बात सच है!’ 

‘बोल ना! अब भी कुछ नहीं बिगड़ा मैं मामले को सुलझा दूंगा…’

राहुल पिता के आश्रय में खुद को सुरक्षित महसूस कर रहा था इसलिये कुछ कहने की बजाय वह उनसे लिपटकर रोता ही चला जा रहा था। वह अपने पिता के भीतर धंस जाना चाहता था। उसे लग रहा था की पिता उसे अपने भीतर छिपा लें जैसे कंगारू अपने बच्चे को अपने पेट की थैली में कहीं छुपा लेता है। जब व्यक्ति को आश्रय मिल जाता है तो वह अपने समस्त दुखों को उस आश्रय में उतार देना चाहता है उस वक़्त राहुल भी ऐसा ही महसूस कर रहा था। दरअसल वह अपने भीतर की पीड़ा को अपने पिता से साझा करने की एक असफल कोशिश कर रहा था ।

राहुल के मोबाइल पर लगातार सक्सेना के फोन आ रहे थे। राहुल का फोन साइलेंट मोड पर सामने टेबल पर ही पड़ा हुआ था। जब शर्मा जी की नजर उसके वाइब्रेट करते हुए मोबाइल पर गयी तो वे बिफ़र पड़े।

‘बताता क्यूं नहीं रे..अपने बाप की नाक कटवायेगा क्या?..  बोल..  अरे तेरे साथ साथ मेरी बरसों की कमाई हुई इज्जत भी मिट्टी में मिल जायेगी और मेरी नौकरी पर बन आएगी सो अलग।’

‘पा..पा.. पा मैंने कुछ नहीं किया..मैंने ..कु..छ नहीं .. ‘ राहुल की आवाज़ भर्राई हुई थी उसकी नाक से पानी लिसढ़ रहा था और मुँह लार से लबालब हो गया था। लार के बोझ से एक बार फिर उसकी आवाज़ दबी ही रह गयी।

‘कुछ नहीं किया तो सेठी साहब क्या बोल रहे हैं…!..वो इतना बड़ा आदमी तुझ पर झूठा इल्जाम क्यूँ लगा रहा है?’

‘पा.. उस दिन ..शुक्रवार को ..जब मैं घर लेट आया था ..उस दिन ..सक्सेना सर ने..उनके दोस्त ने ..मेरे साथ गलत . ..उन्होंने..मुझे ..जबरदस्ती शराब पिलाई और ..मेरे ..साथ’

इतना कहकर राहुल बिलख पड़ा।

‘शर्म कर राहुल ..शर्म कर..कुछ भी बकता है ..यार तू तो लड़कियों वाली हरकत पर उतर आया ..चोरी तूने ही की होगी ..मैं समझ गया ..कुछ समझ नहीं आ रहा तो तू ये सब बक रहा है ..छि: ..यार मैं तो तुझे बहोत सीधा बच्चा समझता था..छि:..’ 

और छि: छि: करते हुए शर्मा जी कमरे से बाहर निकल गये। उन्होंने एक बार भी राहुल की आँखों में पढ़कर सच को जानने की कोशिश नहीं की ।

यह मामला चोरी की शिकायत तक ही सीमित नहीं रहा पूरी कोर्ट-कचहरी हुई। राहुल ने टूटे फूटे तरीके से कोर्ट में अपनी बात रखी और यह खुलासा किया की सक्सेना ने चाय में नशीली गोलियां खिलाकर उसके साथ यौनिक दुराचार किया था और यह धमकी भी दी थी की यदि उसने यह बात किसी को बताई तो वह राहुल का करियर बर्बाद कर देगा। ऐसा एक से अधिक बार हुआ लेकिन एक दिन जब सक्सेना ने अपने दोस्त को भी इस कुकर्म में साझीदार बना लिया तो उस दिन राहुल के सब्र का बाँध टूट गया। राहुल ने उन दोनों को पुलिस में ले जाने की बात कही। इस घटना के दो दिन तक जब वह काम पर नहीं गया तो तीसरे दिन सेठी साहब का फोन आ गया उन्हें बताया गया की राहुल ने चोरी की है। कुछ इस तरह इस पूरी घटना की फर्जी जानकारी राहुल के माता पिता को हुई ।

सक्सेना ने कानून की खामियों और अपने ओहदे की ताकत का पूरा इस्तेमाल करते हुए यह साबित कर दिया की राहुल समलैंगिक है और वह आदतन पुरुषों से सेक्स क्रिया में लिप्त रहा है। राहुल के यौन हिंसा का आरोप निराधार है सच बात तो यह है की राहुल ने सक्सेना के ऑफिस से बीस हजार रूपए चोरी किये थे । जब यह बात बाहर आई तो अपना जुर्म छिपाने के डर से उसने अप्राकृतिक यौनाचार जैसा घिनौना आरोप सक्सेना और उसके मित्र पर लगा दिया।

अदालत ने सक्सेना के आरोपों को सही पाया और आईपीसी की धारा 379 के तहत राहुल को अपराधी मानते हुए आर्थिक दंड के साथ दो महीने जेल की सजा भी सुनाई। कानून ने एक बार फिर से साबित कर दिया की वह अंधा होता है।

5

चाँदपुर जेल जिले की सबसे बड़ी जेल थी जिसकी सलाखों से सुबुकने की आवाजें आ रही थीं। एक लड़का अपने घुटनों में अपना सिर छुपाकर रो रहा था। मालूम नहीं कितने घंटों से उसका शरीर ऐसे ही अकड़ा हुआ था। आप तो जानते ही हैं लड़कों का रोना हमारे समाज में कमजोरी की निशानी समझा जाता है। लड़के कमजोर नहीं होते, लड़के मर्द होते हैं और मर्द को दर्द नहीं होता! दरअसल भूमिका निर्धारण के चक्कर में हम भूल जाते हैं की रोना मनुष्य की एक स्वाभाविक क्रिया है और दुःख की माप लिंग को देखकर नहीं बल्कि दुःख की गहराई से की जानी चाहिए।

आते जाते कैदी उस लड़के का उपहास कर रहे थे और उस पर फब्तियां कस रहे थे। लेकिन उस जेल में एक कैदी था जिसकी संवेदना अभी मरी नहीं थी उससे रहा न गया और उसने रोते हुए उस लड़के को आखिरकार टोक ही दिया-

‘कबसे देख रहा मैं साला..तू है की रोये इच जा रा है ..क्या नाम है तेरा? अबे बता ना क्या नाम है?? मैं विजय ..विजय महात्रे .. तू कौन !’ विजय ने उसे लगभग धकेलते हुए पूछा।

‘राहुल’ विजय के बार बार पूछने पर उस लड़के ने रूंधे हुए गले जवाब दिया।

‘राहुल!.. तो राहुल बाबा ने चोरी किया है! लड़की को छेड़ा है .. या किसी को उड़ा डाला है ! ..अबे बोल ना ! साले यूं लड़कियों की माफ़िक रोता रहेगा ना तो अपने चारों तरफ ये जो मोटे मोटे सांड देख रहा है तुझे कहीं का नहीं छोड़ेंगे ..ए भाई ! फिर अपुन को मत बोलना की तुझ पिलपिले को मैं कुछ बताया इच नइ।’

‘मैंने कुछ नहीं किया’ राहुल अपनी जगह से हिले बगैर बोला।

‘अपुन तो भोत कुछ किया था ..साला तब भी ..

इधर आके अपुन की सब हेकड़ी निकल गयी। जिस दिन जेल आया था उस दिन से अपुन का किस्मत ही फूट गया ..’

‘मैं पहले भी कई बार मोबाइल चोरी किया लेकिन साला उस दिन पकड़ा गया और इस जहन्नुम में आ के धँस गया। जूली.. मेरी बड़ी बहन रोज इच कहती थी भाई सुधर जा नइ तो एक दिन भुगतना पडेगा तेरे को.. लेकिन अपुन के सिर पर एक टशन था ..एक भूत सवार था की जो चीज इत्ती आसानी से मिल सकती है उसके लिये घर का पईसा काहे को डालना !.. 

इधर आने के बाद एक हफ्ता तो अपुन को सब टिंच लगा .. सोचता था मुफ्त की रोटी मिल रेली है अपुन को और काई मांगता ! लेकिन उसके बाद साला ये जेलर और उस सूअर के बच्चे ने अपुन की जो ऐसी की तैसी की ..साला समझ ही नहीं पाया की अपुन .. मर्द है की इन हरामजादों की रंडी है …साssला…’

विजय ने एक मोटे आदमी की तरफ इशारा करते हुए यह बात कही उस आदमी के आस पास चार छ: कैदियों का झुंड जमा हुआ था और वह अपने सिर की मालिश करवा रहा था। उस आदमी को देखते हुए विजय का चेहरा लाल हो गया उसके नथूने गीले हो गये और आँखों में समंदर का पनीलापन बेचारगी बनकर उतर आया। राहुल इतना कुछ सुनकर भी चुप था और विजय फिर भी बोलता ही जा रहा था।

‘सिगरेट के एक पैकेट के बदले मेरा सौदा कर दिया और अब तो आदत सी हो गयी है जिस दिन कैंडी नहीं मिलती साला अजीब सा लगने लगता है ..कैंडी तो समझता है न!’

‘महीने पहले अपुन की हियरिंग थी साला.. जज साब को मैं बोला की मेरे साथ जेल में अईसा वईसा होता है तो साले… बोलते मैं समलैंगिक हूँ ..इनकी माँ का ..भ.. साला न्याय की देवी ने भी नइ सुना अपुन का..

जानता है मेरा बाप भी था वहाँ .. साला जज साब की बात सुनकर अपनी जनी हुई औलाद पर लानत भेज कर गया. .’

विजय लगातार बोलता रहा।

‘मेको बहोत मारा उस दिन .. चार चार पिल पड़े अपुन पर ..बहोत दर्द हुआ .. यार अपुन टूट गया उस दिन ..फिर कभी इंकार नहीं किया… बस..साला दो मिनट की ही बात है अपुन भी झेल लेता है .. ..करो जो करने का है .. मार पिटाई से बच जाता है अपुन ..बढ़िया खाने को मिल जाता है ..’

‘जब जेल में सड़ना ही है तो साला मलाई मार के सड़ो ..है की नइ..’ 

‘तेरे को मालूम मेरे दोस्त मेरे को लंबी रेस का घोड़ा बोला करते थे ..साsला क्या मालूम था अपुन को एक दिन घोड़ी बनना पड़ेगा

..  हा हा हा ..’

‘इसलिये कमजोर नहीं दिखने का समझा! जब तक जान है साला जमकर प्रोटेस्ट करने का। एक बार इनके चंगुल में आ गया तो कोई रास्ता नहीं बचेगा .. तेरे ही तरह था जब यहाँ आया था अपुन ..साला कमजोर को देखकर दबोच लेते हैं. .तेरे को मालूम अपुन को ‘फ्रेश बोटी’ बोलते हैं साला इधर ..’ 

‘फ्रेश बोटी.. हा हा हा ..’

यह कहकर विजय एक बार फिर से जोर से हंस दिया। अक्सर इंसान अपने दर्द को बयान करते हुए उसकी खिल्ली उड़ाने लगता है। ऐसा करते हुए वह अपनी बेबसी को छिपाने की नाकाम कोशिश करता है। शायद विजय भी कुछ ऐसा ही कर रहा था।

तभी जोर से थाली पीटने की आवाज़ हुई। यह रात्रि के भोजन के लिये था। जेल में खाने के वक़्त का अनाउन्समेंट इसी तरह किया जाता है।

‘अपुन चलता है.. सुन! तू रोते रोते मर भी जायेगा साला तब भी कोई तेरी सुनने का इच नइ.. समझा ..तेरे जईसे चिकने को बच के रेने को माँगता .. एक बात गाँठ बाँध लेने का 

..’रेप ओनली औरतों का इच नइ होता’.. 

‘कम बोला है ज्यादा समझने का’ यह कहकर विजय वहाँ से खिसक लिया।

समझदार को इशारा ही काफी होता है लेकिन क्या राहुल विजय की बात सुनकर आने वाले खतरे को भांप सका था! या वक्त ने राहुल के हिस्से में कभी न खत्म होने वाले दुःख रचे हुए थे !! सुधार गृह होने का दावा करने वाले कारागार कभी कभी एक ऐसी चारदीवारी बन जाते हैं जहाँ आपके मनुष्य के रूप में बचे रहने की संभावना लगभग शून्य हो जाती है।

6

राहुल को जेल आये हुए तीन हफ्ते हो चुके थे लेकिन आज भी अधिकाँश वक़्त वह अपने में ही खोया रहता था। जेल पहुँचने के तीसरे ही दिन आधी रात को दो सीनियर कैदियों से उसकी हाथापाई हुई थी जिसमें उसकी दायें हाथ की सबसे छोटी ऊँगली टूटने से बाल-बाल बची थी। पिछले हफ्ते ही अनवर और नीरजा उससे मिलने आये थे लेकिन राहुल ने इस घटना का कोई जिक्र उनसे नहीं किया। उसके माता-पिता उसे कुछ किताब कॉपी भी देकर गये थे दरअसल उन्होंने कोर्ट से राहुल को परीक्षा देने की अनुमति ली थी। लेकिन उन्हें क्या मालूम था की राहुल अब कभी कोई परीक्षा नहीं दे पायेगा। शाम का वक़्त था। आज पूरा वॉर्ड भारी हलचल से भरा हुआ था। संडास के बाहर हर कोई कानाफूसी में लगा हुआ था। ज़रा गौर से सुनने पर मालूम हुआ की किसी कैदी ने संडास में फाँसी लगा ली है।

शाम के पाँच बजे थे कैदियों की गिनती का काम शुरू हुआ तो खबर लगी की एक कैदी गायब था। चारों तरफ शोर मच गया तफदीश करने पर मालूम हुआ किसी कैदी ने संडास के रोशनदान में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली थी। आनन्-फानन में उसके शव को उतारा गया उसकी साँसें थम चुकी थीं। सब कैदी एकटक उस ठंडे पड़ चुके शरीर को देख रहे थे। तभी कैदियों के झुंड को हटाता हुआ विजय वहाँ आया उसने देखा सामने पड़ी हुई वह लाश राहुल की थी। वह सन्न रह गया। विजय कुछ सोच या समझ पाता उससे पहले ही उसकी नजर राहुल के हाथ में दबे हुए एक कागज़ पर पड़ी। विजय ने आगे आकर उसके हाथ से कागज का वह टुकड़ा खींच लिया। उसने मुड़े तुड़े उस कागज को खोला और पढ़ने लगा।

मैं सोनू निगम की तरह एक शानदार गायक बनना चाहता था। मैं हमेशा एक सपना देखकर उठता था की मेरा प्रोग्राम चल रहा है .. लडकियां हवा में अपना स्कार्फ़ लहराते हुए जोर जोर से राss हुल राss हुल पुकार रही हैं.. उन्होंने स्टेज पर आकर मुझे चारों तरफ से घेर लिया है .. ऑडियंस क्रेजी होकर ..वंस मोर ..वंस मोर.. चिल्ला रही है …फिर अचानक से वह भीड़ गायब हो जाती है और काला नकाब पहने हुए एक आदमी मेरी तरफ बढ़ता चला आता है .. अब मैं स्टेज पर अकेला खड़ा हूँ जैसे जैसे वह नकाबपोश मेरी तरफ बढ़ रहा है संगीत का शोर एकदम धीमा पड़ता जा रहा है …  वह नकाबपोश अब ठीक मेरे सामने खड़ा है ..वह मुझे घूरे जा रहा है .. वह अपनी जेब से हरे, पीले, लाल रंग की कैंडी निकालकर मेरे सामने रख देता है .. वह जोर से हँसता है और अचनाक मेरी पेंट खींचकर उसे नीचे कर देता है .. मैं शर्म से भर उठता हूँ। थोड़ी देर बाद मैं देखता हूँ की मैंने स्टेज को गीला कर दिया है ..

मैं डर जाता हूँ .. बहोत शर्म महसूस करता हूँ ..मैं चीख चीख कर रोता हूँ ..और फिर एक झटके से मेरी नींद खुल जाती है…

लेकिन पिछले कुछ महीनों से मेरे सपनों में स्कॉर्फ लहराती हुई लडकियां और शोर मचाती हुई ऑडियंस नहीं आती.. अब मैं देखता हूँ जैसे ही मैं एक कदम बढ़ाता हूँ स्टेज पर एक कैंडी उग आती है .. फिर एक और कैंडी उग आती है.. और धीरे धीरे पूरा स्टेज ही कैंडी से भर जाता है. . एक कैंडी से सफेद रंग का धुआं बदस्तूर निकल रहा है और पूरा स्टेज धुंए से ढक गया है … मेरा दम घुटने लगता है ..मैं चिल्लाना चाहता हूँ लेकिन अपनी पूरी ताकत लगाने के बावजूद मैं चीख पाने में असमर्थ रहता हूँ.. मैं अपनी आँखें भींचकर वहीं स्टेज पर लेट जाता हूँ..

मैं कौन हूँ? क्या मैं केवल एक पुरूष हूँ? क्या मर्द से अलग मेरी कोई पहचान नहीं! .. मैं बार बार जानना चाहता हूँ कि मैं कौन हूँ! ..लेकिन कोई जवाब नहीं मिलता..

खुद की तलाश में मैं खुद को खोता रहा हूँ। मैंने बार बार खुद को विश्वास दिलाना चाहा की कमी मुझमें नहीं है लोगों की सोच में और उनके नजरिये में है। मैं बगैर कोई जुर्म किये एक अपराधबोध के साथ जी रहा हूँ। पापा आपने कभी ढ़लते हुए सूरज की रोशनी को पेड़ों और पहाड़ों से तेजी से नीचे उतरते हुए देखा है! वही उतरन मैं महसूस कर रहा हूँ। मेरे सपनों में बहोत शोर है रोज कानों को फोड़ता हुआ संगीत मेरे दिमाग में भर जाता है और चकरघिन्नी की तरह देर तक घूमता रहता है। कभी जो संगीत मेरी रगों को हौंसले से भर देता था आज वह शोर बनकर भीतर ही भीतर मुझे निगल रहा है।

पापा मुझे आपकी बहोत याद आ रही है .. आपको बाय बोलने से पहले मैं आपको बताना चाहता हूँ की मुझे ब्रजेश अंकल बिलकुल अच्छे नहीं लगते थे ..अपने कहा वो मुझे प्यार करते हैं ..आपने कभी मेरी बात को सीरियसली लिया ही नहीं. . वो प्यार नहीं था ..पापा.. वो मुझे गीला कर देते थे..मुझे घिन आती थी खुद पर..

मैं जब भी रोया आपने हमेशा मुझे टोकाक्या लड़कियों की तरह रो रहे हो!’.. क्या लड़कों को रोने का हक़ नहीं पापा?

आप क्यूँ नहीं समझ पाए पापा की एक लड़के के साथ भी सेक्सुअल असॉल्ट किया जा सकता है! उस दिन जज साहब को भी मैंने यह बात बतानी चाही लेकिन उन्होंने भी मेरे दर्द को बलात्कार मानने की बजायेयौन सम्बन्धकहकर खारिज कर दिया। क्या एक लड़के का बलात्कार नहीं हो सकता?

मेरे लिये जेल की मजबूत चारदीवारी भी सुरक्षित नहीं थीं।

मैं समलैंगिक नहीं हूँ पापा.. मैं गे नहीं हूँ.. मेरी क्लास में जो वो बड़े बालों वाली लड़की है न .. प्रदीप्ति ..मैं उसे पसंद करता हूँ पापा ..लेकिन कभी कह नहीं पाया .. आप प्लीज उसे बता देंगे ! ..

माफ़ करना माँ .. अब बस….खुद पर बहोत शर्म आती है ..मेरे भीतर आत्मविश्वास का एक टुकड़ा भी बाकी नहीं रह गया है जिसके भरोसे मैं जी सकूँ..मेरे सब दोस्त मुझ पर हँसते इससे अच्छा होगा की .. मैं ..

इसके बाद लिखे हुए शब्द विजय पढ़ नहीं सका उनकी स्याही धुल गयी थी ऐसा लगता था किसी ने उस पर पानी फेर दिया हो। राहुल होता तो बताता की यह कदम उठाने से पहले वह कितना रोया था । वह नहीं चाहता था आत्महत्या करना वह तो जीना चाहता था अपने सपनों के साथ ..अपनी प्रदीप्ति के साथ लेकिन उसकी हत्या कर दी गयी। राहुल चाहता तो जिंदा रह सकता था अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ लड़ सकता था लेकिन तब हम नहीं जान पाते की पीड़ा पुरुषों को भी माँजती है और दुःख पुरुषों को भी तोड़ता है।

अगले शुक्रवार को राहुल के केस पर सुनवाई थी लेकिन कोई उसे सुन पाता उससे पहले ही उसने हमेशा के लिये चुप्पी साध ली। सोमवार की शाम चार बजे के आसपास बैराक बंद होने से ठीक पहले वह संडास गया। उसने अपनी बनियान और अंडरवियर की किनारी फाड़ी, उन किनारियों को जोड़कर एक रस्सी बनाई और उस रस्सी से झूलकर हमेशा के लिये अपने दर्द के साथ अकेला सो गया। 

जेलर और बाकी अधिकारी अब तक मौके पर पहुँच चुके थे। जेलर ने विजय के हाथ से खत को छीना और सभी कैदियों को बैराक में वापस चले जाने का आदेश दिया । चाँदपुर की जेल के पुरुष वार्ड में इस साल यह चौथी आत्महत्या थी। हमेशा की तरह शव का पंचनामा भरा गया और उसके बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।

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