ये आवारगी मेरी ( गीत )

ये आवारगी मेरी
ये आवारगी मेरी
मेरे प्यार की इंतेहा है
जब तुम भी मुझको चाहोगी
तब समझोगी ये दर्द ( प्यार का ) क्या है

दिल में उठी कसक तो, खुद ही
दिल पर हाथ रख लिया
बेचारगी में गम को अपने
साथ कर लिया
तुम्हें देखती हैं आंखें
बस तुम्हें ही सोचता है मन
आसमानों पर लटका हूँ
जैसे कटी हुई कोई पतंग

ये आवारगी मेरी
मेरे प्यार की इंतेहा है..

तुम्हारे इनकार को अपना
मुकद्दर समझ लिया
रात की हसीन नींदों से
हसरतों का सौदा कर लिया
हथेलियों की गरम चादर से
आंसू छिपा लिए
तुम्हारे दिल की डोर से
बंधा है मेरा पागल मन

ये आवारगी मेरी
मेरे प्यार की इंतेहा है..

 © पिंक रोज़ (चंद्रकांता) PINK ROSE ( CHANDRAKANTA)