हाशिये का आदमी ..
वह देखो ! हाशिये का आदमी
और उसके आगे वह काले रंग की लकीर
जो हमारी व्यवस्था नें खींची है
वह आदमी जड़ है, सिम्पटम से फ़कीर
क्यूंकि जिस पायदान पर उसके पाँव ठहरे है
वहाँ प्रशासन-व्यवस्था के सख्त पहरे हैं
इस हाशिये के आदमी की कहानी बेहद रोचक है
राजनीति के लिए वह एक अदद वोट
और सत्ता के लिए एक आंकड़ा भर है
सरकारी दस्तावेजों में वह
किसी भयानक आपदा की माफिक दर्ज है
बे-ज़ुबान जिनावर, बे-गैरत साला !
धूल धक्काड़ से लदा हुआ पसीने वाला
इसी पसीने में स्वयं को बोता है, काटता है
इसी पसीने में स्वयं को बोता है, काटता है
मेहरारू पर बल आजमाता है लेकिन
जीवन भर मालिक के तलवे चाटता है
जीवन भर मालिक के तलवे चाटता है
जरा सोचिये ! कहीं यह भूमिका अदल-बदल होती ?
तो आपकी दुनिया कितनी फक्कड़ होती
हमारे ख्वाब मर्सिडीज़ में पलते हैं
और इनके इसके ख्वाब बहोत छोटे है
जितना छोटा गेंहू का अंकुर
जितना छोटा गेंहू का अंकुर
वह देखो ! हाशिये का आदमी
फटी हुई कमीज़ को सिलना अपेक्षाकृत सरल है
किन्तु इस हाशिये को सिल पाना.. बेहद गरल I I
किन्तु इस हाशिये को सिल पाना.. बेहद गरल I I
चंद्रकांता