fRagrence Of sentimentS कुछ बिखरी हुई संवेदनाएं – 1

1

प्रिय ! बहुत बार 
तुमसे कहना चाहा 
किन्तु, प्रेम में गढ़ दिए गए शब्द 
नहीं तय कर पाए 
फासले 
अर्थ और शब्द के मध्य 
अर्थ तु-त-ला-ता रहा
तुम्हारे प्रति 
संवेदना अधूरी रही मेरी  
सदियों तक रही 
अनकही
स्वयं को लीक पर धर  
आज कहता हूँ  -‘जो आकर्षण और कशिश प्रकृति में है,वह तुममे भी है’…
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रमेश यादव जी की एक पंक्ति पर ..24 जनवरी 2013


2

नाजुक पंखुड़ियों सी 
यह स्मित, स्फटिक मुस्कान
और किसी एक क्षण 
पलकों से 
आँखों के सिरहाने उतर आया 
कुछ, बेतरतीबी से बिखरा हुआ यह काजल

माथे पर सुरमई सांझ सी 
सजती यह बिंदी 
और उन्मुक्त लताएं 
जीवन के सूनेपन को भरतीं 
अमिय सरिता सी आँखें
और दाहिने यह तिल, संगदिल 

श्रृंगार के ये अमिट पलछिन 
देते हैं नव-परिचय 
तुम्हारे धवल गुलाबी अपराजेय स्त्रीत्व का ..
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‘सुमन केशरी अग्रवाल’ मैम के लिए सस्नेह ..30  अक्तूबर 2012  




चंद्रकांता