ध्रुवस्वामिनी नाटक : प्रियंका शर्मा
अगर तुम स्त्री की रक्षा नहीं कर सकते तो उसे बेच भी नहीं सकते…’प्रेम करने वाले ह्रदय को खो देना
Continue reading'मैं कुछ अलहदा तस्वीरें बनाना चाहती हूँ जैसे अंबर की पीठ पर लदी हुई नदी, हवाओं के साथ खेलते हुए, मेपल के बरगंडी रंग के पत्ते, चीटियों की भुरभुरी गुफा या मधुमक्खी के साबुत छत्ते, लेकिन बना देती हूं विलापरत नदी पेड़ पंछी और पहाड़ ।'
अगर तुम स्त्री की रक्षा नहीं कर सकते तो उसे बेच भी नहीं सकते…’प्रेम करने वाले ह्रदय को खो देना
Continue readingAnarkali of Aarah -‘आज के बाद रंडी हो, रंडी से थोड़ा काम हो या बीवी हो मर्जी पूछकर हाथ लगाइएगा
Continue readingDo Aankhen Barah Haath 1957 – फिल्म के गीतों में ध्वनियों का बेहद सुंदर इस्तेमाल किया गया है जो आपके
Continue readingमेरा टेसू यहीं अड़ा, खाने को मांगे दही बड़ा 🙂 🙂 बचपन का कोई बिसराया हुआ लोकगीत याद हो आया . सांझी
Continue readingDo Aankhen Barah Haath 1957- इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विश्वास कमजोर हो न हम चलें नेक रस्ते
Continue readingवह देखो ! हाशिये का आदमी और उसके आगे वह काले रंग की लकीर जो हमारी व्यवस्था नें खींची है वह
Continue readingपाषाण.. तुम, अंगिया में समेटे समस्त भार-अधिभार अस्मिता के मंदिर में पूजा-अर्चना के पश्चात् परोस दी जाती हो, अनमने ग्रहण
Continue readingThe article relates to the struggle of a woman who supports her ailing husband by ferrying passengers on the Battery
Continue readingSanitary Napkin – a wAy tO wOmen’s empOwerment Gender disparity: Shackled in the centuries-old discriminating taboos of menstrual flow, Indian
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