चंद्रकांता गीत ‘पगडंडियां’

चंद्रकांता गीत ‘पगडंडियां’

तेरे इश्क़ की पगडंडियां
 
मैं उड़ती हूँ रेत बनकर
तड़पती हूँ इक प्यास सी
होकर बेपरवाह धड़कती हूँ
तेरे इश्क़ की पगडंडियों पर चलती हूँ
 
खुद को बूंदों में भरकर
फिसलती हूँ पत्तों से
बारिशों सी बरसती हूँ
उधड़ती हूँ रेशा रेशा
सावन की हसीं ख़्वाहिशों में
 
होकर बेपरवाह धड़कती हूँ
तेरे इश्क़ की पगडंडियों पर चलती हूँ
 
तुम लेकर चलो
मुझको परबतों पर
जहां ठहरे हुए हैं ये रंगीन बादल
घटाएं कोहरे में गुम हैं
सरसराहट सी है फ़िज़ाओं में
 
होकर बेपरवाह धड़कती हूँ
तेरे इश्क़ की पगडंडियों पर चलती हूँ
 
काली स्याही में लिपटे हुए हैं
मौसम के बेफिक्र साये
अदब से सिमटे हुए हैं
बदन कांपता है धीमे से
एक हलचल सी है निगाहों में
 
होकर बेपरवाह धड़कती हूँ
तेरे इश्क़ की पगडंडियों पर चलती हूँ
 
मैं उड़ती हूँ रेत बनकर
तड़पती हूँ इक प्यास सी
होकर बेपरवाह धड़कती हूँ
तेरे इश्क़ की पगडंडियों पर चलती हूँ ..
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
चित्र साभार गूगल