रंगों कि दुनिया chilDren Of hOpe 10

भागाणा के बच्चों के खूबसूरत रंग 
      
कला हमारी अभिव्यक्ति एक ऐसा रूप है जहाँ हम अपने अंतर्मन में प्रस्फुटित होने वाली इमेजिनेशंस (कल्पनाओं) को ब्रश, रेत, मिटटी आदि के माध्यम से आकार देते हैं. कला हमारे अचेतन मन का वह कोना भी है जिसे बाहरी दुनिया के एकसमान नियमों के चलते अभिव्यक्ति का मनचाहा स्पेस नहीं मिल पाता. जबकि हमें यह जानना-समझना चाहिए की प्रत्येक व्यक्ति की सृजनात्मकता एक अलग फॉरमेट में आकार पाती है. और इसलिए वह एक अलग सलीके से अभिव्यक्त होती है.

ऐसा माना जाता है की इन्द्रधनुष के सात रंगों से ही बाकी सभी रंगों की उत्पत्ति हुई है. लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, आसमानी और बैंगनी इन्द्रधनुष के रंग हैं. इनमें लाल, नीला और हरा प्राथमिक रंग हैं. लाल रंग क्रान्ति, क्रोध, उद्वेग, हिंसा, शक्ति और जीवन की संजीवनी का प्रतीक है. आपने देखा होगा की बसंत पंचमी ‘पीले रंग’ की छटाओं का पर्व है क्यूंकि पीला रंग ख़ुशी, उत्साह, आत्मविश्वास और वाइब्रेंट आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है. नीला रंग विशालता का प्रतीक है इसलिए यह अपनी वस्तुयोजना में ‘वासुदेव कुटुम्बकम और धर्मनिरपेक्षता’ जैसे भावों को समेटे हुए होता है भारत के राष्ट्रीय झंडे में चक्र का, राष्ट्रीय राजनीतिक दल बहुजन समाज पार्टी और भारतीय क्रिकेट टीम की पोशाक का प्राथमिक रंग भी नीला ही है. हालांकि कभी-कभी गहरे नीले रंग को अवसाद से भी जोड़कर देखा जाता है..हरा रंग समृद्धि का द्योतक है यह प्रकृति का प्राथमिक संकेतक भी है. कुछ धर्मों में इसे पवित्र रंग के तौर पर भी माना गया है. श्वेत रंग शान्ति, सहजता, निर्मलता, पवित्रता और सुरक्षा के भावों को इंगित करता है तथा काला रंग अपनें भीतर सभी रंगों को समेटे हुए होता है यह रहस्य का प्रतीक भी होता हैं.

यह देखिये परवीन द्वारा बनाए गए एक चित्र में आप लगभग सभी मुख्य रंगों का सुन्दर इस्तेमाल देख सकते हैं. परवीन की ड्राइंग भी सधी हुई है .करीने से की गयी ड्राइंग और सलीके से भरे गए रंग किसी चित्र की खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देते है.

          रंग बच्चों के कोमल मन-मस्तिष्क तक कोई सन्देश पहुँचाने का एक सम्मोहक माध्यम है क्यूंकि रंग बच्चों को आकर्षित करते हैं इसलिए बच्चों और रंगों के बीच जल्दी ही एक बांड बन जाता है. रंगों का पहला औपचारिक अध्यन संभवतः न्यूटन नें किया था. आधुनिक रंगों का विकास वस्त्र उद्योग में क्रांति के बाद से हुआ. आपको यह जानकार सुखद आश्चर्य होगा की जर्मनी के एक रसायन विज्ञानी एडोल्फ़ को नीले रंग की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार भी दिया गया. पश्चिमी देशों में ‘कलर थेरेपी’ यानी की रंगों द्वारा चिकित्सा भी प्रचलित है.

जंतर-मंतर पर न्याय के लिए धरने पर बैठे हुए बच्चों को चित्रकारी सिखाना एक नया अनुभव रहा. हमारी कोशिश रहती है की ये बच्चे किसी और के बनाए गए चित्रों की कापी ना करें बल्कि अपनी इमेजिनेशन और यदि संभव हो तो विजुअलाईजेशन का इस्तेमाल करें. क्यूंकि कला एक सृजन है और सृजन का अर्थ है सहज भाव से नवीन का निर्माण करना. इसलिए हमारा मानना है की सीमेंटेड प्रक्रिया के तहत कुछ कापी करना बच्चे के भीतर की संभावनाओं को सीमित कर देने जैसा है. प्रत्येक बच्चा अपनी बनाई गयी दुनिया में अपने परिवेश की वस्तुओं से एक ख़ास सम्बन्ध बनाते हुए बड़ा होता है. कागज़, पेन्सिल और रंगों के माध्यम से उसकी सृजनात्मक चेतना इसी ‘सम्बन्ध की अभिव्यक्ति’ करती है.

आपको जानकार  ख़ुशी होगी की यहाँ के अधिकांश बच्चे स्कूल, पार्क, लड़का, लड़की, पेड़-पौधों-बागीचों, छोटा परिवार सुखी परिवार , नो स्मोकिंग आदि के जागरूकता सम्बन्धी चित्र बनाते हैं .इन बच्चों के चित्रों का ख़ास प्रसंग अतीत में बनाए गये चित्रों का स्मरण कर उनका रीक्रिएश्न करना है इसके अलावा कुछ बच्चे अपने आस-पास की चीजों को देखकर उनका स्वाभाविक चित्रण भी करते हैं जिसकी बारीकियां हैरान कर देने वाली होती हैं.

पेन्सिल और रंगों की दुनिया का सम्बन्ध ज्यामिति रेखाओं या गणित के किसी फार्मूले पर आधारित नहीं होता वह तो व्यक्ति मन की अभिव्यक्ति है. जहां अनगढ़ रेखाओं पर रंगों का संयोजन और मनोभाव की सजावट एक खूबसूरत दुनिया को आकार देती है. इसलिए कोई भी तकनीकी पाठ्यक्रम कला को सिखाने का बेहतर माध्यम हो ही नहीं सकता. यह ठीक वैसा ही है जैसे आपके कैमरा की तकनीक कितनी ही आऊटस्टेंडिंग क्यूँ ना हो लेकिन जब तक आपके पास चीजों को देखने का एक फ्लेक्सिबल नजरिया और कलात्मक एंगल नहीं होगा आप केवल तकनीक के सहारे एक उम्दा फोटोग्राफर नहीं बन सकते. यही बात इन बच्चों नें भी साबित की है. सुविधाओं के अभाव में और एक ऐसे वातावरण में रहने के बावजूद जहाँ भय नें मस्तिष्क की घेराबंदी कर ली हो , इन बच्चों की उम्दा चित्रकारी जेहानी सुकून देती है.



ये चित्र कागज़ पर उतार दी गयी तस्वीरें नहीं है यह व्यवस्था की कठोरता और नजरंदाजी के सापेक्ष इन बच्चों का रचनात्मक विद्रोह है. जो युद्ध के मैदान में उकेरी गयी तस्वीरों से किसी भी मायनों में कम नहीं है. 
 
रंगों के माध्यम से बच्चा अपने अंतर्जगत को, अपनी अवचेतन मन को और अपनी नन्ही सोच को अभिव्यक्त कर रहा होता है. आप कह सकते हैं की चित्रकारी करते वक़्त एक बच्चा ‘चित्र-भाषा’ में खुद को अभिव्यक्त कर रहा होता है और इस चित्रभाषा का सम्बन्ध सुन्दर या असुंदर से नहीं है यह बात हमनें इन बच्चों के साथ रहकर और चित्रकारी करते हुए समझी. इसलिए इन बच्चों नें कई मायनों में हमारे गुरु की भूमिका भी निभाई है.

शुक्रिया मेरे बच्चों .

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जंतर मंतर पर अलग-अलग वजहों से आन्दोलन कर रहे बच्चों को ‘To Travel is to Learn’ की ChilDren Of hOpe नामक रचनात्मक पहल के अंतर्गत ड्राइंग बुक्स, पेंसिल-कलर,ब्रश आदि जरुरी सामग्री उपलब्ध करवाई जा रही है. ताकि बच्चों के भीतर की क्रिएटीवीटी को उबारा जा सके. इस पहल के पीछे एक मनोवैज्ञानिक कारण भी है ताकि बच्चों के खाली समय को रचनात्मक गतिविधियों में निवेश किया जा सके.
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चंद्रकांता