Bhanwari Devi Rape Case भंवरी देवी बलात्कार केस

Bhanwari Devi Rape Case – Justice delayed is justice denied

 
दोस्तों हमने Justice delayed is justice denied  नाम से एक शृंखला शुरू की है जिसके पहले फेज में आपको भारत में हुए रेप क्राइम की ऐसी घटनाओं के बारे में जानकारी देने की कोशिश की जाएगी जिन्होनें पूरे देश और व्यवस्था को हिला कर रख दिया ।  Justice delayed is justice denied में आज हम बात करेंगे राजस्थान जयपुर के गांव भटेरी की जुझारू महिला भंवरी देवी की. भंवरी देवी जिनका खुद का जीवन तबाह हो गया लेकिन जिनके साहस ने हजारों लाखों औरतों की जिंदगी बदल दी।
22 सितंबर 1992 का वह उमस भरा दिन था । जयपुर के भटेरी गाँव की भंवरी देवी अपने पति के साथ खेतों में काम कर रही थीं । अचानक दबंग जाति के कुछ लोग आए उन्होने भंवरी के पति के साथ मारपीट की और उसे अधमरा कर दूर फेंक दिया। इसके बाद उन्होंने भंवरी देवी के साथ पहले अमानवीय हिंसा की और फिर सामूहिक बलात्कार किया। भंवरी देवी ने अपने खिलाफ हुई इस यौन हिंसा की रपट पुलिस थाने में लिखवाने का फैसला किया। लेकिन, पुलिस ने न केवल रसूखदार दबंगों के खिलाफ एफ. आई. आर. दर्ज करने से साफ इंकार कर दिया बल्कि थाने में भंवरी देवी का अपमान भी किया । यह मामला सार्वजनिक होने के बाद कुछ महिला संगठनों के दवाब में आखिरकार पुलिस को बलात्कार की रपट दर्ज करनी पड़ी। 
 
तो आखिर कौन थीं यह भंवरी देवी जिसका साहस क़ानून व्यवस्था, प्रशासन और समाज नहीं डिगा सका। 
 
भंवरी देवी का बाल विवाह जयपुर की बस्सी तहसील के भटेरी गाँव में रहने वाले मोहनलाल प्रजापति से हुआ था। प्रजापति परिवार मिट्टी के बर्तन बनाकर अपनी आजीविका चलाता था। जिस वक़्त भंवरी देवी के साथ यह अपराध किया गया वह राजस्थान सरकार की महिला विकास परियोजना में एक साथिन के तौर पर काम कर रही थीं। 
 
साथिन ! साथिन मतलब सखी या दोस्त जो गांव की महिलाओं के लिए एक परामर्शदाता का काम करती है। वह स्वास्थ्य सुरक्षा और कानूनी मसलों पर गांव की औरतों को जागरूक करती है , महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए काम करती है और बाल विवाह , डायन प्रथा, भ्रूण हत्या जैसी कुरीतियों के खिलाफ चेतना का प्रचार भी करती है। गाँव में यदि कोई बाल विवाह की कोशिश करता है तो ऐसी घटनाओं की जानकारी साथिन को तुरंत पुलिस को देनी होती है। 
 
भंवरी देवी को गाँव में बाल विवाह की सामाजिक बुराई के संदर्भ में जागरूकता फैलाने और इसके विरुद्ध गांव के लोगों में सहमति बनाने का काम दिया गया था।  अपने गांव में दबंग गुज्जरों के यहां एक 9 महीने की नवजात बच्ची का बाल विवाह होते देख भंवरी ने उसे रोकने की कोशिश की . एक साथिन के कार्य के अनुरूप उसने पुलिस को इस बात की इत्तेला भी दी। भंवरी की शिकायत पर पुलिस आई और मिठाई खाकर चली गई। इसके बाद भंवरी देवी के साथ जो हुआ वह हमारे सामने है। बाल विवाह की रिपोर्ट करने पर स्थानीय दबंगों ने खेतों में काम कर रही भंवरी देवी के साथ सामूहिक बलात्कार किया . 
 
बाल विवाह 1929 में शारदा अधिनियम के तहत चौदह साल से कम उम्र की लड़की और अठ्ठारह साल से कम उम्र के लड़के के विवाह को गैर कानूनी माना गया.  बाद में विवाह की वैधानिक उम्र लड़की के लिये अठ्ठारह वर्ष और लड़के के लिये इक्कीस वर्ष कर दी गयी . नवम्बर २००७ में शारदा अधिनियम का निरसन कर बाल विवाह निषेध अधिनियम २००६ को लागू कर दिया गया है .जिसमें राज्यों द्वारा बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी की नियुक्ति की बात कही गयी . 
 
बहरहाल मामला कोर्ट में पहुंचा और 1995 में जयपुर कोर्ट ने भंवरी देवी रेप केस के सभी आरोपियों को बरी कर दिया। माननीय कोर्ट का जो निर्णय आया वह बेहद निंदनीय था। देखिये कोर्ट ने क्या कहा- 
 
गांव का प्रधान बलात्कार नहीं कर सकता !
गाँव के ‘बुजुर्ग’ बलात्कार नहीं कर सकते !
एक पुरुष अपने किसी संबंधी के सामने रेप नहीं कर सकता !
अलग-अलग जाति के पुरुष गैंग रेप में शामिल नहीं हो सकते !
अगड़ी जाति का पुरुष पिछड़ी जाति की महिला का बलात्कार नहीं कर सकता !
 
क्यूंकी  ‘पिछड़ी जाति की महिलाएं ‘अशुद्ध’ होती हैं’ !!!

इस तरह की जातिवादी और पितृसत्तात्मक सोच कोर्ट के फैसलों पर एक बड़ा सवाल पैदा करती है।  
 
अपने साथ हुई यौन हिंसा की रपट लिखवाने का दंड न सिर्फ भंवरी देवी को बल्कि उनके परिवार और रिश्तेदारों को भी  मिला। रसूखदार लोगों के सामाजिक दवाब के चलते भंवरी और उनके परिवार का हुक्का पानी बंद कर दिया गया। भंवरी के रिश्तेदारों ने भी उनका बहिष्कार कर दिया। उनके परिवार के गांव के हैंडपंप से पानी लेने और गांव की चक्की से अनाज पिसवाने पर रोक लगा दी गई । गांव के लोगों ने उनके बनाए मिट्टी के बर्तन खरीदने बंद कर दिए। और इस तरह भंवरी देवी और उनके परिवार को आर्थिक रूप से पंगु बना दिया गया . 
 
दोस्तों बलात्कार एक सोच है एक मानसिक बीमारी है जो महिलाओं को एक वस्तु मानती है जो उनके शरीर और उनकी चेतना पर पर अपना आधिपत्य चाहती है । इसलिए एक महिला से की जाने वाली शारीरिक हिंसा या उसके शरीर पर बलात अधिकार केवल शारीरिक भूख मिटाने के उद्देश्य से ही नहीं किया जाता ऐसा अपराध मनोरंजन, बल प्रयोग और अपना प्रभुत्व दिखाने या किसी बात का बदला लेने के लिए भी किया जाता है । भंवरी देवी के साथ भी ऐसा ही हुआ ।
 
भंवरी देवी तो आज तलक न्याय की बाट जोह रही हैं लेकिन उनके साहस ने वह जमीन तैयार की जिसने कार्यस्थल पर लाखों औरतों की यौन सुरक्षा सुनिश्चित की। भंवरी देवी केस के संदर्भ में कुछ महिला समूहों ने सुप्रीम कोर्ट में ‘विशाखा’ नाम से एक जनहित याचिका या पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन डाली जिसमें कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा की बात की गयी थी. इस याचिका को संज्ञान में लेते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में ‘विशाखा गाइडलाइंस’ जारी की। इन गाइडलाइंस में कार्यस्थल या वर्कप्लेस पर यौन दुर्व्यवहार के मामलों से निपटने के लिए जरूरी दिशानिर्देश जारी किए गए। ( विशाखा निर्देशों से पहले महिलाएं कार्यस्थल पर होने वाले यौन-उत्पीड़न की शिकायत आईपीसी की धारा 354 (महिलाओं के साथ होने वाली छेड़छाड़ या उत्पीड़न के मामले ) और 509 (किसी औरत के सम्मान को चोट पहुंचाने वाली बात या हरकत के तहत दर्ज करवाती थीं.)1997 से लेकर 2013 तक दफ़्तरों में विशाखा गाइडलाइन्स के आधार पर ही इन मामलों को देखा जाता रहा  2013 में विशाखा गाइडलाइंस के आधार पर ही ‘सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ वुमन एट वर्कप्लेस एक्ट’ लाया गया . 
 
दोस्तों The prohibition of child marriage act 2006 के अनुसार 18 साल से कम की लड़कीं और 21 साल से कम के लड़के का विवाह बाल विवाह माना जाएगा जो कानूनन एक अपराध है। लेकिन UNICEF की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 7% लड़कियों की शादी 15 वर्ष से पहले और 27 % लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में कर दी जाती है। लड़का हो या लड़कीं बाल विवाह दोनों के भविष्य को अंधकार में धकेल देता है। एक 9 महीने की बच्ची को इसी अंधकार से बचाने की कोशिश भंवरी देवी ने की जिसकी सजा उसे भुगतनी पड़ी . सामाजिक परंपरा,अशिक्षा, गरीबी,लैंगिक भेदभाव और लड़कियों को लेकर पिछड़ी हुई सामाजिक सोच के चलते आज विश्व भर में होने वाले बाल विवाहों में भारत अव्वल नम्बर पर है। भारत में बिहार झारखंड राजस्थान और मध्यप्रदेश में बाल विवाह के सर्वाधिक मामले सामने आते हैं। 
 
आज लगभग 27 साल बीत जाने के बाद भी भंवरी देवी के हालात और उन्हें लेकर गांववालों का नजरिया जस का तस हैं। लेकिन भंवरी देवी न्याय की उम्मीद में आज भी उसी गांव में डटीं हुई है। जयपुर जिला कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। लेकिन आज इतना लंबा वक़्त गुजर जाने के बाद भी इस पर कोई फैसला नहीं आया है। यह केस हमारी न्याय व्यवस्था के मुंह पर एक बहोत बड़ा तमाचा है क्यूंकी देरी से मिलने वाले न्याय का कोई अर्थ नहीं रह जाता ।  जग मूंदरा ने साल 2000 में भंवरी देवी केस पर बवंडर नाम से एक फिल्म भी बनाई जिसमें भंवरी की भूमिका नन्दिता दास ने निभाई है। यह फिल्म यूट्यूब पर उपलब्ध है । भंवरी देवी जैसी औरतें हमारा गर्व हैं और हमें नाज है उन पर। भंवरी देवी के इस अनूठे साहस को बार बार सलाम।
 
दोस्तों आपने हमारी इस छोटी सी कोशिश को अपना कीमती वक्त दिया उसके लिये आपका बहोत बहोत आभार  .आपके सुझावों और प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा . Justice delayed is justice denied की अगली क़िस्त में फिर मिलेंगे . नमस्कार . chandrakanta