Popins With Love पॉपिंस विद लव चंद्रकांता

Popins With Love – एक प्यारी सी प्रेम कहानी

जेठ का महीना था दिल्ली की आबो-हवा भट्टी की तरह सुलग रही थी । ऐसा लगता था दिल्ली की पीठ पर सूरज पूरी फुर्सत से ठहर गया हो। तपती हुई जमीन से लगभग चालीस फ़ीट की ऊंचाई पर मेट्रो भाग रही थी जैसे आम आदमी दिन रात भागता है । मेट्रो दिल्ली की लाइफलाइन है और सेंट्रल वेस्ट दिल्ली के राजेंद्र प्लेस मेट्रो स्टेशन के पास इसका दिल जोरों से धड़क रहा था । 
 
मेट्रो स्टेशन से उतरते ही सीधे हाथ को मुड़ने पर ठीक एक सौ पैंतीस कदम चलने के बाद उल्टी तरफ एक गली आती है। गली के नुक्कड़ पर ही पंडितजी कॉफ़ी कार्नर है जिसकी छत पर आपको  बाबा आदम के जमाने का एक टूटा हुआ साइन बोर्ड बिजली के तारों के बीच बड़ी बेफिक्री से झूलता हुआ मिलेगा । पंडितजी की दुकान के आगे किसी नवविवाहिता की तरह सजा संवरा कैटरीना ब्यूटी पार्लर है लेकिन यह हमारी मंजिल नहीं है। हमारी मंजिल इससे दो फलांग आगे हमारा इंतजार कर रही है जिसका नाम है दिल्ली पेंटिंग एंड आर्ट इंस्टिट्यूट – वी क्राफ्ट युअर ड्रीम्ज। 
 
यह इंस्टीट्यूट न केवल आपको चटकीले सपने दिखाता है बल्कि उन पर खूबसूरत रंगों की पुताई भी करता है। ये विज्ञापन की दुनिया इंसान से क्या न करवा दे खैर ! आइये इसके काले रंग के गेट से भीतर झाँककर देखते हैं। लेकिन यह क्या ! गेट के उस पार तो नीचे की तरफ जाने वाली सीढियाँ बनी हुई हैं जो बेसमेंट तक जाती हैं। अब सपनों तक पहुँचना इतना आसान थोड़ा ही है चलिए आगे बढ़ते हैं।
 
सुबह के 9.22 बज रहे हैं बेसमेंट में फाइन आर्ट की क्लास बस शुरू ही होने वाली है । गुलाबी टी-शर्ट और पीली ट्राउजर पहने हुए एक लड़की कागज पर पैंसिल को गोल गोल घिसे जा रही है । एक बार वह सुईं की दिशा में गोला खींचती है तो दूसरी बार सुईं के उलट दिशा में। लड़की थोड़ा सा ओवरवेट है लेकिन दिखने में एकदम चुस्त लग रही है । कमान की तरह तनी हुई भौहें और बॉब कट हेयरस्टाइल उस पर खूब फब रहा है । ब्रिटेन की राजकुमारी डायना याद है आपको ! बस कुछ ऐसी ही सपनीली, बिंदास और बेखौफ सी पाखी को आज पूरे दो महीने और सात दिन हो चुके थे पेंटिंग क्लास में दाखिला लिए हुए । उसके पास ही बैठा अनवर  कनखियों से उसकी इस हलचल को नोटिस कर रहा था उसने मुँह में पेंसिल दबाई हुई थी और दांतों से उसे घिसे जा रहा था । 
‘पेंसिल टूट जाएगी !’ 
पाखी ने शरारत भरे लहजे में अनवर की तरफ आँख उठाकर कहा । उसके ये तीन शब्द अनवर को शर्म से पानी पानी कर देने के लिए काफी थे। कोई नदी या घाट होता तो अब तक उसमें समाधि ले ली होती लेकिन क्लास छोड़कर कहाँ जाता ! सो नजर बचाने की असफल कोशिश करते हुए वह जस का तस ही बैठा रहा । ठीक इसी सेकंड क्लास में मिस शलिनी की एंट्री हुई तो बाल-बाल बचा बेचारा। 
 
जीवन के अट्ठाईस बसंत देख चुकी लंबी, छरहरी और मैगी की तरह घुँघराले बालों वाली मिस शलिनी नटराजन कोचिंग में फ़ाईन आर्ट्स पढ़ाती हैं । उनके आते ही भावनाओं का कंपन थोड़ा कम हुआ और क्लास की सामूहिक आँखें उन्हीं पर टिक गईं। इस पसीनातोड़ गर्मी में घुटन से भरे हुए बेसमेंट में उनका आना ऐसा था जैसे सुबह सुबह किसी ने टायलेट की बंद खिड़कियाँ खोलकर आडोनिल का गुलाब स्प्रे कर दिया हो ।  
‘हाय गाइज , हाउ आर यू ? शो मी योर होमवर्क फास्ट …यू नो आई एम आलरेडी लेट बाई फाइव मिनट्स। पाखी तुम दिखाओ ! कल क्या प्रैक्टिस की तुमने ।’  
मिस शलिनी से अचानक अपना नाम सुनकर पाखी सकपका गयी । 
 
‘मैम मैं … वो … ‘
‘क्या मैं …  क्या वो … मतलब आज भी तुमने प्रैक्टिस नहीं की ! देखो इस तरह तुम कैसे सीख पाओगी । यहाँ टाइम पास करने आती हो क्या ? सुनो !  अगर क्लास के बाद तुम्हारे पास वक्त हो तो राजेश से कुछ टिप्स ले लेना । अब एडमिशन लिया है तो कम से कम बेसिक्स तो सीख लो ।’ 
पाखी एकदम अलर्ट होकर सुन रही थी । 
‘श्योर मैम । 
 
इतना कहकर पाखी पीछे की तरफ मुड़ी और उसने लास्ट डेस्क पर बैठे हुए राजेश की तरफ देखकर कहा ।  
‘राजेश सर आज क्लास के बाद आप मुझे आधे घंटे का टाइम दे देंगे क्या ?’ 
औसत कद-काठी, गहरा रंग, माथे तक ठहरे हुए काले सफ़ेद बाल और चेहरे पर भरी हुई दाढ़ी रखने वाला राजेश उत्तराखंड से था। पाँच साल का रहा होगा जब उसके पिताजी मियादी बुखार से चल बसे, माँ म्युनिसिपल अस्पताल में नर्स हैं बस कुल जमा इतना ही परिवार है उसका । लगभग साढ़े तीन साल पहले उसने यहां पेंटिंग सीखने की शुरुआत की थी। वह कोचिंग इंस्टीट्यूट के लिए आर्ट वर्क करता था और जरूरत होने पर नए बच्चों को सिखाता भी था। पैसे के नाम पर तो उसे ठेंगा मिलता था लेकिन उसका रहने, खाने और पेंटिंग सीखने का जुगाड़ जरूर हो जाता था; फिलहाल इतना ही काफी था उसके लिए । राजेश को कभी किसी ने बेफालतू की बात करते हुए नहीं सुना होगा । वह बहुत कम बोलता था लेकिन जब बोलता था तो लगता था जैसे कोई बड़ा अनुभवी व्यक्ति बात कर रहा हो । इसी बात की इज़्ज़त करते हुए पाखी उसे राजेश सर कहकर बुलाती थी हालांकि उम्र का कोई बहुत अधिक अंतर नहीं था उन दोनों में। 
 
राजेश पाखी की बात का जवाब दे पाता उससे पहले ही क्लास में एक और आवाज़ गूंज पड़ी ।  
‘अरे ! डोंट वरी पाखी जी । राजेश तो आजकल एक बड़ी सी पेंटिंग बनाने में व्यस्त है आप कहेंगी तो क्लास के बाद मैं आपकी हेल्प कर दूंगा बस पंद्रह मिनट लगेंगे। आप रीना से मालूम कर सकती हैं थ्री डी में मेरा हाथ बहुत साफ है और स्क्रिबलिंग वह तो मेरे बाएँ हाथ का काम है। क्यूँ रीना ।’ 
राहुल ने अपनी बात भी कह दी और रीना को आँख मारते हुए चुप रहने का इशारा भी कर दिया । 
 
स्क्रिबलिंग ? यह एक तरह की फ्री हैंड आर्ट है यह कुछ ऐसे है जैसे छोटे बच्चे कॉपी में गुच्चड़-मुच्चड़ कर दिया करते हैं । लेकिन राहुल ! यह कौन सी बला थी ?
काले रंग का मोटा सा प्रोफेसर ब्रांड चश्मा पहनने वाला राहुल स्वभाव से बहोत हंसमुख लेकिन अव्वल दर्जे का ख़ुराफ़ाती था। राहुल को उसके भारी-भरकम शरीर और गोलगप्पे जैसे फूले हुए गालों की वजह से क्लास में सब गप्पू कहकर बुलाते थे । क्लास की ही एक प्यारी सी लड़की रीना उसे खूब पसंद करती थी । लेकिन गप्पू पाखी को पसंद करता था । ठीक ऐसे जैसे कोई छिछोरा लड़का मोहल्ले की सबसे सुंदर लड़की का पीछा करने में मशक्कत करता है वैसे ही गप्पू पाखी का पीछा किया करता था। क्लास के बाद जब पाखी घर के लिए निकलती गप्पू बहाने से उसके साथ हो लेता । 
 
बहरहाल किसी तरह क्लास खत्म हुई । अनवर अपना बैग पैक कर रहा था । क्लास से निकलते हुए शरारत की नीयत से पाखी ने उससे पूछा –
‘अनवर सुनो, तुम्हारा मुँह एक तरफ से हमेशा थोड़ा फूला हुआ सा क्यों रहता है ? गुटका खाते हो क्या ?’
उसकी बात की प्रतिक्रिया में अनवर ने एक खराब सा जेस्चर देते हुए कहा 
‘नहीं’   
‘अच्छा सॉरी … तो पॉपिंस खाते हो क्या ? 
ये तुम्हारा गाल क्यों फूला रहता है एक तरफ से?
‘नहीं, बचपन मे फोड़ा निकल आया था ऑपरेशन करवाना पड़ा तभी से मुँह ऐसा है।
ओह्ह ! आई एम सॉरी।’ पाखी ने चिंता जताते हुए कहा।
जानते हो तुम्हारा गाल देखकर मुझे हमेशा पॉपिंस की याद आती है। मुझे पॉपिंस बहुत पसंद है पार्ले जी वाली । कमबख़्त अब तो मिलती भी बहुत मुश्किल से हैं।  बचपन में जब मैं रूठ जाती थी तो मेरे पापा मुझे ढेर सारी पॉपिंस लाकर देते थे। सुनो तुम्हें जब कभी मुझसे कोई बात मनवानी हो तो मेरे लिए ढेर सारी पॉपिंस ले आना। तुम्हारा काम फट से हो जाएगा , समझे मिस्टर कूल !
और हाँ पेंसिल मत चबाया करो सेहत के लिए हानिकारक होता है तुम नहीं जानते लेड होता है उसमें । 
चलो सी यू। बाय शाय। टाटा वाटा ।’
 
इतना कहकर पाखी मेट्रो पकड़ने के लिए निकल पड़ी। पंडित जी की दुकान पर उसका इंतजार करता राहुल एक बार फिर उसके साथ हो लिया। वैसे राहुल को जाना तो रेड लाईन पर होता था लेकिन वह पकड़ता यलो लाईन था ताकि उसे पाखी के सानिध्य का अनमोल सुख मिल सके। पाखी जैसे हसीन साथ के लिए दिल्ली मेट्रो से बेहतर हमसफर भला और कौन हो सकता था ! आखिर मेट्रो ने हजारो लाखों गुल खिलाये हैं प्यार में। दिल्ली में आशिक़ी की सबसे तीखी गंध अगर आपको महसूस करनी हो तो दिल्ली मेट्रो से बेहतर विकल्प हो ही नहीं सकता । 
मेट्रो अपने सुहाने सफर पर निकल चुकी थी। लेकिन क्या यह सफर सच में सुहाना रहने वाला था ? शायद नहीं, राहुल के क्लास वाले बर्ताव से चिढ़ी हुई पाखी ने आज उसे टोक ही दिया ।  
‘रीना बता रही थी कि तुम शाहदरा की तरफ कहीं रहते हो ! फिर इस मेट्रो में क्या कर रहे हो ! कहीं मेरा पीछा तो नहीं करते तुम ! देखो ज्यादा दिल्लगी की जरूरत नहीं है … 
‘अरे नहीं पाखी जी ऐसा कुछ नहीं है क्या मैं आपको इस तरह का लड़का लगता हूं !! केयर करता हूं आपकी बस इसीलिए आपके पीछे आ जाता हूं । अगर आपको बुरा लगता है तो आई एम सॉरी । लेकिन प्लीज मुझे अपने साथ यहां तक आने के लिए मना मत कीजिएगा । आप कहेंगी तो मैं चुप रहूंगा… एक शब्द भी नहीं बोलूंगा सच्ची मुच्ची … ‘ 
राहुल ने अपने गले को चुटकी भर पकड़ते हुए कसम खाने वाले अंदाज में कहा। 
 
पाखी ने गहरी सांस ली।
 ‘… हम्म …  देखो किसी भुलावे में मत रहना तुम । मेरे क्लासमेट हो सबको गुदगुदाते रहते हो बस इससे ज्यादा मेरा कोई इंटरेस्ट नहीं है तुममें । साफ कहना सुखी रहना इसलिए मिस्टर गप्पू कोई गलतफहमी मत पालना। तुम लड़कों का कोई भरोसा नहीं, कल को सबसे कहते फिरोगे कि मैंने ही तुम्हें लाइन दी थी। समझ गए ? या और समझाऊं ?? ‘ 
पाखी ने उसे लगभग वार्निंग देते हुए कहा । 
पाखी एकदम बिंदास किस्म कि लड़की थी। गजब का दोस्ताना व्यवहार था उसका। मन में किसी के लिए कोई मैल नहीं रखती। बेफालतू का तो नहीं बोलती थी लेकिन जब बोलना शुरू करती थी तो अच्छे अच्छों कि छुट्टी हो जाती थी उसके सामने। इसलिए राहुल से ऐसी बात कहते हुए उसे जरा भी हिचक महसूस नहीं हुई। पाखी का ऐसा मूड भांपकर राहुल ने बात बदल दी । 
 
‘पाखी जी आपको मालूम है मैं जल्दी ही अपना एनिमेशन सेंटर खोलने वाला हूं आप काम करेंगी मेरे साथ ?  मेरा मतलब है अगर आपको ठीक लगे तो .. ठीक नहीं लगे तो मत कीजिएगा । 
ऐसा मान लीजिए कि मैं आपको जॉब ऑफर कर रहा हूं।  बॉस या एम्पलाई बनकर नहीं पार्टनर बन कर काम करेंगे अपन । बोलिए मंजूर है ?
देखिए मैंने अभी तक यह बात किसी को नहीं बताई … सिर्फ आपको बता रहा हूं … ‘
‘नहीं, मेरा एनीमेशन या उससे रिलेटेड किसी जॉब में कोई इंटरेस्ट नहीं है । तुमने तो देखा है अक्सर मैं अपना होमवर्क भी नहीं करती।  यह ड्राइंग-पेंटिंग या क्राफ्ट मेरे बचपन के शौक रहे हैं पढ़ाई के चलते कभी इन्हें संवारने का वक़्त ही नहीं मिला। बस थोड़ा हाथ साफ करने चली आती हूँ यहाँ ।  मैं इसे करियर की तरह नहीं देखती । पेंटिंग करना मुझे सुकून देता है …. स्प्रिचुअल सेटिस्फेक्शन। स्प्रीचुअलिटी तो समझते हो ना ?’  
पाखी ने ऐसा राहुल को छेड़ने के मकसद से कहा। आखिर समझदार को इशारा काफी है।  फिर बेइज्जती सहने की एक सीमा भी होती है वह सीमा कब छूटने वाली है यह हमें मालूम होना चाहिए। ऐसे में बस पतली गली से निकल जाने में ही भलाई है। गनीमत है राहुल को यह सीमा मालूम थी। वरना आज तो बगैर बारात के उसका बैंड ही बज गया था। 
 
‘पाखी जी मैं चलता हूं आपका स्टेशन भी आ गया है , फिर मिलते हैं … अच्छा सुनिए ! आपको मालूम है वह कॉर्नर वाले पंडित जी हैं ना बहुत बढ़िया कॉफी बनाते हैं । सिर्फ उनकी कॉफी पीने के लिए मैं रोज आधा घंटा पहले कोचिंग पहुंच जाता हूं। देखिए आपके पास समय हो तो कभी काफी पीते हैं साथ में । कॉफी मेरी तरफ से रहेगी। ‘
मेट्रो का दरवाजा खुल चुका था । पाखी ने बाहर निकलने के लिए अपना कदम बढ़ाया । ‘यू आर इंपासिबल’ इतना बड़बड़ा कर उसने राहुल की बाकी बात को अनसुना कर दिया और सीधे सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई। 
 
 
2
क्लास अभी खत्म ही हुई थी सब अपना सामान पैक कर रहे थे कि तभी पाखी ने महसूस किया उसकी बगल में बैठे हुए अनवर को शायद कुछ तकलीफ़ हो रही है। उसकी पेशानी पर पसीने की खूब सारी बूंदे जमा हो गई थी। पाखी ने अपने बैग से पानी की बोतल निकालकर उसकी तरफ बढ़ा दी और सटाक से पूछा – 
‘चॉकलेट खाओगे ?’ लेकिन अनवर ने ना में सिर हिलाया। 
‘अरे शर्माओ नहीं, ले लो मेरे पास एक और है । तुम्हें थोड़ा ठीक लगेगा और एनर्जी आ जाएगी। गर्मी बहोत है ना शायद इसीलिए …. ‘ 
‘मैं रोजे से हूं, अभी तो पानी भी नहीं पी सकता।’ 
पानी की बोतल के लिए इंकार करते हुए अनवर का जवाब आया ।  
 
‘रोजे से हो ! तुम सच में रोजे रखते हो ?’ पाखी ने बहोत हैरानी जाहिर करते हुए पूछा यह पूछते वक़्त उसकी आंखों की पुतलियां विस्मय से फैल गयीं ।
‘कमाल है मुझे नहीं मालूम था आजकल की पीढ़ी भी धर्म में इतनी दिलचस्पी लेती है । यार मुझे तो याद भी नहीं कि आखिरी बार मैं कब मंदिर गई थी। हां अक्सर लोटस टेंपल जाती हूं जहां जाकर बहुत सुकून मिलता है । खैर ! तुम नहीं समझोगे। 
अच्छा बाहर की फ्रेश हवा खानी है तो चलो, मैं तुम्हारा बैग पकड़ लेती हूँ ! तुम प्लीज़ घबराओ मत थोड़ी देर में अच्छा लगने लगेगा तुम्हें ।’
अनवर भी पाखी की बातें सुनकर उतना की हैरान था जितना पाखी उसके रोजे वाली बात से थी। थोड़ी उखड़ी हुई आवाज में उसने कहा –
‘शुक्रिया आपका। लेकिन अभी ठीक हूँ मैं। और मेरा घर तो पास ही में है फ़िक्र की कोई बात नहीं’
तो घर तक छोड़ दूं तुम्हें ?
नहीं मैं चला जाऊंगा। आप परेशान न हों।
ठीक है। अपना ख्याल रखो। बाय शाय । सी यू टाटा वाटा और …. हैप्पी रोजा । ‘
 
इतना कहकर वह मुस्कुराते हुए वहां से निकली और मेट्रो स्टेशन की तरफ बढ़ गयी। बात बात पर मुस्कुराना पाखी की आदत में था लेकिन आज अनवर से विदा लेते वक़्त उसकी मुस्कुराहट में वह तौर नहीं था। उधर अनवर के मन में पाखी के लिए एक साफ्ट कॉर्नर तो था लेकिन आज उसे पाखी का इस तरह बात करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा । आखिर धर्म किसी का व्यक्तिगत मसला है और किसी को कोई हक नहीं बनता की वह उसमें अपनी टाँग अड़ाए।
अनवर हमेशा चेहरे पर हल्की सी दाढ़ी रखता था उसका मुँह दायीं तरफ से थोड़ा सा टेढ़ा था। ऐसे लगता था जैसे उसके मुंह में एक तरफ टॉफी या चुप्पा रखा हुआ हो । वह हँसते हुए मुंह पर हाथ रख लेता था । बहुत खास तरीके की हंसी थी उसकी वह हंसता … रुकता फिर हंसता और फिर रुकता … उसकी हँसी खट खट खट चलती थी मानो टाइपराइटर पर कोई खटाक खटाक उंगलियाँ फेर रहा हो। एक और खास आदत थी अनवर की वह बीच की मांग निकालता था और हर दस मिनट के अंतराल पर अपने दोनों हाथ माथे तक ले जाकर अपनी लटों को पीछे की तरफ धकेल देता । जैसे लड़कियाँ अपने सामने की तरफ के छोटे बालों को संवारती हैं । उसकी इन आदतों को लेकर पाखी अक्सर उसे छेड़ती थी। 
 
 
3
आज शुक्रवार का दिन था । पाखी की पूरी कोशिश रहती थी की इस दिन पेंटिंग क्लास मिस न हो क्योंकि वीकेंड पर छुट्टी रहती थी। हमेशा की तरह आज भी वह अनवर के पास वाले डेस्क पर बैठी थी। तभी उसका फोन बज उठा। पाखी ने फोन उठाया। 
‘यस डैड , बस अभी क्लास पहुंची हूँ। हाँ मुझे याद है घर आते वक्त पेस्ट्रीज लेकर आनी है आपका लाडला जो आ रहा है आज बंगलौर से। और कुछ…
नहीं बेटा बस तू इतना कर दे यही बहोत है…चल फोन रखता हूँ’ उधर से आवाज़ आई।
पाखी के पिता चाणक्य पुरी थाने में एस. एच. ओ. थे और माँ प्राइमरी स्कूल की टीचर थीं। उसका एक भाई था जो बंगलौर में किसी साफ्टवेयर कम्पनी में ट्रेनी था। क्लास शुरू होने में अभी कुछ देर बाकी थी। बाहर रेडियो पर एक पुराना गाना बज रहा था जिसकी लड़खड़ाती हुई आवाज़ भीतर भी आ रही थी … ‘तुमने कभी किसी से प्यार किया है प्यार भरा दिल किसी को दिया है’… गाना सुनकर पाखी भी साथ में गुनगुनाने लगी। फिर पता नहीं उसे क्या सूझा उसने अनवर की तरफ देखकर पूछा –
‘तुमने कभी किसी से प्यार किया है ? प्यार भरा दिल किसी को दिया है ??’ 
और इतना कहकर वह मुस्कुरा दी। पाखी ने यह बात बेहद सहजता से और गाने के असर में कही थी लेकिन उसकी इस बात ने अनवर को असहज कर दिया। आखिर पूरे साढ़े तीन मिनट बाद उसका मौन टूटा ।
 
‘हमारे यहाँ दूसरों में शादी नहीं की जाती। और शादी अम्मी बाबा तय करेंगे ।’ 
ऐसा लगता था जैसे अनवर किसी बात से घबरा गया हो। पाखी को उसका यह जवाब बड़ा ही अटपटा सा लगा। उसे अनवर से इस तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद बिलकुल भी नहीं थी । इसी असमंजस में वह बोली ।  
‘शादी ! लेकिन शादी जैसी बात तो मैंने की ही नहीं… !  तुम कभी नार्मल भी होते हो या नहीं ! अपने बनाए हुए खोल से बाहर निकालो। दम नहीं घुटता तुम्हारा !!!’
दोनों में शायद कुछ और संवाद होता लेकिन तभी क्लास में मिस शलिनी आ गयीं और दोनों तरफ की बात अधूरी ही रह गई। 
 
 
4
वीकेंड के बाद आज क्लास का पहला दिन था। हमेशा बकबक करते रहने वाली पाखी ने आज होठों पर चुप्पी ओढ़ रखी थी। अनवर उससे बात करना चाहता था वह एक कदम थोड़ी हिम्मत करता उसका अंतर्मुखी व्यवहार उसे दो कदम पीछे खींच लेता । कुछ कहने और नहीं कह सकने की कशमकश में अनवर की आवाज़ उसके गले में ही सिकुड़ कर रह गयी। आज सब कुछ अजीब सा था पाखी ने अपनी तरफ से भी उससे कोई बात नहीं की , हलो तक नहीं बोला । और सबसे बड़े कमाल की बात तो यह थी कि आज वह अपना होमवर्क भी करके लाई थी। मिस शालिनी के क्लास में आते ही पाखी ने बगैर कहे अपनी फाइल उसकी तरफ बढ़ा दी। मिस शालिनी ने प्रोजेक्ट फाइल के दो चार पन्ने उल्टे-पलटे और खुश हो गयी।  
 
‘वेरी गुड फाइनली तुमने कुछ काम किया । गुड जॉब … कीप इट अप । वेल, आज हम पेड़ बनाना सीखेंगे ।  हाउ टू ड्रॉ ट्री ऑफ डिफरेंट शेप्स। आप सभी अपनी टू एचबी पेंसिल निकाल लीजिये।’ 
यह कहकर मिस शलिनी ने रीना के हाथ से उसकी कॉपी ली और फटाफट अलग अलग किस्म के कुछ पेड़ बना डाले । अनवर अब भी परेशान था उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर वह किस तरह पाखी से बात करें । इधर पाखी की नजर मिस शालिनी के हाथ पर थी और उधर अनवर की नजर पाखी पर । क्लास खत्म  होने के बाद आखिरकार पाखी अनवर के पास आई और बोली ।  
 
‘तुम्हारी होमवर्क वाली फाइल मिलेगी ! कल वापस कर दूंगी । ‘ 
अनवर ने बगैर एक भी पल गंवाए अपने बैग से फाइल निकाली और चुपचाप पाखी की तरफ बढ़ा दी । 
‘थेंक यू ।’ 
पाखी ने धीमे से कहा । दोनों की नजरें कोई बीस सेकंड तक टिकी होंगी एक दूसरे पर। इस दौरान उन्होंने एक दूसरे से कुछ कहा हो या कोई शिकायत की हो यह तो वो दोनों ही बता सकते थे।
 
 
5
खिला हुआ आसमान था हल्की गुनगुनी से कुछ तेज धूप थी । बादल और सूरज लुका-छिपी खेलने में मशगूल थे। मई जून के उबलते हुए 47 डिग्री तापमान के बीच ऐसा मौसम बस कुदरत की नेमत ही समझो। गर्मी और बेचैनी इतनी अधिक बढ़ गयी थी कि आसमान शायद उसका बोझ नहीं उठा पा रहा था। कुछ तो अलग था आज के मौसम में। पंडित जी कॉफी कॉर्नर पर कुछ स्टूडेंट्स की भीड़ खड़ी थी । राहुल के एक हाथ में फोन था और दूसरे में कॉफी। कॉफी का सिप लेते हुए उसने देखा कि सामने से पाखी चली आ रही है । उसकी तो लॉटरी लग गई थी। उसने अपनी पूरी कॉफी एक घूंट में खत्म की और इस चक्कर में अपना मुंह भी जला लिया । 
‘अरे पाखी जी आप .. आज इतना जल्दी अभी से .. मेरा मतलब .. कॉफी पियेंगी आप ? 
‘हां … ‘
पाखी हाँ कर देगी यह तो राहुल ने कभी सोचा ही नहीं था । पाखी की बात सुनते ही वह फूलकर कुप्पा हो गया उसके मोटे मोटे गालों में अब किसी भी वक़्त विस्फोट हो सकता था । उसने फटाफट दो कॉफी बनाने का ऑर्डर दिया । पंडित जी को अहसास था कि राहुल पाखी को पसंद करता है उन्होंने अक्सर राहुल को पाखी के पीछे पीछे मेट्रो स्टेशन तक जाते हुए ताड़ा था। राहुल तो खुश था ही पंडित जी भी हिचकोले ले रहे थे। खुशी इतनी की उन्होंने कोई जोरदार पुरबिया तान छेड़ दी और आस-पास का माहौल कुछ देर के लिए ही सही संगीतमय हो गया । 
हल्की फुल्की बातचीत के दौरान राहुल ने उसे बताया कि वह दो हफ्ते के किसी एनिमेशन कोर्स के लिए मुंबई जा रहा है। इस पूरी बातचीत में केवल एक बात खास थी कि आज पाखी ने राहुल के कॉफी पीने के ऑफर को ठुकराया नहीं था । 
 
‘पाखी जी आज क्लास के बाद मैं आपके साथ नहीं चल सकूंगा। वापसी में मुझे बहोत से जरूरी काम निपटाने हैं । वो परसों ही मुंबई के लिए निकलना है न…’
‘सच्ची मुच्ची !’ 
पाखी ने राहुल के ही स्टाइल में अपने गले को चुटकी भर पकड़ते हुए कहा। और दोनों एकसाथ हंस दिए।
कॉफी खत्म हुई और दोनों क्लास की तरफ बढ़ गए इधर वो दोनों क्लास में दाखिल हुए और उधर अनवर भी आ गया। उसने अपना बैग रखा अपनी फाईल व रंग निकाले और आदतन अपने बालों पर हाथ फेरने लगा। पाखी भी अनवर के पास वाली डेस्क पर आकार बैठ गई और उसकी होमवर्क की फाइल लौटाते हुए कहा – 
‘थैंक यू, कैसे हो तुम ? 
‘अच्छा हूं ,आप कैसी हैं ?’  अनवर ने धीमे से कहा।
‘आई टू एम गुड, काफी अच्छी ड्राइंग है तुम्हारी । खूबसूरत पेड़ बनाते हो उम्मीद है जब इन पेड़ों में रंग भरोगे तब भी ये इतने ही खूबसूरत लगेंगे । गुड लक । ‘
 
6
क्लास के बाद अनवर घर वापस आ चुका था । वह शाम को कुछ घंटे बच्चों को ट्यूशन दिया करता था । उसे बच्चों के साथ वक़्त बिताना अच्छा लगता था । उसके पिता ठेकेदार थे और माँ होममेकर। उसकी दो बहनें थीं जिनकी शादी हो चुकी थी। जैसे ही वह ट्यूशन खत्म कर फ्री हुआ अम्मी ने उसे रोजा खोलने के लिए आवाज लगाई। इफ़्तार पूरा कर वह अपने कमरे में गया और लैंप लाइट जलाकर बैठ गया । आज क्लास में उसने बादल बनाने सीखे थे । अनवर ने अपनी होमवर्क की फाइल खोली उसे महसूस हुआ जैसे फाइल से निकलकर कुछ नीचे गिरा है । उसने देखा की एक सफेद रंग का कागज़ नीचे गिरा हुआ था । उसने कागज़ उठाया और खोलकर देखा तो उसमें कुछ लिखा हुआ था । 
‘शायद वो पहला कदम था तुम्हारी तरफ । आज दूसरा ही दिन था । मैं क्लास में आई उस दिन पीछे की एक सीट को छोड़कर बाकी सब भर चुकी थीं। मालूम नहीं तुमने मेरे चेहरे पर पीछे बैठने की शिकन का वह भाव कब और कैसे पढ़ लिया ! तुमने मुझे अपनी सीट पर बैठने को कहा। मैंने भी इंकार नहीं किया और तुम्हारी सीट चुरा ली । उसके बाद अक्सर मैं तुम्हारे पास वाली सीट पर ही बैठती । तुमसे बात करना आसान था मैंने अक्सर पढ़ा था तुम्हारा वह मन जिसकी दिलचस्पी मेरे शरीर की गोलाई नापने में बिल्कुल नहीं थी …
आज तुम्हारी फाईल को छूते हुए मालूम नहीं क्यूँ मुझे ऐसा लगा जैसे मैं उन काले सफेद पन्नों को नहीं तुम्हें छू रही हूँ। तुम सोच सकते हो कि मुझे ऐसा क्यूँ लगा ! लेकिन मेरे पास इसका कोई सीधा जवाब नहीं है । अपने व्यवहार से तुमने बहोत बार मेरे मन को छुआ है । मुझे तुमसे प्यार नहीं है लेकिन तुम्हारी सादगी और तुम्हारा मेरी फिक्र करना मुझे हमेशा तुम्हारी तरफ आकर्षित करता है ।
 
उस दिन तुम्हारा रोजा था और मुझे धर्म को लेकर तुमसे इस तरह से बात नहीं करनी चाहिए थी। मुझे तुम्हारी भावनाओं का सम्मान करना चाहिए था । लेकिन तुम्हें भी प्यार वाली उस बात पर इस तरह की प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए थी। तुम शादी और प्यार के बीच मजहब को ले आए सच कहूँ !  मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा।
एक आम आदमी को जीने के लिए धर्म की जरूरत पड़ती है लेकिन कोई भी धर्म या कोई भी मजहब इंसान से ऊपर तो नहीं हो सकता ! फिर प्यार कबसे हिन्दू या मुस्लिम होने लगा ! ये सब तो मज़हब के चोचलें हैं। प्यार तो अपने भीतर हर बाँट को समाहित कर लेता है तो मज़हब की क्या हैसियत ! जिस दिन तुम प्यार के सही मायने समझ जाओगे उस दिन मज़हब तुम्हारे सामने होगा लेकिन वह तुम्हें दिखाई नहीं देगा। 
 
हो सकता है तुमसे प्यार करने की कोई एक संभावना होती। लेकिन मैंने महसूस किया है कि जीवन और प्यार को लेकर हमारे फ़लसफे बहोत अलग हैं। 
कभी कभी अपने ख्यालों के भीतर धंसकर मैं सोचती हूं अगर मैंने तुमसे प्यार किया होता तो मैं उनमांदी नदी की तरह तुम्हारे भीतर उतर जाना चाहती । मैं आटे में नमक की तरह तुममें गुंथ जाना चाहती। मैं चाहती कि तुम दुनिया के सबसे कोमल फूल की तरह मुझे सहेज कर रखते । मेरे बालों में अपनी उंगलियां उलझाकर पूरी फुर्सत से उन्हें सुलझाते। हम घंटों किसी खाली पार्क के बैंच पर या समुद्र के पास किसी निर्जन टीले पर बिताते। तुम मुझे छेड़ते …मैं छिड़ जाती.. मैं तुम पर नाराज़ होती और फिर तुम मुझे खींचकर अपनी बाहों में भर लेते। मैं तुम्हारी परछाई को अपनी पलकों पर देख सकती और उसका काजल बनाकर तुम्हें अपनी आंखों में भर लेती। 
 
काँटो से पसरी हुई किसी अभागी जमीन पर हम साथ मिलकर फूल उगाते । सूखे पड़े हुए उदास पत्तों पर हम मिलकर अपनी चाहतें लिखते। 
 
जानते हो कल रात मैंने एक सपना देखा – बसंत के हरे रंग में लिपटी हुई मैं तुम्हारी तरफ दौड़ी चली आ रही हूँ .. कहीं से ट्रेन के छूटने की आवाज़ आ रही थी … मैं पीछे पलटी और वापस तुम्हारी तरफ देखा .. तुम्हारे दोनों हाथ इबादत के लिए उठे हुए थे । ट्रेन की धकड़-धकड़ सुनकर मैं फिर पलटी और फिर तुम्हारी तरफ देखा । इस बार तुम्हारे हाथों में हल्दी थी। मैं कुछ समझ पाती इससे पहले तुम आगे बढ़े और मेरा चेहरा हल्दी से सने अपने हाथों में भर लिया…. ।
फिर मैं जाग गयी, लेकिन तुम वहां नहीं थे ।
….. ….. ……… ……. 
कभी किसी एक पल के लिए मुझे लगता है कि तुम्हारे मन में मेरे लिए एक साफ्ट कॉर्नर है लेकिन तुम कह नहीं पाते । मैं पूरी तरह से गलत भी हो सकती हूँ  लेकिन मैं ये भी जानती हूँ ‘कि प्यार प्यार कि गंध पा ही लेता है ।’
पाखी । 
7
आज भी रोजाना कि तरह क्लास हुई । मिस शलिनी आयीं और रंगों का सबक सिखाकर चली गईं। पाखी अपना सामान पैक कर रही थी और अनवर इत्मीनान से बैठा उसे देख रहा था। क्लास से सब जा चुके थे सिवा उन दोनों के । अनवर ने पाखी को लाल रिबन में लिपटा हुआ एक बॉक्स देते हुए कहा –
 
‘ये आपके लिए है ।
क्या है इसमें ? पाखी ने पूछा।
खोल कर देखिए … 
तुम ही बता देते … ‘
 
इतना कहकर पाखी रिबन हटाकर बॉक्स को खोलने लगी।बॉक्स में  उसकी फेवरेट पार्ले जी पॉपिंस थी । पाखी के लिए इससे बड़ा सरप्राइज़ और क्या हो सकता था । पॉपिंस देखकर वह खिलखिला उठी ।  जब हमें कोई उम्मीद न हो और कोई खूबसूरत सरप्राइज़ मिल जाए तो हमारी खुशी की कोई सीमा नहीं रह जाती। पाखी बगैर कुछ सोचे समझे अनवर के गले लग गई। अब यह खुशी पॉपिंस मिलने की थी या इस बात की कि यह सरप्राइज़ उसे अनवर से मिला था यह तो केवल वही बता सकती थी । 
इस बात का एहसास होने पर कि उसने कुछ अजीब हरकत कर दी है उसने अपनी बाहों की गिरह खोली और तुरंत थोड़ा पीछे की तरफ हट गयी। उसने ऐसे जताया जैसे सब कुछ बहोत नार्मल हुआ हो ।  
 
‘थैंक यू सो मच, मुझे तो लगा अब तुम कभी मुझसे बात नहीं करोगे। और तुम्हें याद रही वो पॉपिंस वाली बात ! चलो, अब बता भी दो कि मुझसे कौन सी बात मनवानी है तुम्हें। जहां तक मुझे लगता है तुम्हारे काम आ सकने लायक मेरे पास कुछ नहीं है …  फिर भी बोलो क्या चाहिए मुझसे !’
‘एक कप कॉफी ….’ अनवर ने आज पहली बार इतना जल्दी से जवाब दिया । 
‘कॉफी ! लेकिन रमज़ान तो अभी दो रोज बाकी है  … वो अखबार में पढ़ा था मैंने … । सुनो ! तुम ठीक तो हो ?’ 
पाखी ने आश्चर्य से पूछा । 
 
‘रमज़ान मुबारक हो इसलिए एक कप काफी पीना चाहता हूँ तुम्हारे साथ … कल क्लास के पहले इंतजार करूंगा ! तुम आओगी ना ! ‘ 
इतना कहकर अनवर किसी याचक कि भांति पाखी की तरफ देखने लगा । पाखी की नजर भी कुछ पलों के लिए उस पर अटक गयी । पता नहीं क्या ढूंढ रही थी पाखी उसके चेहरे में। एकाएक उसने एक पॉपिंस निकाली और अनवर की तरफ देखते हुए अपने मुंह में डाल ली। पाखी क्लास से बाहर निकलने के लिए उठी, दरवाजे तक आकर वह पलटी और अपने होठों में मुस्कान भर कर बोली – 
‘ रमज़ान मुबारक हो ….  …. । ‘ 
दोनों की आंखें मिलीं और एक दूसरे में घुल गईं जैसे आसमान का नीला रंग काली घटाओं में घुल जाता है। – chandrakanta