Category: मेरी कविता
stOne पाषाण
पाषाण.. तुम, अंगिया में समेटे समस्त भार-अधिभार अस्मिता के मंदिर में पूजा-अर्चना के पश्चात् परोस दी जाती हो, अनमने ग्रहण
Continue readinguntOucHabLe अछूत
UntouchableDrenched in grief that lone window Was spying out Into a hovel, Dejected, In want of life and breath Steadfast,
Continue readingstreet vendors पटरीवाले, चंद्रकांता
street vendors पटरीवाले, चंद्रकांता आज कई हफ़्तों के पश्चात् हाट से खरीदी गुलाबी टोकरी हाथ में पकड़एकदम
Continue readingshOres sO mAny ? कितने किनारे ?
Shores So Many? This Emptiness of love Enamoured of hostility Chaste parlance Rugged, sterile course Carry me, again, back to
Continue readingfRagrence Of sentimentS कुछ बिखरी हुई संवेदनाएं – 1
1 प्रिय ! बहुत बार तुमसे कहना चाहा किन्तु, प्रेम में गढ़ दिए गए शब्द नहीं तय कर पाए फासले
Continue readingतुम्हारी परछाई ..
जिंदगी के कुछ खट्टे कुछ कड़वे पलछिनों को, आज जाड़ों की मीठी धूप मेंअपने गुलाबी दुपट्टे पर रख बिछा दिया जिनके बरसों अलमारी
Continue readingमधुबन के माली..
हे! पीताम्बर अब तुम चमत्कृत नहीं करते अनावृत हो चली है तुम्हारे अधरों पर खेलती वह कुटिल मुस्कान तुम्हारे मस्तक
Continue readingकलाकृति..
कलाकृति..आज कुछ टूटे-फूटे, विस्मृत कंकड़-पत्थर साफ़ किये जो मुंडेर पर बिखरे पड़े थे बेफिक्र, बेतरतीब से अनमने यहाँ-वहाँ.. मैंनें, निर्भीक चुन लिया सभ्यता के अधि-शेष सूत्रों
Continue readingदो टुकड़ा चाँद sPlit mOOn
मैं भीख हूँ धूल से लबरेज़ खुरदरे हाथ-पाँव सूखे मटियाले होंठ, निस्तेज अपनी निर्ल्लज ख-ट-म-ली देह को जिंदगी की कटी-फटी-छंटी
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